आर्थिकी : चुनावी फिजां और चुनौतियां
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लगातार तीसरा आम चुनाव जीत कर अपनी सरकार बनाने की सुगबुगाहट के बीच सबकी नजर अब 2024-25 के आम बजट पर है।
आर्थिकी : चुनावी फिजां और चुनौतियां |
केंद्र सरकार के आगामी बजट में जहां आयकर छूट सीमा 7.5 लाख रुपये तक बढ़ाने के कयास लग रहे हैं वहीं देश में रोजगार के मौके बढ़ाने, महिलाओं की जेब में हर महीने नकद राशि डालने तथा महिला किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने संबंधी कुछ ठोस घोषणा भी हो सकती हैं। चुनावी साल होने के कारण आगामी बजट में लोकलुभावन वायदों का पिटारा खुलना कतई अस्वाभाविक नहीं है। मगर यह अनुदान मांगों और बीतते साल 2023-24 का आर्थिक लेखा-जोखा भर होगा। फिर भी बजट घोषणाओं को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चुनावी मुद्दा बनाने की पूरी संभावना है।
देश के आर्थिक मानक फिलहाल मिले-जुले हैं। राम मन्दिर प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव के बावजूद शेयर बाजार लगातार गिर रहा है, और रोजगार संवर्धन तथा गरीबी उन्मूलन संबंधी सरकारी आंकड़ों पर बहस छिड़ी हुई है। चालू माली साल में अप्रैल-सितम्बर के बीच दो तिमाहियों में जीडीपी में दर्ज कुल 7.7 फीसद तेजी से भारत को दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था का खिताब मिला है। प्राथमिक अनुमान के अनुसार 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.3 फीसद रहने के आसार हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार अप्रैल-जून के बीच जीडीपी 7.8 फीसद और जुलाई-सितम्बर के बीच 7.6 फीसद बढ़ी है। अक्टूबर, 2023 से मार्च, 2024 की छमाही के दौरान जीडीपी में 7.3 फीसद वृद्धि का अनुमान है।
यह अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिसम्बर, 2023 में समाप्त तिमाही के लिए जताए गए 6.5 फीसद और मार्च, 2024 में समाप्त तिमाही के लिए छह फीसद के अनुमान से कहीं अधिक है। अंतिम उपभोग सूचकांक 2022-23 में जहां महज 0.1 फीसद था वहीं 2023-24 में बढ़कर 4.1 फीसद पहुंच सकता है। सकल स्थिर पूंजी वृद्धि दर लगातार तीसरे साल दहाई में आंकी जा रही है। हालांकि वृद्धि दर, जो 2022-23 में 11.4 फीसद थी, बढ़कर 2023-24 में 10.1 फीसद रह जाने का अनुमान है। मगर इसका दहाई में बरकरार रहना महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में वृद्धि दर के दहाई में बरकरार रहने में चालू माली साल में अधिक सरकारी पूंजीगत निवेश का हाथ है। हालांकि विनिर्माण क्षेत्र द्वारा 2023-24 की तेज वृद्धि दर में सबसे ज्यादा 6.5 फीसद योगदान महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 2022-23 में यह दर महज 1.3 फीसद भी।
हालांकि रोजगार प्रदान करने वाले प्रमुख सेक्टरों कृषि एवं व्यापार, होटल, परिवहन, संचार एवं प्रसारण संबंधी सेवाओं में आर्थिक गतिशीलता मंद हुई है। इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिशीलता 2022-23 में क्रमश: चार फीसद एवं 14 फीसद वृद्धि दर्ज हुई थी वहीं 2023-24 में घटकर क्रमश: 1.8 फीसद एवं 6.3 फीसद रह गई है। इसी वजह से अर्थशास्त्री अगले माली साल 2024-25 में जीडीपी की वृद्धि दर छह फीसद पर अटक जाने का अंदेशा जता रहे हैं। इसी तरह 2023-24 में सकल वृद्धि दर 6.9 फीसद रहने का अनुमान भी जताया गया है। इसकी वजह अर्थशास्त्री राजस्व वसूली में कमी के कारण राजकोषीय घाटे के बजट अनुमान से कहीं अधिक रहने की आशंका बता रहे हैं।
