वैश्विकी : हमास और इस्रइल दोनों की हार
गाजा के खंडहरों में अरब राष्ट्रवाद की बुलंद इमारत की नींव पड़ गई है। बमबारी और खूनखराबे का जब यह दौर खत्म होगा तब इस्रइल और हमास हारे हुए खिलाड़ी साबित होंगे।
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उग्रवादी संगठन हमास की हिंसक कार्रवाइयों का पुरजोर विरोध करने के बावजूद यह हकीकत स्वीकार करनी होगी कि उसके लड़ाकुओं ने अजेय माने जाने वाली इस्रइली सेना के दांत खट्टे कर दिए। स्वतंत्र और संप्रभु फिलिस्तीन का भविष्य हमास नहीं है। लेकिन फिलिस्तीन लोगों का जुझारूपन और जिजीविषा एक नए भविष्य का निर्माण कर सकती है। इस संघर्ष में सबसे बड़ी हार इस्रइल और उसके समर्थक देशों की हुई है। पश्चिमी एशिया में अरब राष्ट्रवाद का पुनर्जन्म हुआ है जो इस क्षेत्र को आतंकवाद और मजहबी कट्टरता से निजात दिला सकता है। साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के लिए सबसे बड़ा खतरा राष्ट्रवाद साबित होता है। किसी समय साम्यवादी विचारधारा यह भूमिका निभाती थी लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद यह विकल्प प्रभावहीन साविब हुआ। यहां तक कि साम्यवादी देश चीन भी कन्फ्यूशियस और राष्ट्रवाद के आधार पर अमेरिका का विरोध कर रहा है।
पश्चिमी एशिया पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों की राय है कि इस क्षेत्र में अरब राष्ट्रवाद की जो लहर सामने आई है वैसा 1948, 1967 और 1973 के अरब-इस्रइल संघर्ष के दौरान भी सामने नहीं आई थी। उस दौर में कच्चे तेल को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया था लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों की कुटिल नीति के कारण एक के बाद एक अरब देश घुटने टेकने लगे। हाल के दशकों में अमेरिका और पश्चिमी देशों ने अरब राष्ट्रवाद को कमजोर बनाने के लिए मजहबी कट्टरता और जेहाद में विश्वास रखने वाले आतंकवादी गुटों को प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन मुहैया कराया। यहां तक कि फिलिस्तीन के राष्ट्रवादी नेता यासिर अराफात और उनके संगठन फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) के खिलाफ हमास को खड़ा किया गया। अलकायदा, आईएसआईएस और कश्मीर के आतंकवादी संगठनों को भी एक समय पश्चिमी देशों की सरपरस्ती हासिल रही।
शनिवार को मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी ने काहिरा में फिलिस्तीन के घटनाक्रम पर एक अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन का आयोजन किया। अल-सिसी और जार्डन के शासक शाह अब्दुल्ला ने गाजा की तबाही के लिए इस्रइल और उनके समर्थक देशों को दोषी ठहराया। उन्होंने यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के सख्त रवैये की ओर संकेत करते हुए कहा कि फिलिस्तीन लोगों के दुख-दर्द के बारे में यह देश मौन है। उन्होंने फिलिस्तीनी लोगों को गाजा से जबरन मिस्र और जार्डन भेजने की इस्रइली साजिश का भी विरोध किया। राफा मार्ग न खोलने के पीछे मिस्र का यही तर्क है।
इस्रइल के लिए खतरे की घंटी यह है कि अरब देश अब सामूहिक रूप से एक ऐसे स्वतंत्र और संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की वकालत कर रहे हैं जिसकी सीमाएं 1968 के युद्ध के पूर्व की स्थिति पर आधारित हों। अरब देशों की यह मांग गाजा ही नहीं बल्कि पश्चिमी किनारे के फिलिस्तीनी भू-भाग को इस्रइली चंगुल से मुक्त करती है। इस क्षेत्र में इस्रइल द्वारा बसाई गई बस्तियों को भी हटाना पड़ेगा। यह देखना होगा कि अरब नेता अपनी एकता को किस सीमा तक कायम रखते हैं तथा अपनी मांगों को पूरा करने के लिए किस सीमा तक अमेरिका और पश्चिमी देशों पर दबाव बनाते हैं।
अमेरिका ने पश्चिम एशिया में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात तथा इस्रइल के बीच मेल-मिलाप के लिए भारत को साधने की कोशिश की है। इसी क्रम में आई टू यू टू (इंडिया, इस्रइल और अमेरिका संयुक्त अरब अमीरात) कूटनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत हुई है। अमेरिका ने भारत, सऊदी अरब, जार्डन और इस्रइल होकर यूरोप तक जाने वाले परिवहन मार्ग की महत्त्वाकांक्षी योजना घोषित की है। इस्रइल के खिलाफ अरब देशों के रोष को देखते हुए अब इस कूटनीतिक कवायद पर सवालिया निशान लग गया है। यह भारत के लिए एक झटका माना जा सकता है लेकिन फिलिस्तीन के लोगों की न्यायसंगत मांगों का हमेशा समर्थक रहे भारत को इसका मलाल नहीं होगा।
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