मुद्दा : इमारतों में हो भूकंपरोधी व्यवस्था

Last Updated 13 Jan 2024 01:33:03 PM IST

हाल में जापान में आए विनाशकारी भूकंप ने भारतीय हिमालय में बसे लोगों को भी डरा दिया है। डरना भी स्वाभाविक ही है क्योंकि विश्व की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला हिमालय भी भूगर्वीय हलचलों के कारण भूकंप की दृष्टि से कोई कम संवेदनशील नहीं है।


मुद्दा : इमारतों में हो भूकंपरोधी व्यवस्था

भूवैज्ञानिकों का यहां तक मानना है कि हिमालय के गर्भ में इतनी भूगर्वीय ऊर्जा जमा है कि अगर वह अचानक एक साथ बाहर निकल गई तो उसका विनाशकारी प्रभाव कई परमाणु बमों के विस्फोटों से भी अधिक हो सकता है।

चूंकि जापान के लोग भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ जीना सीख चुके हैं, इसलिए वहां बड़े भूकंप में भी जन और धन की बहुत कम हानि होती है, जबकि भारत में मध्यम परिमाण का भूकंप भी भारी तबाही मचा देता है। कारण प्रकृति के साथ सामंजस्य और जन जागरूकता की कमी है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के भूकंप के चार्ट पर नजर डालें तो 15 दिसम्बर, 2023 से 1 जनवरी, 2024 की 15 दिन की अवधि में भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक रिक्टर पैमाने पर 1.8 से 6 परिमाण तक के कुल 74 भूकंप दर्ज हैं, और इनमें से सर्वाधिक 64 भूकंप नेपाल और हिमालयी राज्यों में आए हैं क्योंकि नेपाल उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों से जुड़ा है, और इसकी साइस्मिक स्थिति इन्हीं राज्यों के समान है।

इसलिए हम नेपाल की गिनती हिमालयी राज्यों से कर रहे हैं। हिमालयी राज्यों में भी सर्वाधिक 24 भूकंप जम्मू-कश्मीर और लेह-लद्दाख में दर्ज हुए हैं। इनमें भी सर्वाधिक 11 भूकंपों का केंद्र किस्तवाड़ रहा है। इनके अलावा उत्तराखंड में 6 और हिमाचल में 5 भूकंप दर्ज हुए हैं। इसी तरह पूर्वोत्तर में ईस्ट और वेस्ट गारो हिल्स, मणिपुर, अरुणाचल, मीजोरम और नागालैंड में भूकंपों की आवृत्ति दर्ज हुई है। नेपाल में 4 नवम्बर से 8 नवम्बर, 2023 तक 2.8 से 5.6 परिमाण के 17 भूकंप दर्ज किए गए। वहां एक ही दिन 4 नवम्बर को 2.8 से 3.7 परिमाण के 8 भूकंप दर्ज किए गए। भारत की संपूर्ण हिमालयी बेल्ट 8.0 से अधिक तीव्रता वाले बड़े भूकंपों के लिए अति संवेदनशील मानी जाती है।

इसका मुख्य कारण भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट की ओर लगभग 50 मिमी. प्रति वर्ष की दर से खिसकना है। हिमालय क्षेत्र और सिंधु-गंगा के मैदानों के अलावा, यहां तक कि प्रायद्वीपीय भारत में भी विनाशकारी भूकंपों का खतरा है। देश के वर्तमान भूकंपीय जोनेशन मैप के अनुसार भारतीय भू-भाग का 59 प्रतिशत हिस्सा सामान्य से बहुत बड़े भूकंप के खतरे की जद में है। भारत में भी संपूर्ण हिमालय क्षेत्र को रिक्टर पैमाने पर 8.0 अंक की तीव्रता वाले बड़े भूकंप के प्रति प्रवृत्तिमय माना गया है। इस क्षेत्र में 1897 शिलांग (तीव्रता 8.7), 1905 में कांगड़ा (तीव्रता 8.0), 1934 बिहार-नेपाल (तीव्रता 8.3) और 1950 असम-तिब्बत (तीव्रता 8.6) के बड़े भूकंप आ चुके हैं।

नेपाल में 25 अप्रैल, 2015 का 8.1 परिमाण का अब तक का सबसे भयंकर भूकंप था, जिसमें 8,649 लोग मारे गए थे और 2,952 घायल हुए थे। दरअसल, बहुत छोटे भूकंप की तीव्रता ऋणात्मक संख्या भी हो सकती है। आम तौर पर 5.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप के कारण जमीन में इतनी तेज गति होती है कि संरचनाओं को काफी नुकसान हो सकता है। बहरहाल, भारतीय हिमालय क्षेत्र में जिस विनाशकारी भूकंप की आशंका जताई जा रही है, उसकी शक्ति कई परमाणु बमों से अधिक हाने का आशंका व्यक्त की गई  है। भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं को रोका तो नहीं जा सकता। मगर प्रकृति के साथ रहना सीख कर बचाव अवश्य किया जा सकता है।

दरअसल, लोग भूकंप से नहीं, इमारतों की वजह से मरते हैं। 30 सितम्बर, 1993 को महाराष्ट्र के लातूर क्षेत्र में 6.2 परिमाण का भूकंप आता है, तो उसमें लगभग 10 हजार लोग मारे जाते हैं और 30 हजार से अधिक लोगों के घायल होने के साथ ही 1.4 लाख लोग बेघर हो जाते हैं, जबकि 28 मार्च, 1999 को चमोली में लातूर से भी बड़ा 6.8 मैग्नीट्यूड का भूकंप आता है, तो उसमें केवल 103 लोगों की जानें जाती हैं और 50 हजार मकान क्षतिग्रस्त होते हैं।

इसी तरह 20 अक्टूबर, 1991 में उत्तरकाशी के 6.6 परिमाण के भूकंप में 786 लोग मारे जाते हैं और 42 हजार मकान क्षतिग्रस्त होते हैं, जबकि 26 जनवरी, 2001 को गुजरात के भुज में रिक्टर पैमान पर 7.7 परिमाण का भूकंप आता है, तो उसमें 20 हजार लोग मारे जाते हैं, और 1.67 लाख लोग घायल हो जाते हैं। लातूर और भुज में हुई तबाही घनी आबादी और विशालकाय इमारतों के कारण हुई, जिनमें भूकंपरोधी व्यवस्था नहीं थी। इसलिए लोगों को सावधान करने के साथ ही भूकंप के प्रति जागरूक किया जाए ताकि वे अपना बचाव स्वयं कर सकें। 

जयसिंह रावत


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