स्वतंत्रता आंदोलन में मदन मोहन मालवीय की अहम भूमिका
वीएचयू के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने के साथ समाज सुधार में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया.
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मदन मोहन मालवीय की जयंती पर
जामिया मिलिया विविद्यालय के इतिहास के प्राध्यापक रिजवान कैसर ने भाषा से कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में मालवीयजी का महती योगदान है. स्वतंत्रता आंदोलन और बनारस हिंदू विविद्यालय (वीएचयू) जैसी बड़ी शिक्षण संस्था की स्थापना में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा.
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 25 दिसंबर, 1861 को एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे पंडित मदन मोहन मालवीय ने पांच साल की उम्र में पंडित हरदेव की धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में संस्कृत की शिक्षा ली. इलाहाबाद जिला स्कूल से स्कूली शिक्षा ग्रहण के बाद उन्होंने मुईर सेंट्रल कॉलेज से मैट्रीकुलेशन किया. उन्होंने कलकता विविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की.
उन्होंने जुलाई, 1884 में इलाहाबाद जिला स्कूल में बतौर शिक्षक अपना करियर शुरू किया, लेकिन राजनीति में भी लगातार सक्रिय रहे. जुलाई, 1887 में वह राष्ट्रवादी साप्ताहिक हिंदुस्तान के संपादक बने. इस दौरान कानून की पढ़ाई करने के बाद वह पहले इलाहाबाद जिला न्यायालय और बाद में दिसंबर, 1893 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने लगे.
शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए मालवीय ने 1911 में प्रैक्टिस छोड़ दी, हालांकि चौरा चौरी कांड में 177 स्वतंत्रता सेनानियों को मृत्युदंड दिए जाने के खिलाफ वह फिर अदालत में उतरे और अपनी दलीलों से 156 को बरी करवाने में सफल रहे.
नरमपंथी नेता मालवीय को 1909 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. चार बार-1909, 1918, 1930 तथा 1932 में वह पार्टी अध्यक्ष बने.
जब चौरा चौरी कांड में 177 स्वतंत्रता सेनानी मृत्युदंड के लिए दोषी ठहराए गए तब मालवीय उनकी ओर से अदालत में पेश हुए और 156 को बरी करवाया.
मालवीय इंपेरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल और बाद में इसके परिवर्तित रूप सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेम्बली के सदस्य भी रहे.
उन्नीस सौ बीस के दशक के प्रारंभ में वह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में प्रमुख नेता के रूप में उभरकर सामने आए. सन् 1928 में उन्होंने लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू आदि के साथ मिलकर साइमन आयोग का जबर्दस्त विरोध किया.
तुष्टिकरण के विरोधी मालवीय ने 1916 के लखनऊ पूना पैक्ट में मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन मंडल का विरोध किया. वह खिलाफत आंदोलन में कांग्रेस के शामिल होने के खिलाफ थे. उन्होंने गांधीजी को देश विभाजन की कीमत पर आजादी के खिलाफ चेताया था. उन्होंने भी 1931 में पहले गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. ‘सत्यमेव जयते’ को उन्होंने ही लोकवाक्य बनाया. वह कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक भी रहे.
मालवीयजी ने जाति का बंधन तोड़ने के लिए काफी काम किया. इतिहास के प्राध्यापक प्रदीप कुमार कहते हैं कि मालवीय जी ने गांधीजी और अंबेडकर के बीच 1930 के पूना पैक्ट में अहम भूमिका निभाई.
जीवनपर्यन्त आजादी का सपना देखने वाले मालवीय 12 नवंबर 1946 को चल बसे.
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