अपेक्षाओं के अमृतकाल में बजट बनेगा भविष्य की ढाल

Last Updated 05 Feb 2022 10:54:03 AM IST

वित्तीय वर्ष 2022-23 का बजट अब हमारे सामने आ चुका है और गुण-दोष के आधार पर इसका विश्लेषण भी खूब हो रहा है। देश का राजनीतिक वर्ग अपने नफे-नुकसान के हिसाब से इसका आकलन कर रहा है, तो बजट की प्रशंसा और आलोचना के पीछे अर्थशास्त्रियों समेत समाज के अलग-अलग वर्ग के अपने-अपने तर्क सामने आ रहे हैं। कहीं विकास के सुनहरे अरमान हैं, तो कहीं विनाश के भयावह अनुमान। कहीं वर्तमान को सुधारने का वादा है, तो कहीं भविष्य बदलने का इरादा। कहीं पुराने दावों की पड़ताल है, तो कहीं दांव पर नये ऐलान हैं। आशा-निराशा के इस भंवर के बीच आखिर, वाकई में कैसा है यह बजट?


अपेक्षाओं के अमृतकाल में बजट बनेगा भविष्य की ढाल

बजट को तात्कालिक नजरिए से देखा जाए तो इसे लेकर जताया जा रहा संदेह सच दिखाई देने लगता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि यह बजट भारत और भारतवासियों के भविष्य को लेकर एक उम्मीद भी जगाता है। अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी दावा किया है कि यह बजट 100 साल की भयंकर आपदा यानी कोरोना महामारी के बीच विकास का नया विास लेकर आया है, जो अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ ही सामान्य मानव के लिए अनेक नये अवसर बनाएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के शब्द भले अलग रहे हों, लेकिन बजट को लेकर उनकी और प्रधानमंत्री की सोच में ज्यादा फर्क नहीं दिखा है।

बजट के हैं दो छोर
तो क्या मान लिया जाए कि भविष्य का जो सपना देश को दिखाया जा रहा है, वही आने वाले दिनों का सच भी है? देखा जाए तो इस बजट के दो छोर हैं, और सारी बातें इन्हीं दोनों सिरों के बीच समेटी जा सकती हैं। एक छोर पर इनकम टैक्स में छूट नहीं मिलने के कारण मिडिल क्लास को हुई निराशा है, तो दूसरी तरफ पीएम गतिशक्ति समेत समावेशी विकास की वो चार प्राथमिकताएं हैं, जो स्तंभ के रूप में अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ ही देश को अगले 25 साल तक गति देने की दीर्घकालीन आशा है। इसके बीच सरकार महामारी की मारी जनता से इस बात पर अपनी पीठ थपथपाने की अपेक्षा कर रही है कि उसने कोई नया टैक्स नहीं लगाया है।
बहरहाल, पीएम गतिशक्ति परियोजना को लेकर बजट में बड़े महत्त्वाकांक्षी ऐलान हैं। सरकार का मानना है कि 107 लाख करोड़ रुपये वाला यह प्रोजेक्ट जब धरातल पर उतरेगा तो देश का इंफ्रास्ट्रक्चर जो आकार लेगा, वो कल्पना से भी परे होगा। सड़क, रेलवे, विमानपत्तन, बंदरगाह, सार्वजनिक परिवहन, जलमार्ग और लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर ऐसे सात इंजन के रूप में काम करेंगे जो आर्थिक वृद्धि और सतत विकास को नया आयाम देंगे। इसके तहत 16 मंत्रालयों को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाया जाएगा। पूरे देश में सामानों और लॉजिस्टिक की आवाजाही तेज करने के लिए 400 नई वंदे भारत ट्रेनें, 100 पीएम गतिशक्ति कॉर्गो टर्मिंनल, 8 नये रोप-वे तैयार होंगे और नेशनल हाईवे का नेटवर्क 25 हजार किलोमीटर और बढ़ाया जाएगा। मकसद यही है कि योजनाएं समय पर पूरी हों, इंफ्रास्ट्रक्चर का तेज विकास, सप्लाई चेन सुगम और देश में कनेक्टिविटी बढ़े। एक तरह से यह पूर्ववर्ती सरकारों पर अटकाने, लटकाने और भटकाने के पीएम के आरोप और बीजेपी सरकार की स्किल, स्केल और स्पीड वाली कार्यशैली पर मुहर लगाने जैसा है।

