राजनीति : अभी मोदी ही दावेदार

Last Updated 03 Jan 2024 01:37:19 PM IST

वर्ष 2024 की शुरुआत के साथ लोक सभा चुनाव का राजनीतिक घमासान आरंभ हो चुका है। भाजपा ने राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में 50 प्रतिशत मत तथा 400 पार सीटों का लक्ष्य निर्धारित किया है।


राजनीति : अभी मोदी ही दावेदार

आज कोई पार्टी 50% मत पाती है तो उसे इतनी सीटें अवश्य मिलेंगी। हर पार्टी चुनाव के लिए बड़ा लक्ष्य तय करती है। इसे नकारात्मक दृष्टि से देखने का कोई कारण नहीं है। पहला प्रश्न तो यही है कि क्या भाजपा 2024 का लोक सभा चुनाव जीतेगी? इसके बाद यह भी कि क्या वाकई विजय का रिकॉर्ड बनाएगी?

पिछले लोक सभा चुनाव में भाजपा ने 37.7% मत के साथ 303 सीटें जीती थीं। उस समय ज्यादातर विश्लेषक मानने को तैयार नहीं थे कि भाजपा 2014 से बेहतर प्रदर्शन करेगी। 2014 में भी ऐसे कम लोग थे जो मान रहे थे कि भाजपा लोक सभा में बहुमत प्राप्त कर लेगी। भाजपा ने 31.34% मत एवं 282 सीटें प्राप्त कर आश्चर्यचकित किया था। 2014 के पूर्व अनेक विश्लेषक मोदी को खारिज कर रहे थे। यह भी कहा जा रहा था कि एकल पार्टी बहुमत का दौर खत्म है। विरोधियों ने 2019 में राफेल विमान खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप से लेकर सरकार की हर मोर्चे पर विफलता की स्थिति बताई जाती थी। 2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा की पराजय के बाद मोदी सरकार के अंत तक की घोषणा भी कर दी गई थी। कम से कम इस समय मोदी सरकार के संदर्भ में 2018-19 जैसी तस्वीर नहीं बनाई जा रही है। इसलिए 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा की रिकार्ड विजय के दावे को खारिज करने वालों के पास भी स्वीकार्य ठोस आधार नहीं है। विरोधी कुछ भी कहें, भाजपा 2024 में सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार है।

लोक सभा चुनाव का परिणाम देश की परिस्थितियों, नेतृत्व, सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन को चुनौती देने वाली पार्टियों या गठबंधन की स्थिति तथा चुनाव अभियानों पर निर्भर करता है। देश की परिस्थितियों को समझने के लिए 2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को समर्थन मिलने के कारणों को समझना होगा। एक, विश्लेषक और विरोधी पार्टयिां हिन्दुत्व और हिन्दुत्व अभिप्रेरित राष्ट्र चेतना की अंतर्धारा यानी अंडरकरंट को नहीं भांप सके जिसमें राष्ट्रीय स्वाभिमान का भाव प्रबल था। दो, मनमोहन सिंह सरकार द्वारा मुसलमानों के लिए सच्चर आयोग से लेकर रामसेतु, अयोध्या आदि मामले पर लिए गए स्टैंड से हिन्दुओं और गैर-मुस्लिमों के अंदर आक्रोश बढ़ा। तीन, लगातार आतंकवादी हमलों और उनमें पाकिस्तान की भूमिका स्पष्ट होने के बावजूद पाकिस्तान के विरुद्ध सामूहिक भावना के अनुरूप कार्रवाई नहीं करने सहित साहसी निर्णय न ले पाने से लोगों का राष्ट्रीय स्वाभिमान आहत हुआ। चार, कमजोर अर्थव्यवस्था तथा निवेश व व्यापार के क्षेत्र में निराशाजनक स्थिति से निम्न वर्ग से लेकर मध्यम वर्ग व व्यापारियों तक में असंतोष पैदा हुआ। पांच, गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी परफॉर्मर बनकर उभरे तथा हिन्दुत्व व  राष्ट्रीय स्वाभिमान के तब सबसे बड़े व्यक्तित्व थे। उन्होंने देश की स्थिति और जन भावनाओं के अनुरूप अपने प्रखर विचारों से विश्वास जीता।

