सामयिक : ट्रंप से आशंकित दुनिया

Last Updated 23 Jan 2025 11:17:36 AM IST

अमेरिकी विदेश नीति का एक प्रमुख उद्देश्य लोकतंत्र, मानवाधिकारों और कानून के शासन का प्रचार-प्रसार करना है।


सामयिक : ट्रंप से आशंकित दुनिया

यह अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और सहयोगियों के साथ काम करने के रूप में दिखाई देता है। ये लक्ष्य अमेरिकी विदेश नीति के केंद्रीय स्तंभों के रूप में कार्य करते हैं, और वैश्विक स्तर पर अमेरिका की भूमिका को आकार देते हैं लेकिन ट्रंप मूल्यों पर आधारित सहयोग की नीति को नकार कर अमेरिका की विदेश नीति को अधिक एकतरफा और संप्रभुतावादी बनाने की ओर देख रहे हैं। उनकी गृह और विदेश नीति में अलगाव का समान विचार नजर आता है।

देश के भीतर वे सांविधानिक प्रावधानों के साथ अलगाव करने वाली जनता के साथ खड़े हैं, और उन्होंने केपिटल हिल के दंगाइयों को माफी दे दी है, वहीं वैदेशिक संबंधों को लेकर उनकी कूटनीति फायदों की तराजू को लेकर आगे बढ़ रही है। छह जनवरी, 2021 को एक अभूतपूर्व घटना घटी थी जब उनके समर्थकों ने अमेरिकी कैपिटल पर हमला किया था। ट्रंप ने कई बार इस हमले का समर्थन किया और भीड़ को उकसाया था।

ट्रंप ने राजनीतिक हिंसा करने वाले लोगों को माफ करके लोकतंत्र की शांतिप्रिय तरीके से सत्ता हस्तांतरण की शांतप्रिय व्यवस्था पर मानो अविश्वास जता दिया है। अमेरिका का उद्देश्य वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देना और अपने आर्थिक हितों की रक्षा करना है। यह मुक्त व्यापार समझौतों, व्यापार संबंधों और निवेश को बढ़ावा देने के माध्यम से होता है। ट्रंप इससे उलट व्यवहार कर रहे हैं। वे व्यापार समझौतों के पुन: मोल-भाव करने में विश्वास रखते थे। ट्रंप ने कई पुराने मुक्त व्यापार समझौतों को संशोधित या समाप्त करने की मंशा जाहिर कर दी है। ट्रंप बहुपक्षीय संस्थाओं और समझौतों की बजाय द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता देना चाहते हैं।

ट्रंप ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते से बाहर निकलने का निर्णय लिया है, यह तर्क देते हुए कि यह समझौता अमेरिका की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगा और रोजगार में कमी करेगा। पेरिस जलवायु समझौता वैश्विक समझौता है, जो जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और वैश्विक तापमान को बढ़ने से रोकने के उद्देश्य से 2015 में पेरिस, फ्रांस में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 195 देशों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था। पेरिस जलवायु समझौता ऐतिहासिक समझौता है, जो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए वैश्विक प्रयासों को एकजुट करता है। हालांकि यह समझौता स्वैच्छिक है, और इसमें कानूनी बाध्यता नहीं है, फिर भी यह देशों को अपना उत्सर्जन कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए जिम्मेदार ठहराता है। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि देशों द्वारा तय किए गए लक्ष्य कितने प्रभावी तरीके से लागू होते हैं, और क्या वे समय-समय पर अपने लक्ष्य बढ़ाने के लिए तैयार होते हैं।

