पहलगाम कांड : घरेलू आरोप-प्रत्यारोप दुखद

Last Updated 06 May 2025 11:58:49 AM IST

इस समय विपक्ष का बयान है कि वो जम्मू-कश्मीर और पहलगाम मामले पर सरकार के साथ है। इससे पहली दृष्टि में आतंकवाद के विरुद्ध देश की एकता का संदेश जाता है।


पहलगाम कांड : घरेलू आरोप-प्रत्यारोप दुखद

दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे यह कह रहे हैं कि सरकार की दिशा स्पष्ट नहीं है। 

यह दुर्भाग्यपूर्ण और अत्यंत चिंताजनक है कि ऐसे समय जब राजनीतिक दलों में एकता दिखानी चाहिए, आरोप-प्रत्यारोप और छींटाकशी का दौर चल रहा है। आतंकवादी हमले के मामले में स्वयं कांग्रेस का रिकॉर्ड इतना बुरा है कि अगर उस दृष्टि से देखें फिर उसके द्वारा प्रश्न उठाने या नरेन्द्र मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने का नैतिक आधार नहीं होना चाहिए। हालांकि विपक्ष के द्वारा सरकार पर दबाव बढ़ाना या कमियों को सामने लाना स्वाभाविक स्थिति होती है। हमारा दृश्य इससे अलग है। 

दबाव डालने और प्रश्न उठाने के पीछे सुस्पष्ट इरादा दुश्मन के विरु द्ध निर्णायक प्रतिकार की होनी चाहिए। ध्यान से देखेंगे तो कांग्रेस सहित अनेक पार्टयिां सरकार पर तो प्रश्न उठा रहीं हैं, यह भी कह रही हैं कि कार्रवाई के मामले में सरकार के साथ हैं, पर आपको इनमें पाकिस्तान का नाम नहीं मिलेगा। दूसरे, इस समय धीरे-धीरे जिस तरह स्वयं जम्मू कश्मीर के अंदर आतंकवादियों और पाकिस्तान के समर्थकों, जिन्हें ‘ओवरग्राउंड वर्कर’ कहा जा रहा है, की असलियत सामने आ रही है उन पर भी विपक्षी दल मुंह खोलने को तैयार नहीं है। 

कोई भी आतंकवादी हमला बगैर स्थानीय समर्थन के संभव ही नहीं। प्रधानमंत्री मोदी अगर स्वयं यह वक्तव्य दे चुके हैं कि अब दुश्मन को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है तो उन्होंने केवल आम लोगों को खुश करने के लिए नहीं बोला होगा। सारे प्रमुख मंत्रिमंडलीय समितियां सुरक्षा, राजनीतिक, आर्थिक की बैठकें हो चुकी हैं। 

विदेश मंत्री लगातार विदेशी नेताओं से बात कर रहे हैं और नई दिल्ली स्थित प्रमुख दूतावास के लोगों से संवाद हो रहा है। सैन्य प्रमुखों से मुलाकात के बाद यही बयान आया कि सरकार ने सेना को पूरी स्वतंत्रता दी है कि वह अपने अनुसार सूचनाओं के आधार पर जैसे चाहें कार्रवाई करें उसे सरकार का हर तरह का समर्थन प्राप्त होगा। ऐसी स्थिति में हमें अपने देश पर विश्वास करना चाहिए। 

आतंकवादियों को हर हाल में जिंदा पकड़ने की कोशिश चल रही है। अभी तक ऐसा माना जा रहा है कि आतंकवादी 25 से 30 किलोमीटर के दायरे में ही हैं। उनको जिंदा पकड़ना इसलिए आवश्यक है ताकि पूरे षड्यंत्र का पता चल जाए। जितनी जानकारी है उसकी इनके माध्यम से पुष्टि भी हो जाए। अगर मिल गए तो हाल के समय में आम लोगों पर जितने हमले हुए उनमें से अनेक के षड्यंत्रों का पता चलेगा। आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में छानबीन कर सटीक जानकारी तक पहुंचने की सबसे बड़ी भूमिका होती है क्योंकि इसके बाद आपके लिए कार्रवाई के लक्ष्य तय करने आसान होते हैं। इसलिए एनआईए की जांच को आतंकवाद विरोधी कार्रवाई का अभिन्न अंग न मानने की भूल नहीं होनी चाहिए। 

