उपभोक्ता संरक्षण : कोचिंग सेंटर पर नकेल सही

Last Updated 27 Sep 2023 01:29:08 PM IST

हाल में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने देश की जानी-मानी कोचिंग संस्था और विशेष रूप से यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाली मैसर्स आईक्यूआरए आईएएस के खिलाफ आदेश जारी करते हुए उसे अपनी वेबसाइट से आईएएस परीक्षा के टॉप रैंक धारकों के झूठे प्रशंसा पत्र और भ्रामक दावों से भरे विज्ञापन तत्काल हटाने के आदेश जारी किए। कोचिंग संस्थान पर एक लाख रु पये का जुर्माना भी लगाया गया।


उपभोक्ता संरक्षण : कोचिंग सेंटर पर नकेल सही

भारत में उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण की बात करें तो उपभोक्ताओं के विवादों के शीघ्र और प्रभावी रूप से समाधान को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की जगह 20 जुलाई, 2020 को कई संशोधनों के बाद नये उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ने स्थान लिया ताकि उपभोक्ताओं को न केवल पारंपरिक विक्रेताओं, बल्कि नये ई-कॉमर्स खुदरा विक्रेताओं/मंचों से भी सुरक्षा प्रदान की जा सके। इसके प्रावधानों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में सात नियमों और तीन विनियमों को भी अधिसूचित किया गया। जबकि इस अधिनियम की धारा 10 के प्रावधानों के अनुसार 24 जुलाई, 2020 से सीसीपीए की स्थापना कर उपभोक्ताओं के एक वर्ग को सशक्त बनाया गया है।

तकनीक बढ़ी है, और विज्ञापनों का प्रसार बढ़ते डिजिटलीकरण के कारण तेजी से उपभोक्ताओं तक पहुंच कर उन्हें प्रभावित कर रहा है। ऑनलाइन स्पेस में डार्क पैटर्न की व्यापकता भी उपभोक्ताओं के लिए बड़ा खतरा है। सीसीपीए का भ्रामक विज्ञापनों और अनुचित व्यापार के प्रति बेहद कड़ा रुख होने से दोषी कंपनियों को भ्रामक विज्ञापनों से कंटेंट में संशोधन अथवा विज्ञापन को ही हटाना पड़ रहा है क्योंकि भ्रामक विज्ञापनों से उपभोक्ताओं को नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि सीसीपीए ने भ्रामक और झूठे विज्ञापनों के खिलाफ पहली बार कार्रवाई की है, बल्कि अपनी स्थापना के बाद से पिछले तीन वर्षो में कितनी ही नामी-गिरामी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाइयां करते हुए करोड़ों का जुर्माना लगाया है। उपभोक्ता हितों को सर्वोपरि रखते हुए सीसीपीए ने भ्रामक विज्ञापन और कम गुणवत्ता वाले सामान बेचने वाली कंपनियों/संस्थानों को नोटिस जारी किए हैं, और निर्णय लेते हुए दंडात्मक कार्रवाइयां सुनिश्चित की हैं।

हर दिन लोग न जाने कितने विज्ञापन देखते हैं, आम आदमी विज्ञापनों के पीछे छिपी सत्यता से परे बातों की जानकारी नहीं होने पर उन्हें सच मान लेता है। लोग इन विज्ञापनों में बताई और दिखाई गई बातों से भरमा जाते हैं, और फिर उस उत्पाद को खरीदने या कोर्स को ज्वॉइन कर गलत निर्णय लेकर खमियाजा उठाते हैं। इस पर जब मशहूर हस्तियां और कामयाब लोग भ्रामक और झूठे विज्ञापन में दिखाई देते अथवा समर्थन करते मिलते हैं, तो मामला कुछ अधिक गंभीर हो जाता है। कोचिंग संस्थान का मामला भी कुछ ऐसा ही रहा।

इसकी वेबसाइट पर चल रहा यह विज्ञापन जब सीसीपीए के संज्ञान में आया और पाया कि यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2015 और 2017 के पांच रैंक धारकों के प्रशंसा पत्र संस्थान द्वारा होस्ट किए गए थे जबकि इस कोचिंग संस्थान की 2018 में स्थापना हुई थी। जानबूझकर और गलत तरीके से दावा किया गया कि वे उनके छात्र रहे हैं। जांच में सारे दावे झूठे और भ्रामक निकले। संस्थान ने खुद को इस तरह दिखाया कि वह सर्वश्रेष्ठ यूपीएससी ऑनलाइन प्रीलिम्स टेस्ट सीरीज 2020 प्रदान करने वाला ऐसा कोचिंग संस्थान है, जिसके पास पूरे भारत में सर्वश्रेष्ठ टीचर हैं। इस तरह पुणो में एक साल के अंदर यूपीएससी की टॉप कोचिंग संस्थान बन गया। जांच के बाद संस्थान को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के उल्लंघन के मद्देनजर सीसीपीए की मुख्य आयुक्त निधि खरे और आयुक्त अनुपम मिश्रा ने आदेश जारी कर बेवसाइट से विज्ञापन हटाने और मामले में दोषी मानते हुए एक लाख का जुर्माना लगाया।

सीसीपीए लागू होने के बाद देश में भ्रामक और झूठे विज्ञापनों में काफी कमी आई है। केंद्र सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा को ‘भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम और भ्रामक विज्ञापनों के अनुमोदन-2022’ पर दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। इन दिशा-निर्देशों के उल्लंघन करने पर सीसीपीए निर्माताओं, विज्ञापनदाताओं और प्रचारक पर 10 लाख रुपये और इसके बाद भी उल्लंघन पर 50 लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है, लेकिन अभी भी देश में कुछ कंपनियां और संस्थान सीसीपीए के प्रावधानों की अवहेलना कर किसी न किसी तरह गुमराह करने वाले विज्ञापनों से उपभोक्ताओं को लुभाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उपभोक्ताओं को उत्पाद/सेवा लेने से पहले इंटरनेट, सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से विज्ञापन में किए गए दावों की जांच करनी चाहिए। भ्रामक या झूठा पाने पर उपभोक्ता संरक्षण संगठनों को शिकायत करें। विशेषज्ञों का मानना है कि ऑनलाइन स्पेस में डार्क पैटर्न की व्यापकता उपभोक्ताओं के लिए बड़ा खतरा है, और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुचित व्यापार व्यवहार एवं भ्रामक विज्ञापनों के दायरे में आता है। इनसे बचने को जहां उपभोक्ताओं को सजग रहने की जरूरत है।

अनिरुद्ध गौड़


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