पाबंदियों से एग्जिट की रिहर्सल वाला लॉक-डाउन
अगर मियाद नहीं बढ़ी होती तो आज के बाद देश लॉक-डाउन से फ्री हो जाता, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और इसकी जगह अब सोमवार से देश में लॉक-डाउन थ्री लागू होने जा रहा है।
पाबंदियों से एग्जिट की रिहर्सल वाला लॉक-डाउन |
दो हफ्ते का यह लॉक-डाउन 17 मई तक जारी रहेगा। हालांकि इस दौर के लॉक-डाउन में पाबंदी कम और रियायत ज्यादा दिख रही है। रेड जोन के 130 जिलों को छोड़ दिया जाए, तो ऑरेंज और ग्रीन जोन वाले 603 जिलों में लॉक-डाउन थ्री काफी कुछ लॉकडाउन-फ्री जैसा ही होगा, लेकिन हर जोन में भीड़ लगने की हर संभावना पर बंदिश बरकरार रखी गई है। इसका मतलब यह समझाना है कि कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है और लड़ाई अब भी लंबी चल सकती है।
कई राज्य सरकारें ही नहीं, भारत के हालात पर नजर रखने वाली स्वास्थ्य से जुड़ी वैश्विक संस्थाएं भी लॉक-डाउन बढ़ाने की पैरवी कर रही थीं। मशहूर हेल्थ जर्नल ‘द लांसेट’ के एडिटर-इन-चीफ र्रिचड हॉर्टन कह चुके हैं कि भारत को अब तक हुई मेहनत का फायदा लेना है तो कुल 10 हफ्ते यानी 70 दिनों का लॉक-डाउन करना होगा। 17 मई तक लॉक-डाउन के 54 दिन पूरे हो जाएंगे। अगर हॉर्टन के सुझाव को मान लिया जाए तो भारत में लॉक-डाउन को 2 जून तक बढ़ाना होगा।
इस सुझाव की व्यावहारिकता भले ही बहस के दायरे में हो, लेकिन इसकी उपयोगिता का एक सांख्यिकीय आधार तो है। जिन देशों ने लॉक-डाउन पर भरोसा किया उन्होंने कमोबेश इसे लंबी अवधि के लिए लागू किया और इसका सीधा असर कोरोना मरीजों की रिकवरी में दिखा है। चीन ने हालात को काबू में करने के लिए वुहान को 77 दिनों तक बंद रखा। स्पेन और इटली में लागू लॉक-डाउन भी अपनी मियाद पूरी करने तक 57 दिनों और फ्रांस में 56 दिनों का हो जाएगा। वुहान में मरीजों का रिकवरी रेट 93 फीसद है और फ्रांस में 25 फीसद। 54 दिनों के लॉक-डाउन के बाद हमारा रिकवरी रेट भी फ्रांस के आस-पास है।
लॉक-डाउन बढ़ाने का फैसला ऐसे वक्त लिया गया है जब लंबे इंतजार के बाद प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की शुरु आत भी हो गई है। कई राज्य सरकारें पहला लॉक-डाउन शुरू होने के समय से ही इन मजदूरों को उनके घर वापस भेजने की मांग कर रही थीं। अकेले बिहार में ही 28 लाख लोग हेल्पलाइन पर फोन कर राज्य में वापसी की इच्छा जता चुके हैं। इससे अंदाजा लगता है कि सिर्फ बिहार के ही प्रवासी मजदूरों का आंकड़ा कितना बड़ा होगा। इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के मजदूरों को भी जोड़ा जाए तो पलायन की समस्या का आकार स्पष्ट हो जाता है। इसीलिए काम की तलाश में घर से दूर रह रहे इन मजदूरों की बेचैनी को अनदेखा नहीं किया जा सकता। मुंबई, सूरत, दिल्ली के आनंद विहार की घटनाएं इसी बेचैनी का नतीजा थीं। महानगर गरीब प्रवासी मजदूरों को आर्थिक सुरक्षा देते हैं, लेकिन उनकी सामाजिक सुरक्षा की नाल तो उनके पैतृक गांवों से ही जुड़ी होती है, जहां से उन्हें रहने-खाने की स्थायी सुविधा का भरोसा मिलता है। कामकाज ठप होने और हाथ का रोजगार चले जाने से इन मजदूरों की आर्थिक सुरक्षा छिन गई है। ऐसे में सामाजिक सुरक्षा का आकषर्ण उन्हें घर की ओर खींच रहा है। एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक कुल प्रवासी मजदूरों में से आधे नौ राज्यों के 56 जिलों से ताल्लुक रखते हैं। अब जब उनकी घर वापसी का रास्ता साफ हो गया है तो इन जिलों के हॉटस्पॉट बनने का खतरा भी बढ़ गया है, क्योंकि छोटी-सी चूक से संक्रमण बड़े पैमाने पर फैल सकता है। टेस्टिंग और ट्रेसिंग के अभाव में ग्रीन जोन को रेड जोन में बदलने में देर नहीं लगेगी।
