कश्मीर : अलगाववादियों पर लगाम

Last Updated 30 Dec 2023 01:35:13 PM IST

अलगाववादी संगठन मुस्लिम लीग को भारत सरकार ने पांच साल के लिए गैर-कानूनी घोषित कर दिया है। इस मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन का नेतृत्व जेल में बंद मसर्रत आलम कर रहा था।


कश्मीर : अलगाववादियों पर लगाम

केंद्र सरकार द्वारा बीते चार सालों में ऐसे अनेक संगठनों और अलगाववादियों पर शिंकजा कसा गया है, जो भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहते हुए देश की संप्रभुता व अखंडता पर खतरा बने थे। इनमें जमाते इस्लामी कश्मीर, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी प्रमुख हैं।

इन सभी को पाकिस्तान से शह और मदद मिलती रही है। इसीलिए ये पाकिस्तान की बोली भारत की धरती से बोलते रहे हैं। बावजूद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला कह रहे हैं कि भारत को घाटी में शांति के लिए पाकिस्तान से बात करनी चाहिए अन्यथा कश्मीर का हाल गाजा पट्टी जैसा हो जाएगा। बहरहाल, केंद्र सरकार की कार्रवाई और संदेश एकदम साफ है कि देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ लगे अलगाववादियों को बख्शा नहीं जाएगा। यह भारत जैसे उदार और सहिष्णु देशों में ही संभव है कि आप अलगाव और देशद्रोह का खुलेआम राग अलापिए, मासूम युवाओं को भड़काइए, राज्य और राष्ट्र की संपत्ति को नुकसान पहुंचाइए, बावजूद आपके संरक्षण का राग फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेता अलापते रहेंगे। एक समय पाकिस्तान के पक्ष में और भारत के विरोध में नारे लगाने वाले ऐसे लोगों को देशद्रोही नहीं माना जाता था, अलबत्ता, उनकी सुरक्षा और एशो-आराम पर करोड़ों रु पये खर्च किए जाते रहे हैं। यह ऐसी हैरानी में डालने वाली वजह थी जो अलगाववादियों का न केवल भारत में पोषण कर रही थी, बल्कि वे भारतीय पासपोर्ट के जरिए दूसरे देशों की सरजमीं पर इतराते हुए भारत के खिलाफ मानवाधिकार हनन की वकालत करते हुए विद्रोह की आग भी उगलते रहे। किंतु अब मोदी सरकार ने पाकपरस्त अलगाववादियों की सरकारी सुरक्षा और आर्थिक मदद बंद कर इन्हें जेल की चारदीवारी का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। 2016 में भाजपा विधायक ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भी पृथकतावादियों पर अरबों रु पये खर्च करने का मुद्दा उठाया था।

पुलवामा के भीषण हमले और 44 जांबाजों के प्राण खोने के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अलगाववादियों पर शिंकजा कसने की शुरुआत की थी। इन नेताओं में ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक, जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष शब्बीर शाह, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के हाशिम कुरैशी, पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट के अध्यक्ष बिलाल लोन और मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष अब्दुल गनी बट शामिल हैं। इनमें से कई घाटी में आत्मनिर्णय की पैरवी भी करते रहे हैं, जबकि कश्मीर से चार लाख से भी ज्यादा पंडित, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य अल्पसंख्यकों को तीस साल पहले विस्थापित कर दिया गया था, उनके प्रति राष्ट्रभक्ति कभी नहीं जताई गई और न ही यहां के बहुलतावादी चरित्र की बहाली की बात करते हैं?  हाशिम कुरैशी 1971 में इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहर्ताओं में शामिल था। बिलाल लोन पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के एक अलगाववादी धड़े का नेता है। फारसी का प्राध्यापक रहा अब्दुल गनी बट हुर्रियत का हिस्सा है। इसने कश्मीरी पंडितों के घर जलाने और उन्हें घाटी से बाहर खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई थी।

विडंबना देखिए जो देश-विरोधी गतिविधियों में ढाई-तीन दशक से लिप्त हैं, उन्हें राज्य एवं केंद्र सरकार की तरफ से सुरक्षा-कवच मिला हुआ था। इन्हें सुरक्षित स्थलों पर ठहराने, देश-विदेश की यात्राएं कराने और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने पर भी 2016 के पहले 5 साल के भीतर 560 करोड़ रु पये खर्च किए जा चुके थे। जम्मू-कश्मीर राज्य के सभी 22 जिलों में 670 अलगाववादियों को विशेष सुरक्षा दी गई थी, जबकि ये पाकिस्तान का पृथकतावादी एजेंडा आगे बढ़ा रहे थे। कश्मीरी अलगाववादियों को देश-विदेश में हवाई-यात्रा के लिए टिकट सुविधा, पांच सितारा होटलों में ठहरने और वाहन की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही थीं। स्वास्थ्य खराब होने पर दिल्ली के एम्स से लेकर अपोलो एस्कॉर्ट और वेदांता जैसे महंगे अस्पतालों में इनका उपचार कराया जाता था। इन सब खचरे को राज्य और केंद्र सरकार मिलकर उठाती थीं।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा परिषद में भाजपा सदस्य अजात शत्रु ने इस परिप्रेक्ष्य 1916 में आश्चर्यजनक खुलासा किया था। उन्होंने बताया था कि पृथकतावादियों को विधायकों, मंत्रियों और विधान परिषद के सदस्यों से कहीं ज्यादा सुरक्षा मिली हुई है? बाद में अजातशत्रु ने जो आंकड़े प्रस्तुत किए, उनसे सदन अवाक रह गया था। राज्य में कुल 73,363 पुलिसकर्मी 2016 में थे, इनमें से समूचे राज्य के 670 अलगाववादियों की सुरक्षा में 18000 कर्मी तैनात थे।
देश के खिलाफ बगावत का स्वर उगलने वालों को इतनी सुख-सुविधाएं सरकार दे रही थी, तो भला वे अलगाव से अलग होने की बात सोचें ही क्यों? देश की मुख्यधारा में क्यों आएं? राज्य सरकार इस सुरक्षा को उपलब्ध कराने का कारण अलगाववादी नेताओं और आतंकी संगठनों में कई मुद्दों पर मतभेद बताती रही है।

इस तकरीर से ही साफ है कि अलगाववादी राष्ट्र या राज्य के नहीं, बल्कि आतंकवादियों के कहीं ज्यादा निकट थे। लिहाजा, इनके अलगाव के स्वर को पनाह देना कतई राष्ट्रहित में नहीं था। ये अलगाववादी कितने चतुर और अपने परिवार के सदस्यों के सुरक्षित भविष्य के लिए कितने चिंतित रहे हैं, यह इनकी कश्मीरियों के प्रति अपनाई जा रही दोगली नीति से पता चलता है। इनका यह आचरण ‘तुम सांप के बिल में हाथ डालो, मैं मंत्र पढ़ता हूं’ मुहावरे को चरितार्थ करता है। हालांकि अलगाववादियों पर शिंकजा कसने और धारा-370 व 35-ए के समापन के बाद जम्मू-कश्मीर के आम जन का चरित्र तेजी से बदल रहा है, और वे मुख्यधारा में आकर भारतीय समरसता में घुलने-मिलने लगे हैं। मुस्लिम लीग की तरह अलगाववादी संगठनों पर भी लगाम लगाई जाती रही तो वह दिन दूर नहीं जब घाटी में जड़ से अलगाव और आतंकवाद के पोषक तत्व पूरी तरह नेस्तनाबूद हो जाएंगे।

प्रमोद भार्गव


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