मुद्दा : सत्ता प्रतिष्ठान में क्रांतिकारी परिवर्तन

Last Updated 03 Jan 2024 01:31:09 PM IST

वर्ष 2013 में केंद्र की सत्ता में धूमकेतु की तरह जब नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) का उदय हुआ तो पूर्व की सभी परंपराओं में उथल-पुथल हो गई। अति सामान्य घर में जन्मे और संगठन कार्यों में असाधारण निपुणता के कारण वे करीब 12 वर्षो तक गुजरात के मुख्यमंत्री भी रहे। ‘चाय बेचने वाले’ के कथानक से उनका प्रधानमंत्री बनना भारतीय राजनीति की अदभुत घटना मानी गई।


मुद्दा : सत्ता प्रतिष्ठान में क्रांतिकारी परिवर्तन

किसी दल की आत्मा संगठन और कर्मठ कार्यकर्ता होते हैं, जिनके घोर परिश्रम और सेवा से ही दल शिखर स्पर्श कर पाता है। हाल में तीन राज्यों के नये मुख्यमंत्रियों, जो अति साधारण कार्यकर्ता के रूप में दलीय दायित्व में समर्पित थे, ने भी नहीं सोचा था कि वे राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। मोदी के दूरदर्शितापूर्ण निर्णय भाजपा में कुछ मौन व्रतधारी नेताओं को सजग कर रहे हैं कि वे अपने और अपने परिवार के लिए कोई पद प्राप्ति की कामना से विरत हो जाएं। अन्य राजनीतिक दलों के लिए भी मोदी का कटु संदेश है कि अपने समर्पित और योग्य कार्यकर्ताओं को संगठन और सरकार में समुचित प्रतिनिधित्व दें तभी जनता-जनार्दन से जुड़ पाएंगे। अपने हर निर्णय से देश को चौंकाने में माहिर मोदी ने नूतन मुख्यमंत्रियों को गुरुतर जिम्मेवारी सौंप कर आम मतदाताओं को विश्वास दिलाने का भी यत्न किया है कि उनके बीच का जनप्रतिनिधि ही राज्य का मुखिया होगा जो जन-जन की संवेदनाओं का संरक्षक सिद्ध होगा।

भाजपा का यह लोक कल्याणकारी उद्देश्य पूरे भारत में विस्तारित होने की गति जब पकड़ेगा तो सत्ता की संस्कृति के नये अध्याय मात्र लिखे ही नहीं जाएंगे, बल्कि वास्तविक लोकतंत्र का सूर्योदय भी हो सकेगा। इस दृष्टिकोण को यदि विपक्षी समय रहते समझ लें तो शायद कालांतर में सत्ता और विपक्ष अतीत के प्रतिकूल आचरण से सत्ता संचालन के तरीके से मुक्त होकर भारतीय राजनीति के प्रेरक गौरवशाली इतिहास की रचना भी कर सकेंगे। सत्ता का उद्देश्य सिफ;  वोट की राजनीति मात्र ही न हो, बल्कि जन सेवा का प्रभावी उपकरण भी सिद्ध हो-यही लोकतंत्र का लक्ष्य भी है। भाजपा द्वारा तीन राज्यों में नये चेहरों को आगे करने की राजनीतिक रणनीति का विपरीत दिशा और दृष्टिकोण से मनन किया जाए तो जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने की भी योजना दिख रही है।

विचारणीय यह भी है कि जब तीनों प्रदेशों में दल को अखंड बहुमत हासिल हुआ तो हर मुख्यमंत्री के साथ दो-दो उपमुख्यमंत्री बनाने का अभिप्राय क्या था। शायद एक दल के पूर्ण बहुमत वाली राज्य सरकार में कुछ अपवाद छोड़कर समान्य तौर पर उपमुख्यमंत्री का उदाहरण नहीं मिलता जबकि गठबंधन की राज्य सरकारों में इस पद की जिम्मेदारी पूर्व में दी गई थी। वैसे संविधान में उपप्रधानमंत्री या उपमुख्यमंत्री के पद का न तो प्रावधान है, और न विशिष्ट प्रकार की शक्तियां ही उन्हें प्रदत्त हैं। भाजपा नेतृत्व कहीं इस संशय में तो नहीं है कि मुख्यमंत्री के पीछे उपमुख्यमंत्रियों का समूह निर्मिंत कर मुख्यमंत्री के कार्य संचालन में सहयोग करते हुए उन पर पैनी दृष्टि भी रखी जा सकेगी और वे केंद्रीय नेतृत्व को समय-समय पर वस्तुस्थिति से अवगत भी कराते रहेंगे।

दूसरा उद्देश्य यह भी संभव है कि मुख्यमंत्री अपने दायित्व पालन में कसर नहीं छोड़ें अन्यथा कार्यरत उपमुख्यमंत्री में से किसी के हाथ मुख्यमंत्री की कमान सौंपी जा सकती है। यद्यपि सत्ता सदन संभावनाओं के चक्र में सदैव गतिशील रहा करता है, सो आकलन करना सामयिक है कि भाजपा नेतृत्व नवीनतम प्रयोग से सत्ता संतुलन के साथ तीनों राज्यों में विकास की धारा प्रवाहित करने को संकल्पित दिखता है। हां, तीन राज्यों में मुख्यमंत्री की कुर्सी की प्रबल आस लगाए नेताओं में निराशा और असंतोष की मौन धारा भले प्रवाहित हो रही हो लेकिन कड़े अनुशासन वाली पार्टी भाजपा में किसी असंतुष्ट नेता की मुखरता संभव नहीं दिखती। भले ही मध्य प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दल को विधानसभा चुनाव में कठोर परिश्रम से जिस रूप में ऐतिहासिक जीत दर्ज कराने में योगदान दिया, उन्हें भी आशानुरूप मुख्यमंत्री नहीं बनाने के क्रम में खासा आकलन है कि वे दलीय निष्ठुरता के शिकार हुए हैं।

कुल मिलाकर भाजपा ने नूतन सत्ता संस्कृति के संस्करण की नींव रखी है, जिसके सहारे सभी राज्यों में सत्ता-शासन की स्थापना में जातीय समीकरण, सांगठनिक कौशल, साफ-सुथरी छवि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि जैसे मुख्य अवयव रहेंगे। तीनों राज्यों में अप्रत्याशित चेहरों से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह भी संदेश देना चाह रहा है कि दल किसी भी कर्मठ कार्यकर्ता को उच्च जिम्मेदारी सौंप सकता है। संघ और भाजपा की संयुक्त रणनीति है कि अपनी प्रखर-सह-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पारंपरिक विचारधारा की ऊर्जा के माध्यम से देश में लोकग्राही नेतृत्व के निर्माण में सक्षम हो। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के नये मुख्यमंत्री राज्य के कल्याण में निकट भविष्य में कुछ चमत्कार दिखा सकेंगे, ऐसा सोचना कुछ शीघ्रता होगी किंतु यह तो ध्रुव सत्य दिख रहा है कि भाजपा ने विपक्षी दलों को बता दिया है कि उसने प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति और साहसिक निर्णय से सत्ता प्रतिष्ठान में क्रांतिकारी परिवर्तन की नींव डाल दी है। 

डॉ. अशोक कुमार


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