...तू पा जाएगा मधुशाला

Last Updated 27 Nov 2010 08:24:54 PM IST

हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला एक कालजयी रचना है जिसके जरिए वह आज भी अमर हैं।


(श्री हरिवंश राय बच्चन के जन्मदिवस (27 नवंबर )पर विशेष)

मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता।
शत्रु मेरा बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा।

यह पंक्तियाँ जेहन में उतरते ही कविवर डॉ. हरिवंशराय बच्चन का व्यक्तित्व और कृतित्व साकार हो उठता है। बच्चनजी का साहित्य पढ़ने से यह बात स्वतः ही सिद्ध हो जाती है। काव्य रचनाओं के साथ-साथ उनके जिस साहित्यिक रूप ने इस उक्ति को प्रमाणित किया, वह है उनकी आत्मकथा। इतिहास में शायद ही किसी रचनाकार की आत्मकथा में अभिव्यक्ति का ऐसा मुखर रूप दृष्टिगोचर होता है।

डॉ. हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को प्रयाग के पास अमोढ़ गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी पाठशाला, कायस्थ पाठशाला और बाद की पढ़ाई गवर्नमेंट कॉलेज इलाहाबाद और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुई थी।

इलाहाबाद के कायस्थ परिवार में जन्मे हरिवंश राय को बचपन में बच्चन के नाम से पुकारा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ बच्चा या संतान होता है। बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए जो आगे चलकर उनका सरनेम बन गया। इन्होंने कायस्थ पाठशालाओं में पहले उर्दू की शिक्षा ली जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था । इसके बाद उन्होने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी एच डी किया ।

वह 1941 से 52 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे। उन्होंने 1952 से 54 तक इंग्लैंड में रह कर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। शायद कम ही लोगों को पता होगा कि हिंदी के इस विद्वान ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डब्ल्यूबी येट्स के काम पर शोध कर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की और यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह पहले भारतीय रहे।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में डाक्टरेट की उपाधि लेने के बाद उन्होंने हिंदी को भारतीय जन की आत्मा की भाषा मानते हुए उसी में साहित्य सृजन का फैसला किया और आजीवन हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में लगे रहे कैम्ब्रिज से लौटकर उन्होंने एक वर्ष अपने पूर्व पद पर काम किया।

उन्होंने कुछ माह तक आकाशवाणी के इलाहाबाद केंद्र में काम किया। वह 16 वर्ष तक दिल्ली में रहे और बाद में दस वर्ष तक विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर रहे। हिंदी के इस आधुनिक गीतकार को राज्यसभा में उन्हें छह वर्ष के लिए विशेष सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था।

वर्ष 1972 से 82 तक वह अपने दोनों पुत्रों अमिताभ और अजिताभ के पास दिल्ली और मुंबई में रहते थे। बाद में वह दिल्ली चले गए और गुलमोहर पार्क में 'सोपान' में रहने लगे तीस के दशक से 1983 तक हिंदी काव्य और साहित्य की सेवा में लगे रहे।

1926 में 19 वर्ष की उम्र में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जो इस समय 14 वर्ष की थी । लेकिन 1936 में श्यामा की टीबी के कारण मृत्यु हो गई । पांच साल बाद 1941 में बच्चन ने एक पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं । इसी समय उन्होंने नीड़ का पुनर्निर्माण जैसे कविताओं की रचना की । तेजी बच्चन से अमिताभ तथा अजिताभ दो पुत्र हुए ।

तेजी बच्चन ने हरिवंश राय बच्चन द्वारा शेक्सपियर के अनूदित कई नाटकों में अभिनय का काम किया है। उनकी कृति- दो चट्टाने को 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउन्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था।

सहजता और संवेदनशीलता उनकी कविता का एक विशेष गुण है। यह सहजता और सरल संवेदना कवि की अनुभूति मूलक सत्यता के कारण उपलब्ध हो सकी। बच्चन जी ने बडे साहस, धैर्य और सच्चाई के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज कल्पनाशीलता और जीवन्त बिम्बों से सजाकर सँवारकर अनूठे गीत हिन्दी को दिए।

हरिवंश राय बच्चन जी की कृति मधुशाला को सबसे पहले स्वर दिया, जानेमाने पार्श्व गायक मन्ना डे ने और उसके बाद उनके बड़े बेटे अमिताभ बच्चन ने सहारा शहर लखनऊ में दिया। अपने पिता की लिखी मधुशाला की पंक्तियों को स्वर देकर अमिताभ देश और दुनिया में छा गए। अपने पिता के जन्मदिन के मौके पर लखनऊ के सहारा शहर स्थित ऑडोटिरियम में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। कवि सम्मेलन में बिग बी ने मधुशाला की पंक्तियों को कुछ ऐसा गुनगुनाया कि सभी भावविभोर हो उठे थे। खचाखच भरे ऑडिटोरियम में अमिताभ ने मधुशाला की पंक्तियों को गाकर सुनाया और इस दौरान वह कई बार भावुक हुए। मधुशाला की पंक्तियां अमिताभ के मुख से सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए और ऐसा लगा जैसे हरिवंश राय बच्चन की कालजयी कृति मधुशाला साक्षात प्रकट हो गई हो।

श्री बच्चन की प्रमुख कृतियों में मधुशाला, निशानिमन्त्रण, प्रणय पत्रिका, मधुकलश, एकांतसंगीत, सतरंगिनी, मिलनयामिनी, बुद्ध और नाचघर, त्रिभंगिमा, आरती और अंगारे, जाल समेटा, आकुल अंतर तथा सूत की माला हैं।

अब आपके लिए पेश हैं श्री हरिवंश राय बच्चन जी की लिखी मधुशाला की कुछ पंक्तियां

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।

मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।

सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।

जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।

मेहंदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।

हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।

लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।

जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।

बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।

बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।

बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।

अब पेश है श्री बच्चन जी की वह कविता जो बिग बी को बेहद पसंद हैं।

बच्चन जी की यह कविता आज भी बेहद लोकप्रिय हैं।
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं -
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे -
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल ?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ? -
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

 



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