विश्व शिक्षक दिवस : शिक्षक क्रांति का हो शंखनाद

Last Updated 05 Oct 2023 01:15:46 PM IST

बहुत बड़ी शक्ति होती है-शिक्षक। शिक्षकों के कंधों पर ही उन्नत विश्व के निर्माण का गुरु त्तर दायित्व होता है।


विश्व शिक्षक दिवस : शिक्षक क्रांति का हो शंखनाद

इसी बात को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की महत्त्वपूर्ण इकाई संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने विश्व शिक्षक दिवस की शुरुआत 5 अक्टूबर, 1994 से की थी। इसका उद्देश्य विश्व भर के शिक्षकों द्वारा विश्व के लगभग दो अरब पचास करोड़ बच्चों के जीवन निर्माण में दिए जा रहे महत्त्वपूर्ण योगदान पर विचार-विमर्श करना है।
प्राचीन समय से भारत शिक्षा का बड़ा केंद्र रहा है, और उसने संसार में जगतगुरु की भूमिका निभाई है।

आर्थिक आपाधापी, आतंक, युद्ध एवं हिंसा के आज के युग में शिक्षकों की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है क्योंकि वे छात्रों को न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि उन्हें जीवन में जरूरी कौशल भी सिखाते हैं। नैतिक मूल्यों एवं शांतिपूर्ण जीवन के बारे में भी समझाते हैं जो एक अच्छे नागरिक के लिए अत्यंत आवश्यक है। शिक्षाविद् डॉ. एएस अल्तेकर ने लिखा है-‘शिक्षा प्रकाश और शक्ति का ऐसा स्रेत है, जो हमारी शारीरिक, मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों तथा क्षमताओं का निरंतर सामंजस्यपूर्ण विकास करके हमारे स्वभाव को परिवर्तित करती है, और उसे उत्कृष्ट बनाती है।’

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नेल्सन मंडेला ने कहा था, ‘संसार में शिक्षा ही सबसे शक्तिशाली हथियार है, जो दुनिया को बदल सकती है। ग्लोबल विलेज के युग में सारे विश्व की एक जैसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए।’ संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव डॉ. कोफी अन्नान ने कहा था, ‘मानव इतिहास में बीसवीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसा की सदी रही है।’ बीसवीं सदी में दो विश्व महायुद्ध, हिरोशिमा तथा नागाशाकी पर दो परमाणु बमों का हमला तथा अनेक युद्धों की विनाश लीला का तांडव संकुचित राष्ट्रीयता के कारण हुआ। डेढ़ वर्ष से रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है, उसके लिए सबसे अधिक दोषी हमारी शिक्षा है। विश्व के सभी देशों के स्कूल अपने-अपने देश के बच्चों को अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा तो देते हैं, लेकिन शिक्षा के द्वारा सारे विश्व से प्रेम करना नहीं सिखाते। यदि विश्व सुरक्षित रहेगा तभी देश सुरक्षित रहेंगे और तभी व्यक्ति सुरक्षित रहेगा।

आज की शिक्षा मिशन न होकर व्यवसाय बन गई है। शिक्षक एवं शिक्षालय अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। वर्तमान विश्व परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरु -शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है। आये दिन शिक्षकों द्वारा छात्रों एवं छात्रों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार, मारपीट एवं अनुशासनहीनता की खबरें सुनने को मिलती हैं। विश्व शिक्षक दिवस एक अवसर है, जब हम शिक्षक की धुंधली होती आदर्श परंपरा एवं शिक्षा को परिष्कृत करने और जिम्मेदार व्यक्तियों का निर्माण करने का कार्य करें।

वर्तमान समय में शिक्षक की भूमिका भले ही बदली हो, लेकिन उनके महत्त्व एवं व्यक्तित्व-निर्माण की जिम्मेदारी अधिक प्रासंगिक हुई है क्योंकि सर्वतोमुखी योग्यता की अभिवृद्धि के बिना युग के साथ चलना और अपने आपको टिकाए रखना कठिन होता है। फौलाद-सा संकल्प और सब कुछ करने का सामथ्र्य ही व्यक्तित्व में निखार ला सकता है। शिक्षक ही ऐसे व्यक्तित्वों का निर्माण करते हैं। स्वामी विवेकानंद के अनुसार सर्वागीण विकास का अर्थ है-हृदय से विशाल, मन से उच्च और कर्म से महान। सर्वागीण व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षक आचार, संस्कार, व्यवहार और विचार-इन सबका परिमार्जन करने का प्रयत्न करते रहते थे।

भारत के मिसाइलमैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है कि अगर कोई देश भ्रष्टाचार मुक्त है और सुंदर दिमाग का राष्ट्र बन गया है, तो मुझे दृढ़ता से लगता है कि उसके लिए तीन प्रमुख सामाजिक सदस्य हैं, जो कोई फर्क ला सकते हैं-वे हैं पिता, माता और शिक्षक।’ डॉ. कलाम का यह उद्धरण विश्व में शिक्षकों के प्रभाव का प्रतीक है। दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में-‘व्यक्तित्व-निर्माण का कार्य अत्यंत कठिन है। नि:स्वार्थी और जागरूक शिक्षक ही किसी दूसरे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकता है।’ हमने सुपर-30 फिल्म में एक शिक्षक के जुनून को देखा है। इस फिल्म में प्रो. आनंद के शिक्षा-आंदोलन को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

प्राचीन काल में शिक्षा का उद्देश्य ‘सा विद्या या विमुक्तये’ रहा अर्थात विद्या वही है, जो मुक्ति दिलाए। आज शिक्षा का उद्देश्य ‘सा विद्या या नियुक्तये’ हो गया है अर्थात विद्या वही जो नियुक्ति दिलाए। यही कारण है कि आज समाज में लोग केवल शिक्षित होना चाहते हैं, सुशिक्षित-संस्कारी नहीं बनना चाहते। वसुधैव कुटुम्बकम के उद्घोष के अनुरूप विश्व को एक परिवार बनाने की महती सोच विकसित हो रही है, इसी के साथ पूरी दुनिया में ‘एक जैसे शिक्षक और एक जैसी शिक्षा’ पॉलिसी पर काम किया जाना अपेक्षित है। इसके लिए अपेक्षित है कि शिक्षा क्रांति ही नहीं, बल्कि शिक्षक क्रांति का भी शंखनाद हो।

ललित गर्ग


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