घर वापसी पर इन मजदूरों को 14 दिनों के क्वारंटीन में रखा जाएगा। क्वारंटीन की अवधि पूरी होते-होते तीसरे दौर का लॉक-डाउन भी पूरा हो जाएगा। क्वारंटीन पूरा करते ही मजदूर फिर से काम की तलाश में तुरंत वापस निकल पड़ेंगे ऐसा तार्किक नहीं दिखता। जाहिर है कि इतनी मुश्किलें झेलने के बाद वो घर पर कुछ वक्त बिताना चाहेंगे। ये मजदूर जितना वक्त घर पर बिताएंगे, शहरों के कल-कारखाने उत्पादन में उतने ही पिछड़ जाएंगे। उत्पादन का पहिया रुका रहेगा, तो गरीब मजदूरों की आमदनी भी अटक जाएगी जो उनके परिवारों के लिए जीवन-मरण का सवाल भी बन सकता है।
इसीलिए लॉक-डाउन के समर्थन के बीच इसके विरोध में भी कई आवाजें मुखर हैं। इंफोसिस के फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति का मानना है कि भारत लम्बे समय तक लॉकडाउन सहन करने में सक्षम नहीं है और लम्बा खिंचने से एक ऐसा वक्त भी आ सकता है जब देश में कोरोना वायरस के बजाय भूख से ज्यादा मौत होने लगे। इसके लिए नारायण मूर्ति ने सरकार को ‘इमोशन’ के बजाय ‘एनालिटिकल’ तरीके से सोचने को कहा है।
इसमें कोई दो-राय नहीं कि लॉक-डाउन समाज के गरीब तबके की आजीविका पर सीधा प्रहार करता है। इसीलिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी इसे अर्थव्यवस्था के लिहाज से टिकाऊ उपाय नहीं मानते। राजन का अनुमान है कि घरों में कैद होकर रह गए गरीबों की महज जिंदा रहने की बुनियादी जरूरत को पूरा करने के लिए ही सरकार को अपने खजाने से कम-से-कम 65 हजार करोड़ रु पये खर्च करने होंगे। नारायण मूर्ति और रघुराम राजन की चिंता वाजिब ही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जब ‘जान भी और जहान भी’ की बात करते हैं तो वो कमोबेश वही मंशा व्यक्त करते हैं जिसका इशारा नारायण मूर्ति और राजन कर रहे हैं। पहले लॉक-डाउन को छोड़ दिया जाए तो दूसरे और अब तीसरे दौर की तालाबंदी में सरकार की यही रणनीति दिखाई भी दी है। रेड जोन में बंदिशें कायम रखते हुए सरकार ने ऑरेंज और ग्रीन जोन में ढील को बढ़ाया है। इसका असर भी दिख रहा है। नेशनल हाईवे पर सामान्य का 60-70 फीसद तक ट्रैफिक शुरू हो गया है। हाईवे कंस्ट्रक्शन में लगे ठेकेदार भी काम पर लौट आए हैं। बंदरगाहों पर आयात-निर्यात की गतिविधियां भी शुरू हो गई हैं।
अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए इंडस्ट्री को नया पैकेज देने की सुगबुगाहट भी शुरू हो चुकी है। इसमें खास तौर पर एमएसएमई पर नजरें रहेंगी। एमएसएमई की देश की ग्रोथ में 29 फीसद और निर्यात में 48 फीसद तक की हिस्सेदारी है। पिछले आधे दशक में इस सेक्टर में रोजगार के 11 करोड़ नये अवसर पैदा हुए हैं। हालांकि मजदूरों की बड़े पैमाने पर घर वापसी का असर एमएसएमई सेक्टर पर भी पड़ेगा और यहां आर्थिक गतिविधियों के बहाल होने में समय लग सकता है।
बहरहाल, लॉक-डाउन बढ़ाने के फैसले को लेकर दो नजरिये हो सकते हैं। एक यह कि सरकार ने पहले दो लॉक-डाउन के लिए जो लक्ष्य रखे थे वो पूरे नहीं हो सके जिसके लिए तीसरे लॉक-डाउन की जरूरत पड़ी। दूसरा यह कि लॉक-डाउन सरकार की अपेक्षा के मुताबिक नतीजे दे रहा है और सरकार अगले 14 दिनों में नये लॉक-डाउन के कवच से देशवासियों की सुरक्षा को और पुख्ता कर लेना चाहती है। लॉक-डाउन 1.0 में सख्त पिता की तरह दिखी सरकार लॉक-डाउन 3.0 तक आते-आते एक दयालु मां की तरह दिखने लगी है। सरकार ने जिस तरह देश के 80 फीसद से ज्यादा हिस्सों में रियायतों का दायरा बढ़ाया है, उसे देखते हुए लॉक-डाउन थ्री देश को लॉक-डाउन फ्री करने का एग्जिट प्लान ही दिखाई दे रहा है।
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