वैश्विकी : मैन ऑफ द ईयर-जयशंकर
वर्ष के अंत में दुनिया के पत्र-पत्रिकाओं ने इस बात का लेखा-जोखा लिया जाता है कि इस काल खंड में मैन ऑफ ईयर किसे दिया जाए। प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम’ ने गायिका टेलर स्विफ्ट को यह खिताब दिया। यह अमेरिकी जनजीवन के अनुरूप ही है।
वैश्विकी : मैन ऑफ द ईयर-जयशंकर |
इंटरनेट पर सक्रिय लोगों के अनुसार यह सम्मान फिलिस्तीन के पत्रकारों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने इस्राइल की भारी बमबारी के बीच, करीब सौ पत्रकारों की मौत के बावजूद, दुनिया भर के लोगों को गाजा में हो रहे नरसंहार से अवगत कराया। उन्होंने केवल समाचार ही नहीं दिये बल्कि लोगों की अंतरात्मा जगाने की कोशिश भी की।
जहां तक अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सवाल है, भारत की विदेश नीति ने दुनिया में अपना सिक्का चलाया। इसका श्रेय बहुत कुछ सीमा तक विदेश मंत्री एस. जयशंकर को दिया जाना चाहिए। भारत में यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अलग रखकर सर्वे कराया जाए तो जयशंकर ही मैन ऑफ द ईयर के हकदार होंगे। जयशंकर सैद्धांन्तिक और व्यावहारिक कूटनीति के आधुनिक चाणक्य हैं। उनकी पुस्तक ‘इंडया वे’ समसामयिक विदेश नीति को समझने का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। अगले सप्ताह उनकी पुस्तक ‘वाई भारत मैटर्स’ का विमोचन होना है। पुस्तक के शीषर्क सें इंडिया के स्थान पर भारत का प्रयोग किए जाने से ही स्पष्ट है कि इसमें देश की विरासत और इतिहास के प्रकाश में नये विदेश संबंधों की समीक्षा होगी।
जयशंकर विदेश नीति में तीन तत्वों को सबसे आवश्यक मानते हैं-‘रणनीतिक तटस्थता’, ‘रणनीतिक मौन’ और रणनीतिक छलावा’। इन पर आधारित विदेश नीति के लिए वह रामायण और महाभारत को प्रेरणा स्रेत मानते हैं। महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने ‘रणनीतिक छलावे’ का अनेक बार प्रयोग किया। छलिया कृष्ण की इसी रणनीति के जरिये पाण्डव महाभारत का युद्ध जीत सके।
स्वार्थ और पाखंड पर आधारित अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में सफल होने के लिए जरूरी है कि सिद्धान्त और नैतिकता के संबंध में व्यावहारिक रवैया अपनाया जाए। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की सिद्धान्त और नैतिकता पर आधारित विदेश नीति का खमियाजा देश को भुगतना पड़ा। प्रधानमंत्री इंदिया गांधी ने इस गलती को सुधारा और व्यावहारिक रुख अपनाते हुए बांग्लादेश की आजादी जैसी उपलब्धियां अर्जित कीं। कुछ मायनों में प्रधानमंत्री मोदी इंदिरा जी की नीति को ही आगे बढ़ा रहे हैं। यह सही है कि आर्थिक प्रगति और अन्य क्षेत्रों में विकास के कारण प्रधानमंत्री मोदी के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं।
वर्ष 2023 का अंत जयशंकर की सफल रूस यात्रा से हुआ। अगले वर्ष के दौरान भारत की विदेश नीति इस रूस यात्रा से प्रभावित होगी। जयशंकर ने भारत रूस संबंधों को फिर से नई ऊर्जा और महत्त्व प्रदान किया। अमेरिका और पश्चिमी देशों के राजनयिक और विशेषज्ञ अब यह निष्कर्ष निकालने पर मजबूर हैं कि भारत को अपने हितों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। आने वाले दिनों में भारत और अमेरिका के संबंधों में निश्चित रूप से शिथिलता आएगी।
हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ भारत को खड़ा करने की रणनीति का खोखलापन भी जाहिर होगा। यही बात भारत और अमेरिका के खेमे वाले यूरोपीय देशों पर भी लागू होगी। पश्चिमी देशों के लिए चिंता का मुख्य विषय भारत और रूस के बीच आधुनिक हथियारों के साझा उत्पादन पर बनी सहमति है। यदि इस पर तेजी से अमल हुआ तो अमेरिका और पश्चिमी देशों के हथियार उत्पादन उद्योग पर गहरी चोट पहुंचेगी।
अमेरिका और कनाडा अब सोच रहे होंगे कि खालिस्तानी आतंकवादियों को बचाने के लिए उन्होंने भारत के साथ अपने संबंधों में मनमुटाव क्यों पैदा किया। अमेरिका के लिए क्या यह जरूरी था कि वह खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू को बचाने के लिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के साथ अपने संबंध खराब करे। अब लगता है कि पन्नू प्रकरण किसी एक सोची समझी साजिश का नतीजा था। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार बाइडन प्रशासन वि नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कद को बौना बनाना चाहता है। उसकी मंशा है कि भारत अपनी ‘औकात’ में रहे। यह किसी भारतवासी को स्वीकार नहीं हो सकता। जयशंकर देशवासियों की इसी भावना को मुखर बना रहे हैं। यही उनकी सफलता का राज है।
| Tweet |