पीएम गतिशक्ति परियोजना से उम्मीद
सरकार की सोच यह भी है कि पीएम गतिशक्ति परियोजना में अर्थव्यवस्था के साथ-साथ युवाओं के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के नये अवसर सृजित करने की भी क्षमता है। केवल इतना ही नहीं, मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना से भी अगले पांच वर्षो में 60 लाख नये रोजगार की संभावना है। सरकार की सोच बहुत अच्छी है पर अप्रोच के बारे में यही बात उतने दावे से नहीं कही जा सकती। इसकी दो-तीन वजह हैं। पांच वर्ष में 60 लाख रोजगार के आंकड़े को सरल बनाएं तो यह एक साल में 12 लाख बैठता है जबकि 2014 में यही सरकार प्रति वर्ष दो करोड़ रोजगार के दावे के साथ सत्ता में आई थी। तो क्या सरकार अपने ही वादे से पीछे हट गई है? पांच साल में 60 लाख रोजगार का आंकड़ा और भी वजहों से महत्त्वाकांक्षी लगता है। पीएलआई स्कीम तभी काम करेगी जब घरेलू खपत बढ़े या फिर निर्यात। दोनों जगहों से ही फिलहाल अच्छे संकेत नहीं हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में उत्पादन भी घट रहा है। फिर ऑटोमेशन की होड़ ने उत्पादन को मशीन केंद्रित कर रोजगार से इसके सीधे संबंध को भी खत्म कर दिया है। हां, पूंजीगत खर्च और जीडीपी का रिश्ता जरूर बरकरार है, लेकिन खर्च का प्रावधान बढ़ाने मात्र से रोजगार नहीं बढ़ जाएगा। इसी साल सरकार अपने निर्धारित पूंजी खर्च का आधा भी नहीं खर्च कर पाई है।

मनरेगा का नहीं बढ़ाया बजट
उम्मीद थी कि कोरोना-काल में रोजगार की सबसे बड़ी ढाल बनी मनरेगा योजना का बजट बढ़ाया जाएगा लेकिन वो भी जस-का-तस रखा गया है। उल्टे मजदूरी की अधिसूचित दर कम होने के साथ-साथ कार्य दिवस में भी कटौती हो गई है। कहां तो बात शहरी इलाकों में मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी वाली स्कीम लाने की हो रही थी और यहां ग्रामीण इलाकों में ही रोजगार पर तलवार लटक गई है। सरकार को इस तरफ गंभीरता से ध्यान देना होगा।
हमारे देश में रोजगार देने वाला सबसे बड़ा सेक्टर अभी भी कृषि क्षेत्र ही है। हमारे अन्नदाता ही कोरोना-काल में हमारी अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े ‘सपूत’ भी साबित हुए। ऐसे में बजट आवंटन में कृषि क्षेत्र के लिए दो फीसद की बढ़त मामूली दिखती है। एमएसपी पर गेहूं और धान की जिस रिकॉर्ड खरीद का दावा किया गया है, वो भी दरअसल, पिछले वर्ष की तुलना में कम है। सबसे बड़ी शिकायत यह निकल कर आई है कि बजट भाषण में किसानों की आय दोगुना करने का कोई जिक्र तक नहीं किया गया है। हालांकि प्रत्यक्ष रूप में इसके कई उपाय जरूर सुझाए गए हैं। किसान ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा, कृषि उद्यमशीलता वाले स्टार्ट-अप की फंडिंग और इसके जरिए एफपीओ का समर्थन, केमिकल-मुक्त प्राकृतिक खेती, घरेलू तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहन, मत्स्य खेती में नीली क्रांति का समर्थन जैसी कई पहल किसानों के जीवन में खुशहाली लाने पर केंद्रित दिखती हैं। कृषि कानूनों के बाद ये तमाम उपाय खेती-किसानी को लेकर सरकार के फोकस में एक स्पष्ट बदलाव के संकेत हैं।

