हिमालय पर विकास के नाम पर हो रहा छेड़छाड़ पड़ेगा भारी

Last Updated 15 Jul 2025 02:33:07 PM IST

हिमालय में बाढ़ और भूस्खलन के चलते पर्यटकों और यात्रियों को बार-बार रोकना पड़ रहा है। गांव में रहने वाले लोग भारी बारिश के चलते रातभर सो नहीं पाते हैं।


हिमालय : नहीं चेते तो क्रोध पड़ेगा भारी

ऐसी भी सैकड़ों बस्तियां हैं जिनके आसपास विकास के नाम पर  चारागाह, जंगल, खेती, पुराने रास्ते, नहरें क्षतिग्रस्त हुए हैं और वहां से लोग भूस्खलन की डर से सुरक्षित स्थान की तरफ भाग जाते हैं। इस विषम परिस्थिति में गर्भवती महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सबसे अधिक तकलीफ में  हैं। 

पुराने समय में हिमालय के पर्वतीय अंचल में जब बरसात प्रारंभ होती थी तो लोग अपने मवेशियों को लेकर जंगल में घास के बीच में छानियां बनाकर निवास करते थे। जहां से वे दूध, घी, मक्खन बनाकर बेचते थे और उसके बदले उन्हें साल भर की राशन खरीदना होता था। तब उनके चारों ओर आज की जैसी आपदा की स्थिति नहीं थी और बारिश में लोगों को अपनी खेती-बाड़ी में बारहनाजा (एक ही खेत में 12 प्रकार की फसल) की फसलें तैयार होती दिखाई देती थी। हिमालय के नीचे मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी बरसाती मौसम में नदियों में बहकर जाने वाली उपजाऊ मिट्टी, पानी को अच्छी फसल के संकेत मानते थे।

अब वह पुराना समय चला गया है। गत वर्ष 2023-24 में जिस तरह की बाढ़ मध्य हिमालय से लेकर हिमाचल, जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में 500 से अधिक लोग मारे गए थे।

उसकी पुनरावृत्ति सन 2025 की शुरु आती बरसात में ही दिख रही है। बरसात के मौसम का प्रभाव उत्तराखंड और हिमाचल पर सबसे अधिक है। केदारनाथ जाने वाले रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर पिछले वर्षो से सड़क चौड़ीकरण के बाद दर्जनों डेंजर जोन बने हुए हैं। जहां पर इस बार भी सोनप्रयाग के पास पहाड़ खिसकने से लगभग 1300 यात्रियों को रेस्क्यू करना पड़ा।

जून के अंत में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलाई बैंड के पास निर्माण कार्य में लगे 18 मजदूरों में से 9 मजदूर बहकर लापता हो गये थे। यहां पर बहुत लंबे समय से औजरी, डाबरकोट, कुथनौर, पालीगाड़, सिलाई बैंड, किसाला आदि स्थान भू-धंसाव के लिए संवेदनशील बने हुए हैं। 2023-24 की बरसात में भी यहां पर लगातार निर्माण का मलबा सड़क पर बहकर आया था। इसके बावजूद भी करोड़ों खर्च करने के बाद इस मार्ग को चौड़ीकरण करने से पहले भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र को बचाने के लिए जो वैज्ञानिक उपाय होने चाहिए थे उस पर  ध्यान नहीं गया है, जिसके कारण लंबे समय से हर बरसात में यह स्थान यमुना नदी की तरफ टूट कर बह जाता है।

यमुनोत्री आने-जाने वाले तीर्थयात्री बड़ी मुश्किल से इस भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र से जान जोखिम में डालकर गुजरते हैं। जानकी चट्टी से यमुनोत्री तक 6 किमी के पैदल रास्ते पर भी एक दर्जन ऐसे संवेदनशील स्थान वैज्ञानिकों ने चिह्नित किए हैं जहां भूस्खलन का खतरा बना हुआ है। इस बार भी यहां पर लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। अत: जरूरत है कि बहुत चौड़ी सड़क के स्थान पर जहां से भूस्खलन लगातार हो रहा है उस एरिया तक पहुंच बना करके ट्रीटमेंट करने पर ध्यान देना चाहिए। सड़क मार्ग को इस डेंजर जोन पर अधिक चौड़ा करने की कोशिश करेंगे तो आने-जाने वालों को परेशानी का  सामना करना पड़ेगा।

दूसरी ओर  स्याना चट्टी के पास यमुना नदी पर झील बनने का खतरा बना हुआ है, जिस पर उत्तरकाशी के जिलाधिकारी प्रशांत आर्य लगातार नजर बनाए हुए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी यहां भूस्खलन क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण किया है। गंगा की सहायक नदी अलकनंदा, भागीरथी, भिलंगना, बालगंगा उफान पर हैं, लोग भारी बारिश और बाढ़ का सामना कर रहे हैं।

हिमाचल में पिछले 15 दिनों में लगभग 17 स्थानों पर बादल फटे हैं। अब तक लगभग 100 लोगों की जिंदगी चली गई है और 55 लोग  लापता हैं। लगभग 80 हजार की आबादी पर भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है। पूर्वोत्तर राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून पहुंचते ही हाहाकार मच गया। ब्रह्मपुत्र समेत 10 नदियां उफान पर है। सिक्किम में भूस्खलन से सेना का एक शिविर दब गया जिसमें तीन जवान शहीद हो गए थे और 6 लोग लापता हैं। असम और अरु णाचल प्रदेश में भी 10-10 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। 10 हजार लोग राहत शिविरों में रखे गए हैं। असम और मणिपुर में चार लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। 

प्रभावित लोग महसूस कर रहे हैं कि हिमालय की भौगोलिक संरचना को नजरअंदाज करके जिस तरह से फोरलाइन मार्गों का निर्माण, वनों का कटान, बहुमंजिली इमारतें, हिमालय की संवेदनशील धरती के साथ विकास के नाम पर अनियोजित छेड़छाड़, बार-बार भूकंप आना, अनियंत्रित पर्यटन और पंचतारा संस्कृति ने अधिक उपभोग करने की चाह में संकट पैदा कर दिया है। निर्माण कार्य में प्रयोग होने वाले विस्फोट से मलबा नदियों में एकत्रित होकर बाढ़ के हालात पैदा कर रहा है। निर्माण कार्य में लगी जेसीबी मशीनों ने भी पहाड़ को हिला कर रख दिया है। जो हिमालय की भूगíभक बनावट के लिए बहुत खतरनाक है। यहां के पर्यावरण और जीवनशैली के अनुरूप विकास की नई रेखा खींचनी होगी और हिमालय पर विकास के नाम पर हो रहे मैदानों के अनुरूप जैसी छेड़छाड़ को रोका जाए। 

सुरेश भाई


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