कोरोना के आगे कामयाबी है!

Last Updated 16 May 2020 12:13:26 AM IST

आत्मनिर्भरता का नारा देकर प्रधानमंत्री ने चुनौतियों के बीच उम्मीद को नई रफ्तार देने की कोशिश की है। यह भी गौर करने वाली बात है कि आज जिन्हें हम विकसित या विकासशील अर्थव्यवस्थाएं कहते हैं, वो सब कुछ-न-कुछ अंशों में अपनी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर हमारा देश विकास की नई स्वदेशी जमीन तैयार कर पाता है तो यह ना केवल हमारी मुश्किलें दूर करेगा, बल्कि दुनिया के लिए भी नई मिसाल का काम करेगा


कोरोना के आगे कामयाबी है!

किसी भी देश के लिए नागरिकों के उत्थान के बिना समावेशी विकास का लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है। इसके लिए समय-समय पर नागरिकों को मदद मुहैया करवाना सत्ता-शीर्ष की जिम्मेदारी होती है। इसमें भी यह समझदारी जरूरी है कि मदद ऐसी हो जो उसे हासिल करने वाले को आने वाले कल के लिए अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम बना सके।

आत्मनिर्भरता का यह कवच मानव सभ्यता को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहने की ताकत देता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तो उम्र भर इस दशर्न के बड़े पैरोकार रहे। घर का शौचालय साफ करने जैसा निजी काम हो या चरखा कातकर स्वयं से अपनी जरूरत पूरी करने का संदेश देना हो, बापू ने पग-पग पर आत्मनिर्भरता की महत्ता को स्थापित किया।

संयोग से पिछले साल ही हमने बापू की 150वीं जयंती मनाई है और यह भी एक विडंबना है कि इतने लंबे कालखंड में हम बापू के आत्मनिर्भरता के जिस दशर्न को आत्मसात नहीं कर पाए, वही दशर्न आज कोरोना के संकट काल में जीवन की जरूरत बन गया है। इसीलिए देश को आत्मनिर्भर बनाने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल को बापू की सोच और वक्त की जरूरत से जोड़ कर देखा जा सकता है।  

आत्मनिर्भर भारत की गूंज ऐसे समय में उठी है, जब दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका कोरोना की मार से निराश है और यूरोप के ज्यादातर विकसित देश पूरी तरह हताश हैं। कोविड-19 की मातृभूमि बना चीन इस बीमारी से उबर चुका है और हम उसे पीछे छोड़कर संक्रमित देशों की फेहरिस्त में आगे बढ़ चुके हैं। 

हर संकट अवसर लेकर आता है और देशवासियों में उम्मीद जगाने के लिए हमारे प्रधानमंत्री ने इसी बात को सूत्र वाक्य बनाया है। देश में पहला लॉकडाउन लगाते वक्त प्रधानमंत्री ने ‘जान है तो जहान है’ का नारा देकर आर्थिक गतिविधियों पर जिन्दगी को वरीयता दी थी। तीसरे लॉकडाउन तक आते-आते जीवन और आर्थिक गतिविधियों को तराजू के संतुलित पलड़ों की तरह बताते हुए उन्होंने इस नारे को ‘जान भी, जहान भी’ में संशोधित किया। आत्मनिर्भर भारत का नया संकल्प कोरोना की विभीषिका से डटकर मुकाबला करने और देश के कदम नहीं रुकने देने का ऐलान है।

13 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया। दुनिया के स्तर पर यह विशाल राहत पैकेज है। डॉलर में यह 270 बिलियन है और रु पये में 2 ट्रिलियन जो करीब-करीब 200 लाख करोड़ रुपये वाली हमारी इकोनॉमी का 10 फीसद हिस्सा है। इसका मकसद अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने और लॉकडाउन की मार झेल रहे कामगार-कारोबारी जगत को राहत पहुंचाना है।

कोविड बजट
इसे कोविड बजट बोला जाए या कोविड राहत पैकेज-यह इस बात पर निर्भर है कि सरकार की इस पहल को किस नजरिए से देखा जाता है। अमेरिका, जापान, स्वीडन और जर्मनी के बाद भारत ही है, जिसने अपनी जीडीपी का 10 फीसद या उससे अधिक रकम कोरोना पैकेज के तौर पर खर्च करने का बजट रखा है, वरना तो फ्रांस अपनी जीडीपी का 9.3 फीसद, स्पेन 7.3 फीसद, इटली 5.7 फीसद, ब्रिटेन 4 फीसद, चीन 3.8 फीसद और दक्षिण कोरिया 2.2 फीसद ही खर्च कर रहे हैं। भारत के संदर्भ में यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि यहां देश के 10 राज्यों में कोरोना के 90 फीसद मामले हैं। इसलिए अगर 20 लाख करोड़ का पैकेज सिर्फ  कोरोना पैकेज होता तो आवंटन के मामले में इन 10 राज्यों को ही प्रमुखता मिलनी चाहिए थी। मगर ऐसा नहीं है। इसलिए 20 लाख करोड़ को कोरोना पैकेज के बजाए कोरोना बजट कहना अधिक उपयुक्त लगता है।

