देशभक्ति गीतों के कवि:प्रदीप

Last Updated 11 Dec 2010 12:42:52 PM IST

‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख मे भर लो पानी,जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी’ यह गीत, सुनकर किसी भी भारतीय व्यक्ति के आखों में पानी भर आता है. और शहीदों की याद कर खून खौलने लगता है.


11 दिसंबर:- कवि प्रदीप की पुण्यतिथि पर विशेष

यह देशभक्ति का गीत जिस व्यक्ति ने लिखा वह कोई और नहीं देश प्रेम की अद्भुत भावना से ओत-प्रोत रामचंद्र द्विवेदी उर्फ कवि प्रदीप है.

इनका नाम सुनकर सभी लोग सम्मानपूवर्क इनको नमन करने लगते है.

इनके लिखे गीत की बात ही कुछ और है.

वर्ष 1962 मे जब भारत और चीन का युद्ध अपने चरम पर था. तब कवि प्रदीप, परम वीर मेजर शैतान सिंह की बहादुरी और बलिदान से काफी प्रभावित हुए और देश के वीरों को श्रद्धाजंलि देने के लिए उन्होंने ‘ऐ मेरे वतन के लोगो...गीत की रचना की.

सी.रामचंद्र के संगीत निर्देशन मे एक कार्यक्रम के दौरान स्वर साम्राज्ञी लता मंगेश्कर से देश भक्ति की भावना से परिपूर्ण इस गीत को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखो मे आंसू छलक आये थे.

06 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश के छोटे से शहर मे मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे प्रदीप को बचपन के दिनों से ही हिन्दी कविता लिखने का शौक था.

जिसे वह कवि सम्मेलनों में पढ़कर सुनाया करते थे.

वर्ष 1939 में लखनऊ विश्वविद्यलय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने शिक्षक बनने का प्रयास किया लेकिन इसी दौरान उन्हें मुंबई मे हो रहे एक कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने का न्योता मिला.

कवि सम्मेलन में उनके गीतों को सुनकर बाम्बे टॉकीज स्टूडियो के मालिक हिंमाशु राय काफी प्रभावित हुए और उन्होंने प्रदीप को अपने बैनर तले बन रही फिल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने की पेशकश की.

वर्ष 1939 मे प्रदर्शित फिल्म कंगन मे उनके गीतों की कामयाबी के बाद प्रदीप बतौर गीतकार फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए.

इस फिल्म के लिए लिखे गए चार गीतों मे से प्रदीप ने तीन गीतों को अपना स्वर भी दिया था.

वर्ष 1940 मे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था.

देश को स्वतंत्र कराने के लिय छिड़ी मुहिम में कवि प्रदीप भी शामिल हो गए और इसके लिये उन्होनें अपनी कविताओं का सहारा लिया.

अपनी कविताओं के माध्यम से प्रदीप देशवासियों मे जागृति पैदा किया करते थे.

वर्ष 1940 मे ज्ञान मुखर्जी के निर्देशन मे उन्होंने फिल्म ‘बंधन’ के लिए भी गीत लिखा.

यूं तो फिल्म बंधन मे उनके रचित सभी गीत लोकप्रिय हुए लेकिन ‘चल चल रे नौजवान... के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानो में एक नया जोश भरने का काम किया.

अपने गीतों को प्रदीप ने गुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया और उनके गीतो ने अंग्रेजों के विरूद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नयी दिशा दी.

इसके बाद प्रदीप ने बाम्बे टॉकीज की ही फिल्म नया संसार, अंजान, पुर्नमिलन, झूला और किस्मत के लिए भी गीत लिखे.

चालीस के दशक मे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ अपने चरम पर था.

वर्ष 1943 में प्रदर्शित फिल्म ‘किस्मत’ में प्रदीप के लिखे गीत ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनियां वालों हिंदुस्तान हमारा है’ जैसे गीतों ने जहां एक ओर स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोरा वहीं अंग्रेजों की तिरछी नजर के भी वह शिकार हुए.