एमएसएमई सेक्टर को तवज्जो
बजट ने एक बार फिर बताया है कि सरकार देश की जीडीपी में 30 फीसद और निर्यात में 48 फीसद की हिस्सेदारी रखने वाले एमएसएमई सेक्टर को कितना तवज्जो देती है। इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम का दायरा 50 हजार करोड़ से दस गुना बढ़कर 5 लाख करोड़ रु पये कर दिया गया है। उद्यम, ई-श्रम, एनसीएस और असीम पोर्टल्स को लिंक करने से भी एमएसएमई का दायरा बढ़ेगा। दो लाख करोड़ रु पये की अतिरिक्त मदद कई छोटे और लघु उद्योगों के लिए संजीवनी साबित हो सकती है।
इसके विपरीत 2021-22 के संशोधित बजट अनुमान की तुलना में इस बार कोरोना-काल के बीच स्वास्थ्य के लिए बजट आवंटन में ज्यादा बदलाव नहीं होना चौंकाता है। ऐसे में कोविड महामारी से मानसिक स्वास्थ्य पर हुए असर से लड़ने के लिए नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम की पहल स्वागतयोग्य तो है, लेकिन उसके लिए अलग से फंड कहां से आएगा, यह भी एक सवाल है। हालांकि इसके पीछे दलील यह है कि महामारी से निपटने के लिए संसाधनों पर हुआ ज्यादातर व्यय एक बार का निवेश था और कोविड टीकाकरण के लिए भी अब तुलनात्मक कम खर्च का अनुमान है। महामारी से ही प्रेरित बजट का एक महत्त्वपूर्ण बदलाव शिक्षा के क्षेत्र में दिखा है, जहां पठन-पाठन का डिजिटलीकरण और डिजिटल यूनिर्वसटिी खोलने का ऐलान है। हालांकि यहां भी शिक्षण स्टाफ से लेकर शिक्षा को कम खर्चीला बनाने के उपायों पर ज्यादा बात नहीं हुई है। ग्रीन जॉब को भी इस बार बजट में खास तवज्जो मिली है, लेकिन जमीन पर यह कितना अंतर लाएगा इसके लिए थोड़ा इंतजार कर लेना चाहिए।

क्रिप्टो करंसी संबंधी फैसले ने किया हैरान
आखिर में बात उन दो महत्त्वपूर्ण और सर्वथा अप्रत्याशित घोषणाओं की जिनके बिना इस बजट का कोई भी विश्लेषण पूरा नहीं हो सकता। बजट भाषण में क्रिप्टो करंसी से होने वाली आय पर 30 फीसद कर और इसमें निवेश पर एक फीसद टीडीएस काटने के फैसले ने बहुतों को हैरान किया है। बड़ी बात शायद इस भारी-भरकम टैक्स की नहीं, बल्कि यह है कि क्रिप्टो परिसंपत्तियों को आखिरकार भारत में मान्यता मिल गई है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सरकार इस पर और स्पष्टता से अपनी बात रखेगी।
दूसरी अप्रत्याशित घोषणा दरअसल, घोषणा ही नहीं करना है। बजट पेश करने की तारीख से दो सप्ताह से भी कम समय में पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए वोट डालने की शुरु आत होने जा रही है, और वित्त मंत्री का यह कहना हैरानी भरा रहा कि इन राज्यों के युवाओं, महिलाओं, किसानों और वंचित वर्ग की चिंताओं से अवगत होने के बावजूद वो किसी राज्य के लिए विशेष रूप से धन आवंटित नहीं कर रही हैं, जबकि पिछले साल के बजट के समय वित्त मंत्री ने चारों चुनावी राज्यों के लिए अच्छे-खासे वित्तीय प्रावधान किए थे। अगर चुनावी राज्यों की किसी खास वजह से अनदेखी नहीं की गई है, तो इसे एक स्वस्थ परंपरा की शुरु आत भी कहा जा सकता है।
कुल मिलाकर बजट आज से ज्यादा आने वाले कल के भारत का बजट दिखता है। इसमें अगले 25 वर्ष में आजादी के 100 साल पूरे होने पर एक नये भारत के पुनर्निर्माण का विजन दिखता है। बजट में अमृतकाल की अपेक्षाएं पूरी करने का दमखम दिखता है, तो दूसरी ओर इनकी पूर्ति के लिए सरकार भी दृढ़ संकल्पित दिखती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बजट का यह दमखम और सरकार का संकल्प वर्तमान को लेकर उठ रहे हर सवाल का युक्तियुक्त समाधान प्रस्तुत करने में सफल होगा।
 

उपेन्द्र राय


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