पेरिस समझौते के तहत देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी करने की दिशा में काम करना होता है, जिससे ग्लोबल वार्मिग को सीमित किया जा सके। इसके लिए दुनिया के प्रमुख कार्बन उत्सर्जक देशों, जैसे अमेरिका, चीन, भारत, यूरोपीय संघ आदि, को अपनी नीति के अनुसार उत्सर्जन में कमी लाने के उपाय करने होते हैं। अमेरिका इससे अलग हट कर अपनी वैश्विक जवाबदेही से हट रहा है, और ट्रंप को इससे परहेज नहीं है। ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र, नाटो, और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों को लेकर अपनी असहमति व्यक्त की। उनका मानना था कि ये संगठन अमेरिका के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं, और अमेरिका के योगदान को उचित नहीं मानते।

नाटो और यूरोप के साथ अमेरिका के हित बहुत गहरे और विविध हैं, जो सुरक्षा, आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से जुड़े हुए हैं। अमेरिका के लिए नाटो और यूरोप के साथ सहयोग और संबंध बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये उसके वैश्विक रणनीतिक और सुरक्षा हितों के लिए अहम हैं। नाटो, और विशेष रूप से अमेरिका, यूरोप की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रूस के खिलाफ मजबूत रक्षा स्थिति बनाए रखने का प्रयास करते हैं। ट्रंप पुतिन को सशक्त नेता मानते हैं। उन्होंने कई बार कहा है कि पुतिन मजबूत और सक्षम नेता हैं, जो अमेरिका के लिए लाभकारी हो सकते हैं। ट्रंप पुतिन से सीधे संवाद स्थापित करने पर बल देते हैं।

ट्रंप की व्यक्तिगत सोच और अमेरिका की पारंपरिक रक्षा और सामरिक नीति में गहरा अंतर है। यह स्थिति अमेरिका की वैदेशिक नीति का संकट बढ़ा सकती है। अमेरिका के लिए भारत का महत्त्व कई स्तरों पर फैला हुआ है। भारत उसका बड़ा रणनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक साझेदार है, जो अमेरिकी हितों को दक्षिण एशिया, एशिया-प्रशांत और वैश्विक स्तर पर मजबूत करता है। ट्रंप ने भारत के साथ व्यापार असंतुलन को लेकर चिंता जताई है। वे भारत पर शुल्क को कम करने का दबाव  डाल सकते हैं। पिछले कार्यकाल में ट्रंप प्रशासन के तहत भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग और सैन्य संबंधों में काफी वृद्धि हुई थी। दोनों देशों ने अधिक संयुक्त सैन्य अभ्यास किए और अमेरिका ने भारत को उच्चस्तरीय रक्षा प्रौद्योगिकी और उपकरणों की आपूर्ति की।

ट्रंप प्रशासन ने 2019 में कश्मीर मुद्दे पर भारत के पक्ष में समर्थन दिया। ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ भी संवाद को बढ़ावा दिया लेकिन भारत के साथ उनकी साझेदारी मजबूत रही। उन्होंने भारत के साथ अपने संबंधों को अहम रणनीतिक साझेदारी के रूप में देखा। भारत को उम्मीद है कि क्वॉड समिट में शामिल होने ट्रंप इस साल भारत आएंगे। ट्रंप इस बार अमेरिका फस्र्ट नीति को लेकर ज्यादा आक्रामक हैं।

माना जा रहा है कि भारत को इमिग्रेशन और ट्रेड के मसले पर ट्रंप प्रशासन से चुनौती मिलेगी। ट्रंप प्रशासन भारत के साथ अपने संबंध कैसे आगे बढ़ाता है, इस पर भारत के साथ अमेरिकी हित भी निर्भर करेंगे। ट्रंप का विभिन्न देशों और वैश्विक संगठनों के प्रति अस्पष्ट रुख आशंकाएं बढ़ा सकता है। यह स्थिति अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा, क्वाड, पश्चिमी गठबंधनों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चुनौतीपूर्ण है। विश्व से अलगाव रखने की ट्रंप की नीतियों के बूते अमेरिका के राष्ट्रीय हित कैसे पूरे होंगे, यह बड़ा सवाल है।
(लेख में विचार निजी हैं)

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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