प्रदीप का रचित यह गीत ‘दूर हटो ए दुनिया वालों’ एक तरह से अंग्रेजी सरकार के पर सीधा प्रहार था.

कवि प्रदीप के क्रांतिकारी विचार को देखकर अंग्रेजी सरकार द्वारा गिरफ्तारी का वारंट भी निकाला गया.

गिरफ्तारी से बचने के लिये कवि प्रदीप को कुछ दिनों के लिए भूमिगत रहना पड़ा.

यह गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि सिनेमा हॉल में दर्शकों इसे बार-बार सुनने की ख्वाहिश होने लगी और फिल्म की समाप्ति पर दर्शकों की मांग पर इस गीत को सिनेमा हॉल मे दुबारा सुनाया जाने लगा.

इसके साथ ही फिल्म ‘किस्मत’ ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिए और इस फिल्म ने कोलकाता के एक सिनेमा हॉल मे लगातार लगभग चार वर्ष तक चलने का रिकार्ड बनाया.

इसके बाद वर्ष 1950 मे प्रदर्शित फिल्म ‘मशाल’ में उनके रचित गीत ‘ऊपर गगन विशाल नीचे गहरा पाताल, बीच में है धरती ‘वाह मेरे मालिक तुने किया कमाल’ भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ.

इसके बाद कवि प्रदीप ने पीछे मुड़कर नही देखा और एक से बढ़कर एक गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया.

वर्ष 1954 मे प्रदर्शित फिल्म ‘नास्तिक’ में उनके रचित गीत ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान’ समाज मे बढ़ रही कुरीतियों के ऊपर उनका सीधा प्रहार था.

वर्ष 1954 में ही फिल्म ‘जागृति’ मे उनके रचित गीत की कामयाबी के बाद वह शोहरत की बुंलदियो पर जा बैठे.

प्रदीप द्वारा रचित गीत ‘हम लाए है तूफान से कश्ती निकाल के इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के’ और ‘दे दी आजादी हमें बिना खड़ग बिना ढा़ल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ जैसे गीत आज भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। ये गीत देश भर मे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस के अवसर पर खासतौर से सुने जा सकते है.

इस गीत ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ गीत के जरिए प्रदीप ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की है.

साठ के दशक मे पाश्चात्य गीत-संगीत की चमक से निर्माता-निर्देशक अपने आप को नही बचा सके और धीरे-धीरे निर्देशकों ने प्रदीप की ओर से अपना मुख मोड़ लिया लेकिन वर्ष 1958 मे प्रदर्शित फिल्म ‘तलाक’ और वर्ष 1959 मे प्रदर्शित फिल्म ‘पैगाम’ मे उनके रचित गीत ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा’ की कामयाबी के बाद प्रदीप एक बार फिर से अपनी खोई हुई लोकप्रियता पाने मे सफल हो गए.

वर्ष 1975 मे प्रदर्शित फिल्म ‘जय संतोषी मां’ मे उनके रचित गीत ने एक बार फिर से प्रदीप शोहरत की बुंलदियो पर जा बैठे.

जय संतोषी मां का गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि कई शहरों मे इस फिल्म ने हिन्दी सिनेमा के इतिहास मे सबसे सफल फिल्म मानी-जानी वाली फिल्म ‘शोले’ का भी बॉक्स आफिस रिकार्ड तोड़ दिया.

कवि प्रदीप फिल्म जगत मे उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हे वर्ष 1998 मे फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया.

इसके अलावा वर्ष 1961 मे संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, फिल्म जर्नलिस्ट अवार्ड, इम्पा अवार्ड महान कलाकार अवार्ड, राजीव गांधी अवार्ड, सुरसिंगार अवार्ड, संत ज्ञानेश्वर अवार्ड और नेशल इंट्रीगेशन अवार्ड 1993 से भी प्रदीप सम्मानित किए गए.

अपने गीतों के जरिए देशवासियों के दिल में राज करने वाले प्रदीप ने 11 दिसम्बर 1998 को इस दुनिया को अलविदा कह गए.
 



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