आत्मनिर्भरता के अमृतत्व का महोत्सव

Last Updated 14 Aug 2021 06:54:50 AM IST

भारत इस वर्ष जश्न-ए-आजादी का 75वां साल मना रहा है। यूं तो आजाद हवा में सांस लेने का एक-एक पल भी खास होता है, लेकिन इन एक-एक पल ने भी आपस में जुड़कर दिन, महीनों और वर्षो के ऐसे खास पड़ाव तैयार किए हैं, जो एक राष्ट्र के सफर में हर देशवासी के लिए गर्व और स्वाभिमान के प्रतीक बन गए हैं।


आत्मनिर्भरता के अमृतत्व का महोत्सव

भावनाओं का ये ज्वार इसलिए भी उमड़ता है, क्योंकि इतनी लंबी यात्रा असंख्य मुश्किलों, दुखों और बड़ी-बड़ी चुनौतियों से पार पाकर पूरी हुई है। यही वजह है कि इस उपलब्धि का अहसास भी बड़ा खास है। आजादी का अमृत महोत्सव देश को इसी दिशा में और आगे ले जाने का प्रयास है। संस्कृति, सभ्यता और सफलता वाले हमारे गौरवशाली राष्ट्र के आध्यात्मिक चिंतन का आधार रहे वेदों में भी लिखा है- मृत्यो: मुक्षीय मामृतात। इसका अर्थ है कि दु:ख, कष्ट, क्लेश और विनाश से निकलकर ही अमृत मिलता है, अमरता की ओर बढ़ा जाता है। यही भाव आज़ादी के इस अमृत महोत्सव का संकल्प भी है। नए विचारों का अमृत। नए संकल्पों का अमृत। आत्मनिर्भरता का अमृत।

देश हुआ संकल्पबद्ध
इस साल 12 मार्च को अमृत महोत्सव की शुरु आत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को यही संकल्प दिलाया था। ये भी संयोग है कि इस महोत्सव की शुरु आत उसी दिन हुई है, जिस दिन हमारी आजादी के आंदोलन के सबसे बड़े नायक महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा की शुरु आत की थी। प्रधानमंत्री ने दोनों अवसरों के प्रभाव और संदेश के बीच अद्भुत साम्य को रेखांकित भी किया। गुलामी के दौर में नमक हमारी आत्मनिर्भरता का प्रतीक था और जब अंग्रेजों ने इसे चुनौती दी, तो पूरे देश ने गांधीजी की अगुआई में दांडी यात्रा के रूप में अपनी पहचान के लिए लड़ने का संकल्प लिया। अमृत महोत्सव भी विदेशी वस्तुओं की ‘गुलामी’ से मुक्ति और आत्मनिर्भर बनने का संकल्प है।

आजादी का अमृत महोत्सव 15 अगस्त, 2022 से 75 सप्ताह पूर्व शुरू हुआ है और 15 अगस्त, 2023 तक चलेगा। इस लिहाज से इस वर्ष का स्वतंत्रता दिवस इस महोत्सव का पहला महत्वपूर्ण पड़ाव भी है और इस बात का बिल्कुल उचित अवसर भी है जब हम आजाद भारत की उपलब्धियों का विश्लेषण करते हुए उन तैयारियों और चुनौतियों का आकलन भी करें जो अमृत महोत्सव के संकल्प को पूरा करने के लिए आवश्यक होंगी।

एक स्वतंत्र देश के रूप में भारत की प्रगति कई मायनों में गौरवशाली है। जो देश कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था, उसे विदेशी आक्रांताओं ने जमकर लूटा। नतीजा ये हुआ कि आजादी मिलने के लंबे समय बाद तक हमें गरीब देशों में शुमार कर हमारा उपहास उड़ाया जाता रहा। वही भारत आज न केवल दुनिया की टॉप-5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है, बल्कि वैश्विक संतुलन में एक अहम स्थान भी रखता है। भारत आज दुनिया की चार सबसे बड़ी सैन्य शक्तियों में से एक है। खाद्यान्न के उत्पादन में भारत केवल अपनी जरूरत का नहीं, बल्कि आधी दुनिया का पेट भर रहा है। मिड-डे मील दुनिया का सबसे बड़ा स्कूल भोजन कार्यक्रम है जिसमें रोज 12 करोड़ बच्चों को खाना दिया जाता है। हमारा ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम दुनिया के लिए एक मिसाल बन चुका है।