देश के लिए संतोष का विषय होना चाहिए कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, स्थानीय पुलिस, एनआईए, आदि के बीच संपूर्ण समन्वय के साथ कार्रवाई का आगे बढ़ रही है। पाकिस्तान को क्षति का मतलब मुख्य प्रायोजक सेना और वहां के राजनीतिक, मजहबी प्रतिष्ठान को क्षति नहीं होगी इस तरह का आतंकवाद रुक नहीं सकता। सेना की विचारधारा इस्लाम मजहब की ऐसी व्याख्या पर आधारित है जिसमें उनके लिए पाकिस्तान देश का लक्ष्य ही जम्मू कश्मीर को इस्लामी राज्य में परिणत कर अपने साथ मिलना है। 

तो यह आतंकवाद पैदा करने के लिए उन्हें ऐसा वैचारिक आधार देता है जिसे वहां के साथ भारतीय जम्मू-कश्मीर में भी समर्थन मिल जाता है। जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिफ मुनीर पाकिस्तान को मोहम्मद साहब के रियासत ए तैयबा के बाद दूसरा कलमा से पैदा राज्य बताते हुए कश्मीर की बात करते हैं तो हम आप आलोचना करिए यह पाकिस्तानी सेना और सत्ता के ढांचे के लिए बिल्कुल स्वाभाविक स्थिति होती है। वह आतंकवाद पर रोक लगा ही नहीं सकता। 

हम आतंकवादी को मारेंगे, फिर आगे दूसरे हमले के लिए दूसरा समूह तैयार होकर आएगा और अपने अनुसार फिर हमला कर सकता है। इसमें दुनिया में कौन हमें क्या सुझाव देता है यह मायने नहीं रखता। हमें अपनी सुरक्षा करनी है और इसके लिए कोई ताकत हमको नहीं रोक सकती। भारत को स्वयं को शत-प्रतिशत आतंकवाद से सुरक्षित करना है जम्मू- कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद आए सकारात्मक बदलाव को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाना है तो पाकिस्तान को उस हालात में पहुंचाना ही होगा जिससे वह आतंकवाद प्रायोजित करने का साहस न कर सके। उसके लिए सिंधु जल संधि समाप्त करना बहुत बड़ा कदम है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों तक में उसके विरुद्ध बातचीत शुरू कर दिया है ताकि उन्हें किसी तरह उनको मिलने वाली मदद को रोका जा सके।

चीन और तुर्की को छोड़ अन्य देशों से भी अपने संबंधों का लाभ उठाते हुए भारत पाकिस्तान की हर स्तर पर घेरेबंदी की कोशिश कर रहा है। सबसे अंतिम कदम के रूप में भारत ने पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय या तीसरे देश से भी संभावित व्यापार पर कानून में संशोधन कर पूरी तरह रोक लगा दिया है। किंतु एक लक्ष्य के साथ पाकिस्तान को उसके अपराध से कई गुणा ज्यादा क्षति पहुंचाने वाला युद्ध या सैनिक कार्रवाई आवश्यक है। विपक्षी राजनीतिक दलों में भी स्थिति की गंभीरता को समझने वाले नेता हैं। अभी तक सरकार की दिशा में भटकाव नहीं है, संकल्पबद्धता और दृढ़ता दिख रही है। यह आपसी राजनीतिक मतभेद या वोट की संकुचित चिंता से बाहर निकल एकजुट होकर बहुस्तरीय कार्रवाई के साथ खड़ा होने का समय है।
(लेख में विचार निजी है)

अवधेश कुमार


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