मकर संक्रांति : प्राकृतिक-सांस्कृतिक पूरकता का महापर्व

Last Updated 15 Jan 2024 01:18:39 PM IST

मकर संक्रांति (Makar Sankranti) जहां संस्कृति, समाज और ज्योतिष से जुड़ा पर्व है वहीं पर सीधे तौर पर विज्ञान और सूर्य से भी जुड़ा हुआ है। इससे ताल्लुक रखने वाले अनेक मिथक प्रचलित हैं।


मकर संक्रांति : प्राकृतिक-सांस्कृतिक पूरकता का महापर्व

पौराणिक, सांस्कृतिक, आध्यत्मिक, धार्मिक, राजनैतिक जैसे अनेक संदर्भ इससे जुड़े हुए हैं। हिन्दी कैलेंडर और ईसा कैलेंडर, दोनों इस दिन एक हो जाते हैं। इसलिए इस तिथि का खास महत्त्व है। ज्योतिष के मुताबिक सूर्य इस दिन धनु राषि को छोड़कर मकर राषि में प्रवेश करता है। यह राषि उसके पुत्र की राषि कही जाती है। यदि कुंडली को ग्लोब का प्रतीक माना जाए तो यह राषि दक्षिण दिशा की द्योतक है।

जब सूर्य अपनी दिशा बदलता है तो 12 संक्रांतियां भी अपना पूर्व स्थान बदल देती हैं। यह तिथि प्रत्येक महीने की बाइस तारीख को पड़ती है। इस दिन से सूर्य की स्थिति बदल जाती है। बाइस दिसम्बर से मकर राषि में बदलाव होता है, इसलिए अनेक विद्वान इस तरीख को ही मकर संक्रांति की तिथि मानते हैं। ज्योतिष के अनुसार वर्ष भर सूर्य सभी राषियों को पार करता हुआ अपने अक्षांश पर इस दिन पूरे 360 डिग्री घूम जाता है। इसी तरह पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ घूमते हुए अपने अक्ष के दोनों तरफ 23.27 डिग्री झुक जाती है। वैसे तो यह झुकाव उत्तरी ध्रुव की ओर होता है, लेकिन सूर्य दक्षिण की तरफ बढ़ता दिखाई पड़ता है। इसी को सूर्य का दक्षिणायन कहा जाता है। वहीं पर एक दूसरी क्रिया उत्तरायण की भी होती है। जब पृथ्वी दक्षिण ध्रुव की ओर झुकती है तब सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता दिखाई देता है। यह दिन 14 जनवरी को हर वर्ष पड़ता है। सूर्य से जुड़ा होने के कारण यह पर्व प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है। सूर्य कर्क रेखा पर जब आगे बढ़ता है तब देवता पृथ्वी पर होते हैं। इसलिए संपूर्ण भारतीय समाज के लिए इस दिन पड़ने वाला पर्व विशेष महत्त्व रखता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल, मिष्ठान, वस्त्र का दान और पवित्र नदियों में स्नान करने से दुखों से छूटकारा मिल जाता है। पौराणिक संदभरे और परंपराओं से जीवंत भारतीय त्योहारों में महासंक्रांति भी है। शास्त्रों में सूर्य के तेज, ओज और प्रकाश को लेकर अनेक प्रतिबिंब खींचे गए हैं।

अथर्ववेद में कहा गया है, जैसे सूर्य प्रकाशमान है, तेज से भरा, उसी तरह से भगवान भास्कर मुझे भी तेज से भर दें। प्रयागराज में इस दिन दान-स्नान का खास महत्त्व है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जो व्यक्ति मकर संक्रांति से लेकर माघ के महीने तक गंगा स्नान करता है और असहायों, गरीबों और रोगग्रस्त व्यक्तियों को सामथ्र्य के मुताबिक दान देता है, उसका सांसारिक और लौकिक जीवन सफल हो जाता है। प्रयाग में एक माह की साधना किसी तपस्या से कम नहीं है, और इसका फल भी कई यज्ञों से अधिक है, ऐसी पौराणिक मान्यता है। जैसे भारतीय संस्कृति विविध रंगों वाली है, उसी तरह से मकर संक्रांति के रंग भी तरह-तरह के हैं। उत्तर भारत में जहां इसे मकर संक्रांति, खिचड़ी कहा जाता है वहीं पंजाब में माघी और दक्षिण में पोंगल कहा जाता है। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में यह सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है जिसे चार दिन मनाया जाता है। कर्नाटक में इसके मनाने का ढंग अलग तरह का है। यहां सभी लोग नए और रंगीन कपड़े पहनते हैं। मित्रों और रिश्तेदारों के घर जाकर मेल मिलाप की परंपरा है। मिठाइयां, तिल, गुड़, गन्ना, सूखा नारियल, भुने चने, मूंगफलियां और तिल का बना लड्डू देने की परंपरा है। इस दिन जानवरों को नहलाते हैं। उनके सींग धोकर उन्हें आकषर्क रंगों में रंगा जाता है।

कर्नाटक में मकर संक्रांति खास तरह का त्योहार है, इसलिए आयोजन भी खास तरह के किए जाते हैं। गुजरात में मकर संक्रांति पतंगों और नए बर्तन खरीदने का त्योहार है। महाराट्र में मकर संक्रांति मनाने का अलग तरह का ढंग है। इसे रंगीन अनाज के दाने के लेन-देन के साथ मनाए जाने वाले इस त्योहार को नई मित्रता के रिश्ते के रूप में मनाया जाता है। भुने तिल गुड़ के तिल के साथ बांटने की भी परंपरा यहां पर है। लोग इस अवसर पर एक गीत गाते हैं-तिल, गुड़ घया/गुड़-गुड़ बोला। यानी हमारे आपस के  रिश्ते अब मधुर बनेंगे और हमारे विचारों में पूरकता आएगी। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में इस दिन खिचड़ी खाने की परंपरा है। प्रयागराज सहित अनेक नदियों के तटों पर लोग नहाते हैं, और भिखारियों और दिव्यांगों को खिचड़ी, तिल-गुड़ और धूढ़ी देते हैं। दान करने की भी परंपरा है। पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में मकर संक्रांति के एक दिन पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। जहां रेवड़ी, भुना मक्का और मूंगफली खाए-खिलाए जाते हैं। रात में लोग आग तापते हैं और नाच-गाना करते हैं। लोहड़ी किसानों के लिए खास त्योहार है। यह त्योहार कई संदभरे से जुड़ा हुआ होता है। सामान्य बात यह है कि चाहे कहीं भी मनाई जा रही हो संक्रांति के दिन पवित्र स्नान करने की परंपरा है।

शकुंतला देवी


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