आईटी सेक्टर में धाक
आईटी सेक्टर से लेकर अंतरिक्ष कार्यक्रम तक में आज दुनिया में हमारी धाक है। कोरोना काल ने एक बार फिर महामारियों के उन्मूलन में दुनिया को हमारी पुरानी काबिलियत से रू-ब-रू करवाया है। धर्म और संस्कृतियों की विविधता के बावजूद भारत ने एक राष्ट्र के रूप में जिस छवि का निर्माण किया है, उसका आज कोई दूसरा सानी नहीं दिखता। केवल सामरिक और रणनीतिक मामलों में ही नहीं, भारत ने खुद को दुनिया में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में भी स्थापित किया है। कई लोगों को इस बात की कम ही जानकारी है कि भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश है जिसने आजादी की पहली सांस लेने के साथ ही अपने प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार दे दिया था। दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति और सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में आजादी के 200 साल से ज्यादा समय बाद भी आज वहां के नागरिक कुछ तय पैमानों के आधार पर ही मतदान कर पाते हैं।

इस गौरवशाली अतीत को नई ऊंचाइयों तक आगे ले जाने के लिए हम कितने तैयार हैं? क्या हमारा भविष्य भी हमारे गुजरे कल की तरह ही सुनहरा है? क्या आजादी के 100 साल बाद 2047 में हम भी खुद को अमेरिका या चीन की तरह महाशक्ति के रूप में स्थापित कर पाएंगे? सवाल उठता है क्यों नहीं? अगर हम अपनी विकास यात्रा में अधूरे रहे लक्ष्यों को पूरा करने की परीक्षा में पास हो जाएं, तो यह चुनौती असंभव नहीं होनी चाहिए। लेकिन उससे पहले हमें अपने विरोधाभासों पर विजय हासिल करनी होगी। हाल के वर्षो में आए बदलाव के बावजूद चिकित्सा, शिक्षा, स्वास्थ्य की बुनियादी जरूरतों के मामले में अभी हमें काफी कुछ करना है। भ्रष्टाचार जैसी नए जमाने की बीमारी के साथ ही जातिवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद और वंशवाद जैसे हमारे समाज के पूर्वाग्रह अभी भी हमारी आगे बढ़ने की रफ्तार पर ब्रेक लगाने का काम कर रहे हैं। ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक खाई लगातार बढ़ी है और आबादी का केवल एक फीसद हिस्सा बाकी 99 फीसद का भाग्य विधाता बना हुआ है। एक तरफ खाप पंचायतें आए-दिन खुलेआम देश के कानून का मखौल उड़ा रही हैं, तो दूसरी तरफ कानून बनाने वाले हमारे सांसद भी संसद में देश के विकास का खाका तैयार करने की जगह अपना स्वार्थ साधते दिख रहे हैं। हम जनतांत्रिक तो हैं, लेकिन एक मजबूत लोकतंत्र का हमारा सफर अभी भी अधूरा दिखता है। सबसे बड़ी बात ये कि आज जब सबका साथ, सबका विकास और सबके विास की मंशा को साकार करने की कोशिश हो रही है, तो उसमें खोट तलाशने की मानसिकता हमारी तरक्की की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बन गई है।

पूरी मानवता को प्रभावित करतीं सफलताएं
इसके बावजूद आज भारत वह सब कर रहा है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना नहीं की जाती थी। हमारा देश आज उन लक्ष्यों को संभव बना रहा है, जो कभी असंभव लगते थे। खास बात ये है कि मौजूदा दौर में हमारी सफलताएं केवल हम तक सीमित नहीं रहती हैं, बल्कि पूरी दुनिया और पूरी मानवता को प्रभावित करती हैं। इस मायने में हमारी विकास यात्रा अब दुनिया की विकास यात्रा बन चुकी है। कोरोना काल ने इस तथ्य को मजबूती से स्थापित भी किया है। बेशक, महामारी से भारत बुरी तरह प्रभावित हुआ, लेकिन शुरु आती झटकों से तुरंत उबर कर हमने वैक्सीन बनाकर दुनिया को भी इससे उबारने का जो महाप्रयास किया, उसकी सफलता समूची मानवता के लिए एक आदर्श है। यही दरअसल हमारी आत्मनिर्भरता का भी आदर्श है। अमृत महोत्सव इसी दिशा में आगे कदम बढ़ाने और भारतवर्ष का भविष्य और भव्य बनाने का माध्यम है।
 

उपेन्द्र राय


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