इंडिया गठबंधन : चुनौतियों के बीच आस

Last Updated 13 Jan 2024 01:37:14 PM IST

जनवरी, 2024 के दो हफ्ते बीत चुके हैं। अप्रैल-मई में लोक सभा चुनाव होने हैं। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए और विपक्ष के ‘इंडिया गठबंधन’ के बीच मुकाबले की संभावना है।


इंडिया गठबंधन : चुनौतियों के बीच आस

पिछले 10 साल से भाजपा के नेतृत्व में केंद्र सरकार चल रही है। उसकी अनेक नीतियों व फैसलों से जनता में असंतोष व्याप्त है। इसके बावजूद अनेक चुनाव जीत चुका भाजपा-नीत गठबंधन लोक सभा चुनाव में जीत के प्रति आस्त है।

मीडिया का एक बड़ा तबका सत्ता-प्रतिष्ठान की वाहवाही तथा विपक्ष को अर्थहीन साबित करने में संलग्न प्रतीत होता है। ध्यातव्य है कि निष्पक्ष पत्रकारिता का काम जनसरोकारों से संबंधित सवालों को सरकार तथा सत्ता पक्ष से पूछना है, लेकिन इसके उलट मीडिया हमेशा विपक्ष पर हमलावर दिखता है। इसलिए इसे समय-समय पर ‘गोदी मीडिया’ और ‘मनु मीडिया’ जैसी संज्ञाओं से भी नवाजा जाता है। ऐसे में विपक्ष के लिए चुनौती और बड़ी हो जाती है कि आखिर, किन रणनीतियों के सहारे सत्ता पक्ष को चुनाव में निर्णायक टक्कर दे। सच है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जदयू के भाजपा से अलग होकर तथा राजद के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाने से विपक्ष में उत्साह का माहौल बना।

यहीं से विपक्षी दलों की ‘इंडिया गठबंधन’ की नींव पड़ी। ‘जाति आधारित सर्वे’ से संबंधित आंकड़े सार्वजनिक करने से लेकर तद्नुसार दलित, पिछड़े तथा आदिवासियों के लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाने तक बिहार सरकार के महत्त्वपूर्ण फैसलों ने राष्ट्रीय फलक पर ‘इंडिया गठबंधन’ के लिए चुनावी राजनीतिक जमीन तैयार करने में मदद की। लेकिन जनवरी, 2024 के पहले सप्ताह तक ‘इंडिया गठबंधन’ के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा न होने से लेकर नेतृत्व के रूप में संयोजक की घोषणा न होने तक से मतदाता के बीच उदासीनता, निराशा तथा भ्रम की स्थिति बनी हुई है। अपनी वर्गीय हितों की रक्षार्थ चालाकी से गोदी मीडिया समय-समय पर मतदाताओं की इस मन:स्थिति में खाद-पानी डालता रहता है। सीटों के बंटवारे के लिहाज से बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश इंडिया गठबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं।

‘इंडिया गठबंधन’ के लिए सीट शेयरिंग के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे जटिल है। वजह यह है कि कांग्रेस, गठबंधन में बसपा को शामिल करना चाहती है। अपनी राजनीतिक जमीन हासिल करने के लिए बसपा 30-35 सीटों से कम पर समझौता करना नहीं चाहती। सपा, जो पहले से इंडिया गठबंधन का हिस्सा है, कम से कम 40 सीटें अपने लिए चाहेगी। आरएलडी भी 7-10 सीट चाहेगी। कांग्रेस भी प्रदेश में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन की तलाश कर रही है। वह भी कम से कम 15-20 सीट चाहेगी। इन गुत्थियों के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों (सपा-बसपा) के ‘इंडिया गठबंधन’ के हिस्से बनने के आसार कम हैं। गौरतलब है कि सपा और बसपा, दोनों की राजनीतिक जमीन की बुनियाद लोहिया और अंबेडकर की वैचारिक सरणी से सिंचित हुई है। दोनों ही दल उसे खोना नहीं चाहेंगे।  

यद्यपि जनमानस की इच्छा हमेशा से यही रहती है कि लोहिया और अंबेडकरवादियों का साझा राजनीतिक मंच बने जो दक्षिणपंथी वैचारिक सरणी की वाहक भाजपा को चुनावी शिकस्त दे। सैद्धांतिक रूप से यह जितनी जरूरी पहल लगती है व्यावहारिक दृष्टि से उतनी ही असंभव प्रतीत होती है। हालांकि 2019 के लोक सभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन चुनाव बाद दोनों के बीच दूरियां बढ़ गई। पिछले पांच साल में विपक्ष के तौर पर सपा की सक्रियता जमीनी स्तर पर दिखाई दी है वहीं बसपा की राजनीतिक सक्रियता जमीनी स्तर पर फीकी रही। यह और बात है कि मिशनरी दल होने के नाते देश के अनेक हिस्सों में बसपा का अपना निश्चित वोट बैंक है।

वह गठबंधन का हिस्सा बनती है तो निश्चित रूप से इंडिया गठबंधन मजबूत होगा। सबसे अधिक लाभ कांग्रेस को होगा। सपा, बसपा, कांग्रेस और आरएलडी सभी गठबंधन में रहना चाहते हैं, और चुनावी समर में भाजपा को मजबूत टक्कर देना चाहते हैं, तो सभी को त्याग की भावना दिखानी पड़ेगी। ऐसा नहीं होता है तो निश्चित ही ‘इंडिया गठबंधन’ की धार कुंद होगी और गठबंधन की इस स्थिति से भाजपा उत्साहित होगी। यही कारण है कि गाहे-बगाहे भाजपा की तरफ से गठबंधन पर प्रहार किया जाता रहा है। अकारण नहीं है कि गठबंधन के स्वाभाविक अंतर्विरोधों को गोदी मीडिया प्रमुखता के साथ खबर बनाता रहता है। अंतर्विरोध तो भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन में भी है लेकिन गोदी मीडिया इस खबर को नहीं चलाता। भाजपा और गोदी मीडिया, दोनों चाहते हैं कि इंडिया गठबंधन मजबूत चुनौती न बने। यह वह बिंदु है जो ‘इंडिया गठबंधन’ के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इंडिया गठबंधन इस चुनौती को साध लेता है तो चुनावी मैदान में बेहतर विकल्प के तौर पर उतर सकती है। लेकिन इसके लिए अधिक समय लगाना भी नुकसानदायक होगा।

बिहार, बंगाल, झारखंड और महाराष्ट्र में भी सीट बंटवारे से संबंधित जटिलताएं हैं। लेकिन बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में इस गुत्थी को आसानी से हल किया जा सकता है। देखना दिलचस्प होगा कि टीएमसी, बंगाल में सीट शेयरिंग के मसले को कैसे हल करती है? बंगाल में वामपंथी दलों, कांग्रेस और टीएमसी के बीच सीटों के बंटवारे का मसला हल हो जाता है तो इंडिया गठबंधन चुनावी रणनीति में आगे निकल जाएगा। दिल्ली की सात लोक सभा सीटों का बंटवारा आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच होना है।

2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी। पंजाब और केरल में भाजपा शून्य की स्थिति में है। इसलिए इन प्रदेशों में सीट बंटवारे का प्रश्न का कोई मसला नहीं बनता। प्रमुख मुद्दों-जाति जनगणना, प्रतिनिधित्व का मसला, निजीकरण, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य, महंगाई, बेरोजगारी तथा सामाजिक सद्भाव आदि को चिन्हित कर जोर-शोर से जन-मानस ले जाने का काम इंडिया गठबंधन को करना चाहिए। अपने-अपने प्रदेश में प्रादेशिक स्तर पर घटक दलों द्वारा पदयात्रा या जनसंपर्क अभियान आदि पहल किए जाते हैं तो इससे चुनावी माहौल को सकारात्मक दिशा मिल सकती है और भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है। इसी बिंदु से ‘इंडिया गठबंधन‘ की संभावनाएँ भी परवान चढ़ सकती हैं।

प्रो. देव कुमार


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment