ईरान-पाक संघर्ष : भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताएं

Last Updated 01 Feb 2024 12:56:03 PM IST

पाकिस्तान द्वारा सुन्नी आतंकवादी समूह जैश-अदल को रोकने में विफल रहने पर ईरान ने पिछले हफ्ते ईरान-पाकिस्तान बॉर्डर पर हवाई हमले किए।


दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान की धरती से ईरान विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। जवाब में पाकिस्तानी वायु सेना ने भी ईरानी क्षेत्र में बलूच अलगाववादी शिविरों पर हमले किए। इस्लामाबाद का दावा है कि ऑपरेशन ‘मार्ग बार सर्माचर’ के दौरान कई आतंकवादी मारे गए।

एक बात तो स्पष्ट है कि वर्तमान में पश्चिम एशिया में दो युद्ध क्षेत्र बनते जा रहे हैं, जिससे समूचे क्षेत्र में शांति के लिए खतरा बनेगा। युद्ध का पहला क्षेत्र गाजा है जहां पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के हमलों के कारण इस्राइल और हमास के बीच युद्ध चल रहा है। दूसरे क्षेत्र के रूप में ईरान-पाकिस्तान के बीच शुरू हुआ यह संघर्ष है। प्रश्न उठता है कि क्या इतने के बाद दोनों देशों के बीच टकराव खत्म हो जाएगा या और यह बड़े टकराव का रूप लेने वाला है? क्या पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करके ईरान को और मजबूत बना दिया है? अमेरिका और ईरान के बीच लंबे संघर्ष के बावजूद अमेरिका ने कभी ईरान की सीमा के भीतर हमला किया हो, ऐसा नहीं जान पड़ता।

इस्राइल और ईरान ने कट्टर दुश्मन होने पर भी कभी एक दूसरे की सीमा के अंदर आने का जोखिम नहीं उठाया। मगर पाकिस्तान ने यह जोखिम उठाया है। सवाल है कि इसके जवाब में ईरान का अगला कदम क्या हो सकता है। ऐसा भी माना जा रहा है कि ईरान भारी दबाव में है क्योंकि अमेरिका और इस्राइल, दोनों हमास के हमलों में उसकी भूमिका और फिलिस्तीनी संगठन के सक्रिय समर्थन के लिए पश्चिम एशियाई राष्ट्र पर हमला करने के लिए तैयार हैं। यमन के हूथी समूह और लेबनान के हिजबुल्ला के समर्थन देने के कारण अमेरिका ईरान से नाराज है वहीं इस्रइल ने भी चेताया है कि हिजबुल्ला को ईरान बाहरी समर्थन देता रहा तो वह युद्ध को लेबनान तक ले जाने में संकोच नहीं करेगा।

पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर ईरानी एयरस्ट्राइक के मामले पर भारत सरकार ने प्रतिक्रिया देते हुए इसे आत्मरक्षा के लिए कार्रवाई बताया है। नई दिल्ली ने कहा, ‘यह ईरान और पाकिस्तान के बीच का मामला है। जहां तक भारत का सवाल है, आतंकवाद के प्रति हमारी जीरो टोलरेंस की नीति है। हम उन कार्रवाइयों को समझते हैं, जो देश अपनी आत्मरक्षा में करते हैं’। जगजाहिर है कि भारत हमेशा से आतंकवाद खासकर पाकिस्तान की धरती से चलने वाले आतंकवाद को लेकर वैश्विक स्तर पर ध्यान खींचता रहा है, और आतंकवादियों के मंसूबों पर कार्रवाई भी करता आया है। हालांकि तेहरान और इस्लामाबाद के बीच संबंधों का इतिहास पुराना है। ईरान के शाह ने 1950 में पाकिस्तान का दौरा किया था और पाकिस्तान को मान्यता देने वाला पहला देश होने का गौरव हासिल किया था। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए दो युद्धों में ईरान में पाकिस्तान का साथ दिया था। 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी वायु सेना की रक्षा में ईरान मजबूती के साथ खड़ा रहा। 1971 के युद्ध में भी ईरान ने पाकिस्तान का साथ दिया था।

बात अगर भारत की है तो ईरान के साथ उसके रिश्तों में सुधार 1970 के बाद से आना शुरू हुआ जब भारत ने ईरान से बड़ी मात्रा में तेल खरीदना शुरू किया। आज समय ऐसा है जब भारत और ईरान पाकिस्तान द्वारा पोषित सुन्नी कट्टरपंथी समूह से संघर्ष कर रहे हैं। 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ईरान दौरे से दोनों देशों के बीच जिस ‘दोस्ती’ की मिसाल दी गई, उसको ईरान ने एक साल बाद ही कश्मीर पर भारत के खिलाफ दिए बयान से खत्म कर दिया। पश्चिम एशिया में चीन की घुसपैठ ने ईरान को भी नहीं छोड़ा है। चीन के 400 अरब डॉलर के लुभावने निवेश का शिकार ईरान हो चुका है। वैसे देखें तो पाकिस्तान और ईरान के संघर्ष के इलाकों में सबसे ज्यादा निवेश चीन का ही है। चीन ने अब दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की सलाह दी है।

दरअसल, ईरान और पाकिस्तान का एक दूसरे के इलाकों पर हमला करने से भारत भी प्रभावित होने वाला है। कूटनीतिक रूप से भारत क्षेत्रीय स्थिरता के लिए मध्य-पूर्व के कई देशों के साथ जुड़ा हुआ है। ऐसे में मध्य-पूर्व में सुरक्षा को लेकर भारत को भी पहले से अपने रुख को बदलने की जरूरत पड़ सकती है। दोनों देशों के बीच तनाव से ऊर्जा सुरक्षा क्षेत्र में प्रभाव पड़ना निश्चित है क्योंकि ईरान भारत के लिए तेल का महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है।

इस क्षेत्र में तनाव का मतलब व्यापार मार्गों और कनेक्टिविटी प्रभावित होना भी है। पश्चिम एशिया में अस्थिरता भी भारत के लिए चिंता का विषय है, विशेषकर सऊदी अरब और इराक से ईंधन शिपमेंट पर भारत बहुत अधिक निर्भर है। भारत विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर भी काम कर रहा है, जिनमें ईरान और पाकिस्तान, दोनों शामिल हैं, जैसे चाबहार बंदरगाह परियोजना। यह संघर्ष ऐसी पहलों की प्रगति और व्यवहार्यता को प्रभावित करने वाला है।

शगुन चतुर्वेदी


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