उनके अनुसार 2023-24 में नॉमिनल यानी सांकेतिक जीडीपी 8.9 फीसद पर अटक सकती है, जो बजट में अनुमानित 10.5 फीसद से 1.6 फीसद कम है। प्राथमिक अग्रिम अनुमान में इस मद में 296.6 लाख करोड़ रुपये राजस्व की उगाही का अंदाज है, जो बजट में अनुमानित 301 लाख करोड़ रुपये उगाही से कम है।
इसके कारण राजकोषीय घाटा चालू बजट में अनुमानित दर से अधिक रह सकता है। इससे सिर्फ राजकोषीय घाटा बढ़ेगा अथवा यह अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर ग्रहण लगाएगा यह तो सरकार द्वारा आंतरिक बजट में पुनर्निर्धारित अनुमान प्रस्तुत किए जाने पर ही स्पष्ट हो पाएगा। मगर इसमें अनाज, खाने के तेल एवं सब्जी-फल आदि के दामों की भी भूमिका रहेगी। हालांकि वित्त मंत्रालय का दावा है कि अर्थव्यवस्था में विकास की दर बढ़ने के पीछे केंद्र सरकार द्वारा पिछले नौ साल में किए गए व्यापक आर्थिक सुधार हैं। इसके बावजूद धीमी गति से रोजगार बढ़ने के आंकड़े चुनावी वर्ष में मोदी सरकार की चिंता बढ़ा सकते हैं। हालांकि भारतीय स्टेट बैंक ने अपने सर्वेक्षण के हवाले से विषम आर्थिक तरक्की के दावे को खारिज किया है। सर्वेक्षण के अनुसार आर्थिक तरक्की धन्ना सेठों के हित साधने तक सीमित नहीं है, बल्कि उससे गरीबी वास्तव में घट रही है।
भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष के अनुसार सबसे निचले स्तर पर मौजूद आबादी पिछले कुछ वर्षो में तेजी से आर्थिक तरक्की कर रही है। सबसे निचले तबके के घरों एवं फर्मो में आमदनी एवं खपत में खासी तेजी आई है। व्यक्तिगत आय विषमता 2015 में 0.472 के आकलन वर्ष के मुकाबले 2023 में 0.402 तक घटी है। बैंक के अनुसार साल 2023 में गिनी कॉएफिशिएंट 0.402 तक गिर रहा है। आकलन वर्ष 2015 में सालाना 3.5 लाख आमदनी वालों में 36.3 प्रतिशत आयकर रिटर्न फाइल करने वालों की आमदनी बढ़ने से उनका जीवन स्तर ऊपर उठा है। बैंक के अनुसार सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों में साल 2013-14 से 2020-21 के बीच सालाना 10 करोड़ रुपये कारोबार वाले 19.5 फीसद सूक्ष्म उद्योगों का कारोबार इतना बढ़ गया कि वे अब लघु, मझोले एवं बड़े उद्योगों की श्रेणी में आ गए हैं। इनमें से 4.8 फीसद लघु, 6.1 फीसद मझोले एवं करीब 9.3 प्रतिशत उद्योग बड़े उद्येागों के बराबर कारोबार कर रहे हैं।
इसे लोगों के हाथ में खर्च के लिए अधिक पैसे उपलब्ध होने का आधार बताया जा रहा है, जबकि 2012 के बाद करीब 25 करोड़ जनता के गरीबी से उबरने के आकलन में उपभोग संबंधी आंकड़े नजरअंदाज करने पर ही अर्थशास्त्री सवाल कर रहे हैं। बड़े पैमाने पर गरीबी उन्मूलन का दावा नीति आयोग ने किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को भी बुलंदशहर में इन आंकड़ों के हवाले से गरीबी घटने का दावा दोहराया तो अर्थशास्त्रियों ने पूछा कि उनकी नीतियों से इतने सारे गरीबों की आर्थिक दशा सुधर गई तो 83 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज क्यों देना पड़ रहा है?
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