इससे यह उम्मीद भी जगती है कि वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में भारत अपने प्रभुत्व का और विस्तार कर सकता है। दुनिया में चीन की विसनीयता घटी है और अमेरिका के साथ यूरोप कमजोर हुआ है। बाजार भारत के लिए और ज्यादा  खुल गया है। ऐसे में आत्मनिर्भर भारत दुनिया के लिए भी मददगार हो सकता है। मेड इन चाइना के बजाय मेड इन इंडिया का डंका बजे, इसके लिए भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग के साथ ही इकोनॉमी के लिहाज से अहम दूसरे सेक्टरों को भी मजबूती से खड़ा करना होगा। भारत ने इस ओर अपने कदम भी बढ़ाए हैं।

कैश फ्लो को बनाए रखने के लिए आरबीआई पिछले तीन महीनों में चार बार अर्थव्यवस्था को ‘लिक्विडिटी इंजेक्शन’ लगा चुका है। पहले लॉकडाउन के दो दिन बाद 27 मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी 1.7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया था। इन दोनों का जोड़ 9.74 लाख करोड़ रुपये होता है, जो 20 लाख करोड़ के पैकेज में शामिल है।
 
वित्त मंत्री की ओर से इस पैकेज का जो ब्योरा सामने आया है, उसमें हमारी इकोनॉमी के इंजन माने जाने वाले एमएसएमई को लेकर सरकार का नया एक्शन प्लान दिखा है। नये पैकेज में छोटे, लघु और मध्यम उद्योगों की परिभाषा का विस्तार हुआ है और 200 करोड़ तक के निवेश तक उन्हें विदेशी संस्थानों की प्रतियोगिता से मुक्त खुला मैदान दिया गया है। इसी तरह बिना गारंटी के तीन लाख करोड़ रु पये तक का कर्ज भी बुरे दौर से गुजर रहे छोटे, मझौले और मध्यम उद्योगों को जीवनदान दे सकता है। 

इस पर दो-राय हैं कि अगर एमएसएमई को लोन पर ब्याज दर में राहत मिलती तो वह उनके ज्यादा काम आती। लेकिन सरकार ने पूंजी की कमी को पूरा करके इस श्रेणी के कारोबारियों का बोझ हल्का करना ज्यादा जरूरी समझा। हालांकि इस बारे में सब एक-राय हैं कि एमएसएमई को मजबूत करना रोजगार के आसरे रहने वाले मजदूर को मजबूत करना भी है, क्योंकि अकेला यही सेक्टर 15 करोड़ लोगों को रोजगार देता है।

इसके साथ ही कोविड-19 से लड़ाई में स्वास्थ्य सेवाओं को भी और मजबूती देने की कोशिश हुई है। पीएम केअर्स फंड से 3,100 करोड़ रुपये जारी करके उस आलोचना का भी जवाब दिया गया है, जिसमें कहा जा रहा था कि इस फंड का पैसा खर्च क्यों नहीं हो रहा है। इनमें से दो हजार करोड़ रु पये वेंटीलेटर्स पर और हजार करोड़ रुपये प्रवासी मजदूरों पर खर्च होंगे। दोनों तात्कालिक और फौरी जरूरत हैं।

श्रमिक ट्रेनें चलाकर भी सरकार मजदूरों को उनके घर लौटने में लगातार मदद कर रही है। आम लोगों के लिए भी स्पेशल एसी ट्रेन शुरू की गई है, हालांकि समूची रेल सेवा बहाल होने में अभी वक्त लगेगा। शराब की दुकानें खोलने के अलोकप्रिय फैसले के साथ ही यह तय हो गया था कि लॉकडाउन 4 आएगा, मगर यह अलग रंग-रूप में होगा-इसका संकेत प्रधानमंत्री दे चुके हैं। इससे स्पष्ट है कि अब जिंदगी दो गज की दूरी रखकर कोरोना के साथ चलेगी। इसलिए देश को मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि देखने के लिए तैयार रहना होगा। यह भी सच है कि तीन लॉकडाउन के बावजूद कोरोना के मरीजों का बढ़ना रु का नहीं, रफ्तार जरूर स्थिर रही। बीते दो हफ्तों से भारत ने रोजाना 3 हजार से ऊपर का स्तर बनाए रखा है।

यकीनन आगे रास्ता कठिन है, मगर आत्मनिर्भरता का नारा देकर प्रधानमंत्री ने चुनौतियों के बीच उम्मीद को नई रफ्तार देने की कोशिश की है। यह भी गौर करने वाली बात है कि आज जिन्हें हम विकसित या विकासशील अर्थव्यवस्थाएं कहते हैं, वो सब कुछ-न-कुछ अंशों में अपनी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर हमारा देश विकास की नई स्वदेशी जमीन तैयार कर पाता है, तो यह ना केवल हमारी मुश्किलें दूर करेगा, बल्कि दुनिया के लिए भी नई मिसाल का काम करेगा।

उपेन्द्र राय


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment