Hit and Run: सख्ती से पहले व्यवस्थाएं हों दुरुस्त

Last Updated 04 Jan 2024 12:46:31 PM IST

सुकून की बात है कि ट्रांसपोर्टरों की देशव्यापी हड़ताल खत्म हो गई है। देश भर के ट्रांसपोर्टर संगठनों को ‘हिट एंड रन’ मामले में सजा के नये प्रावधानों को लेकर न केवल काफी भ्रम था, बल्कि खासकर ड्राइवरों की चिंता वाजिब थी।


Hit and Run: सख्ती से पहले व्यवस्थाएं हों दुरुस्त

कानून के सबसे ज्यादा असर से डरे ड्राइवरों का डर और भविष्य की चिंता भी नकारी नहीं जा सकती। कम तनख्वाह, गरीबी में गुजारा और साधारण रहन-सहन के चलते भारत के समकक्ष माने जाने वाले देशों के मुकाबले हमारे प्राइवेट ड्राइवरों की हैसियत मजदूर से ज्यादा नहीं है।  

भारत में हर साल 4 लाख से ज्यादा सड़क हादसों में डेढ़ लाख मौतें होती हैं जबकि हिट एंड रन से 25-30 हजार लोगों की जान जाती है। सच है कि दुर्घटना जानबूझकर कोई नहीं करता। दुर्घटना के बाद ड्राइवर फरार हो जाते है क्योंकि रुकेंगे तो आसपास इकट्ठी हुई भीड़ खुद फैसला करने लगती है। अनेक उदाहरण हैं कि सड़क हादसों के बाद पकड़े गए ड्राइवर बुरी तरह पिटते हैं, उनकी मौत तक हो जाती है। कई बार लदे-लदाए वाहन समेत ड्राइवर को जिंदा तक जला दिया जाता है।

ऐसे कृत्य करने वालों के खिलाफ अक्सर मामला तक दर्ज नहीं होता। ड्राइवर जान से हाथ धो बैठता है तो उसका परिवार अनाथ होकर दर-दर भटकने को मजबूर हो जाता है। भारत में एक करोड़ से ज्यादा कमर्शियल वाहन हैं, जिनसे 20 करोड़ लोगों को काम मिलता है। ऐसे में हड़ताल होने से हुआ नुकसान समझ आता है। निश्चित रूप से सरकार ने इस कानून पर सोच-विचार कर ट्रांसपोर्टरों का पक्ष जानने की अच्छी पहल की है। यकीनन ट्रांसपोर्टेशन देश की अर्थव्यवस्था के साथ आम लोगों की सभी जरूरतों की पूर्ति करता है। सब्जी, भाजी, दूध, अनाज, दवाई और आम और खास सभी के आवागमन का जरिया भी है। ऐसे में हड़ताल से एक ही दिन में देश भर में महज पेट्रोल-डीजल की किल्लत तो सब्जियों के दूने भाव ने हालात कहां से कहां पहुंचा दिए सबने चंद घंटों में देख लिया।

यह सही है कि भारतीय न्याय दंड संहिता में पहले हिट-एंड-रन जैसी घटनाओं की खातिर कोई सीधा कानून नहीं था। आरोपी पर आईपीसी की धारा 304ए में अधिकतम दो साल की जेल या जुर्माने का प्रावधान रहा लेकिन नई भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस, जो ब्रिटिशकालीन भारतीय दंड संहिता की जगह बनी है, में ड्राइवर से गंभीर सड़क दुर्घटना होती है और वह पुलिस या किसी अधिकारी को जानकारी दिए बिना चला जाता है, तो उसे दंडित किया जा सकेगा। इसमें 10 साल तक की जेल और 7 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन सवाल है कि आरोपी ड्राइवर की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी होगी? भले ही टक्कर सामने वाले की गलती से हुई हो? भारत में हिट एंड रन को लेकर कानून में सुधार जरूरी है लेकिन सभी पहलुओं पर विचार के साथ। दुनिया भर के कानूनों को भी देखना होगा जहां ड्राइवर सम्मानजनक पेशा है।

यूएई में ऐसे मामलों में ड्राइवर को सबसे पहले गाड़ी से जुड़े दस्तावेज पुलिस को सौंपने होते हैं। घटनास्थल पर पुलिस नहीं है तो 6 घंटे के अंदर जानकारी पुलिस को देनी होगी। देरी पर वजह बतानी होगी। यहां ड्राइवर को चार साल की जेल या उससे 44,44,353 रु पये बतौर जुर्माना वसूला जा सकता है। लेकिन हादसे में कोई घायल होता है और उसे हॉस्पिटल ले जाया जाता है तो दोषी ड्राइवर को दो साल की जेल और 22 हजार रुपये तक जुर्माना वसूला जाएगा। कनाडा में ड्राइवर को 5 साल की जेल लेकिन हादसे से मौत पर आजीवन कैद का प्रावधान है। गलत जानकारी देने पर जुर्माना बढ़ सकता है।

अमेरिका में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम हैं। ड्राइवर की भूमिका से दुर्घटना की गंभीरता आंकी जाती है। इससे जुर्माना और सजा भी घट-बढ़ जाती है। जुर्माने के साथ 10 साल की जेल तक हो सकती है। ब्रिटेन में ड्राइवर के मौके पर रहना या भाग जाना भी सजा तय करता है। यहां अनिश्चित जुर्माने के साथ 6 माह की जेल का प्रावधान है। सबसे कम सड़क दुर्घटनाएं जापान में होती हैं। वर्ष 2020 में केवल 3416 लोगों को अपनी गंवानी पड़ी। भारत में हिंट एंड रन से मौतों का आंकड़ा अत्यधिक है जिसकी वजह लापरवाही, गैर-जिम्मेदाराना तरीके सड़क नियमों का पालन नहीं करना है। सीट बेल्ट-हेलमेट नहीं पहनना तथा ओवरस्पीडिंग, नशे में गाड़ी चलाना इनमें प्रमुख वजह हैं।

दुर्घटना के बाद फरार वाहन चालक का पता करने के लिए जगह-जगह लगे सीसीटीवी की मदद ली जानी चाहिए। रास्तों में टोल नाके भी पड़ते हैं जिनके साथ समन्वय बिठाकर आरोपी तक पहुंचा जा सकता है। बड़े हाईवे और राजमागरे पर कुछ हजार और खर्च करके हर किलोमीटर पर सीसीटीवी लगाए जा सकते हैं। यकीनन, तीसरी आंख यानी तकनीक से निगरानी के जरिए वाहन चालकों पर नकेल कसने के साथ उन्हें सुरक्षा भी दी जा सकती है। इसका ड्राइवरों सहित सभी पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा। जब व्यवस्थाएं दुरुस्त हो जाएंगी तो सख्त और व्यावहारिक कानूनों से भला कोई क्यों एतराज करेगा?

ऋतुपर्ण दवे


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