अगर 2024 को देखें तो इन सभी कारकों के संदर्भ में माहौल मोदी और भाजपा के ज्यादा अनुकूल है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को है। राम मंदिर आंदोलन संघ परिवार के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद व पुनर्जागरण का आंदोलन था और मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को इस रूप में जन-जन तक पहुंचाने का कार्यक्रम चल रहा है। काशी विश्वनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, महाकाल जैसे धर्म स्थानों के पुनर्निर्माण, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अंत ने मोदी के प्रति विश्वास को गहरा किया है। लोग मानते हैं कि आतंकवाद प्रायोजित करने पर मोदी पाकिस्तान में घुस कर कार्रवाई करा सकते हैं। पाकिस्तान सहित विदेशों में जिस तरह वांछित आतंकवादियों की लगातार हत्याएं हो रही हैं उन पर लोगों की प्रतिक्रिया यही है कि मोदी ही ऐसा कर सकते हैं। विदेश नीति में पश्चिमी देशों के साथ व्यवहार में मोदी सरकार की मुखरता से भी भारतीय स्वाभिमान का भाव पुष्ट होता है। 2047 तक भारत को विश्व की महाशक्ति तथा अगले कार्यकाल में विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बना देने का उनका वादा लोगों को छू रहा है। विपक्षी गठबंधन में इस तरह का भाव एवं उम्मीद जगाने वाला कोई व्यक्तित्व नहीं है।

यूपीए सरकार द्वारा आतंकवाद में संघ को घसीटने, हिन्दू आतंकवाद, भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों के साथ सरकारी कार्रवाइयों ने असंतुष्ट कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों को मोदी के पक्ष में एकजुट किया था और वह स्थिति कायम है। कुछ बातें साफ दिख रही हैं। मसलन, विपक्ष में सनातन, हिन्दुत्व, हिन्दू धर्म, हिन्दी भाषी राज्यों आदि पर ‘इंडिया’ घटकों के अस्वीकार्य, अपमानजनक और आपत्तिजनक बयानों और इन पर कांग्रेस सहित ज्यादातर पार्टियों की चुप्पी के विरु द्ध प्रतिक्रियाएं हो रही हैं, जो मोदी और भाजपा के पक्ष में जाती हैं। दूसरे, उत्तर और दक्षिण को राजनीति के नाम पर बांटने की रणनीति भी विवेकशील लोगों को परेशान कर रही है। तीसरे, विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के 2014 और 2019 में प्राप्त वोट समान रहे। 2019 में कांग्रेस ने 19.67 प्रतिशत मत और 52 सीटें जीतीं तो 2014 में उसे 19.52% मत व 44 सीटें प्राप्त हुई थीं। अभी तक कांग्रेस इससे आगे जाती नहीं दिख रही है।

मोदी ने नेतृत्व का स्तर अपने भाषण, व्यवहार एवं कायरें से इतना ऊंचा उठा दिया है कि उसको पाना किसी के लिए भी चुनौती है। इस संदर्भ में गृह मंत्री अमित शाह एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर सबका ध्यान है। विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता के साथ  शाह ने मोदी के नेतृत्व में सरकार और संगठन में सौंपे गए या स्वयं नियोजित कायरें को समय पर पूरा कर कार्यकुशलता दिखाई है। पार्टी में मोदी के बाद वे दूसरे सर्वमान्य व्यक्तित्व हैं। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था एवं अर्थव्यवस्था, दोनों को संभालने के साथ प्रदेश की छवि सुधारी है, हिन्दुत्व एवं विचारधारा पर भारत सहित विश्व भर के भारतीयों के बीच लोकप्रियता प्राप्त की है। हाल में संपन्न पांच विधानसभा चुनावों में केंद्रीय नेताओं को उतार कर तथा संसद से त्यागपत्र दिला कर भी नेतृत्व मंडली विकसित करने की कोशिश हो रही है किंतु मोदी के उत्तराधिकारी की तलाश भाजपा ही नहीं, पूरे संगठन के लिए आवश्यक प्रश्न बन कर अवश्य खड़ा होगा। संगठन परिवार के अंदर आम प्रतिक्रिया यही है कि मोदी के नेतृत्व में जैसा माहौल बना है, कोई न कोई नेता उभर कर आएगा।

अवधेश कुमार


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