लैंगिक सूचकांक : भारत की स्थिति में हुआ सुधार

Last Updated 12 Sep 2023 01:40:45 PM IST

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच की वाषिर्क लैंगिक अतंराल रिपोर्ट-2023 प्रकाशित हुई है। इस बार की रिपोर्ट में भारत वैश्विक लैंगिक सूचकांक में आठ अंकों का सुधार करते हुए 146 देशों में से 127वें स्थान पर पहुंच गया है।


लैंगिक सूचकांक : भारत की स्थिति में हुआ सुधार

 पिछली बार से भारत की स्थिति में 1.4 फीसद अंकों का सुधार हुआ है। गौरतलब है कि विश्व आर्थिक मंच ने 2022 में अपने वैविक लैंगिक अंतराल सूचकांक में भारत को 146 में से 135वें स्थान पर रखा था। उस समय केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक की मूल्याकंन प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि इस वैश्विक रिपोर्ट का मूल्यांकन भारतीय मानकों को नकारकर पश्चिमी मानकों के आधार पर किया गया है। निश्चित ही इस लैंगिक अंतराल रिपोर्ट को इस बार सावधानी के साथ तैयार करते हुए भारत को कुछ बेहतर स्थिति में दर्शाया गया है।

इस सूचकांक में पाकिस्तान का 142वां, बांग्लादेश का 59वां, चीन का 107वां, नेपाल का 116वां, श्रीलंका का 115वां और भूटान का 103वां स्थान रहा है। इसी के साथ-साथ 91.2 फीसद के लैंगिक अंतर स्कोर के साथ आइसलैंड ने लगातार 14वें वर्ष में सबसे अधिक लैंगिक क्षमता वाले देश के रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखी है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स यानी वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक पुरुषों और महिलाओं के बीच उनके सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सशक्तीकरण व उपलब्धियों तथा विकास के संदर्भ में असमानता के स्तर का आकलन करता है। यह सूचकांक 2006 में विश्व आर्थिक मंच (र्वल्ड इकॉनामिक फोरम) द्वारा जारी बेंचमार्क इंडेक्स है जो विश्व स्तर पर लैंगिक समानता को मापने के लिए विकसित किया गया है। इस रिपोर्ट का आकलन बताता है भारत में शिक्षा के सभी स्तरों पर पंजीकरण में लैंगिक समानता बढ़ी है तथा इसने 64.3 फीसद लैंगिक अतंराल को कम किया है। आर्थिक सहभागिता और अवसरों के मामले में भारत 36.7 फीसद समानता के स्तर पर पहुंचा है। महिलाओं के वेतन और आय के मामले में इसमें मामूली वृद्धि हुई है।

भारत के लिए उत्साहजनक बात यह है कि इसने राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में पहली बार 25.3 फीसद समानता हासिल की है। निश्चित ही यह स्कोर 2006 में पहली बार आई रिपोर्ट के बाद सबसे अधिक रहा है। इसी के साथ ही साथ यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि 2006 के बाद से ही यहां महिला सांसदों की संख्या 15.1 फीसद रहकर सर्वाधिक रही है। तुलनात्मक आधार पर देखें तो ज्ञात होता है कि इस रिपोर्ट में लैंगिक समानता के मामले में नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान को भारत से बेहतर स्थिति में दर्शाया गया है। सही बात यह है कि रिपोर्ट के इस पक्ष पर पक्षपाती दृष्टिकोण साफ झलकता नजर आता है। दृढ़ता के साथ कहा जा सकता है कि इन देशों की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक  स्थिति भारत से बेहतर कतई नहीं कही जा सकती है। भारत में आज सशक्त लोकतंत्र है, विश्व की पांचवीं सशक्त अर्थव्यवस्था बन गया है। चिकित्सा, शिक्षा, रक्षा, अंतरिक्ष विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता इत्यादि में भारत का आज कोई मुकाबला नहीं है। पिछले दिनों वैश्विक स्तर पर जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई, उनमें से अधिकांश रिपोर्ट में या तो भारत को कमतर आंकने का प्रयास किया गया अथवा भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया। इस संदर्भ में ऐसा अनुभव होता है कि विदेशी स्तर पर यह भारत के विकासशील देश से विकसित राष्ट्र बनने के संक्रमण काल की वैश्विक प्रतिस्पर्धा अधिक दिखाई पड़ती है। आज भारत अपने चहुंमुखी विकास की जो यात्रा तय कर रहा है उससे एक नए भारत का निर्माण भी हो रहा है। भारत में लैंगिक समानता यहां के सतत विकास से जुड़ने के साथ-साथ यहां मानवाधिकारों को साकार करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

भारत में लैंगिक समानता का प्राथमिक उद्देश्य यहां एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें महिला और पुरुष जीवन के सभी चरणों में समान अवसरों और दायित्वों का निष्पक्षता के साथ निर्वहन करें। यह बात बिल्कुल सच है कि जिस राष्ट्र ने अपने यहां लैंगिक समानता का संरक्षण किया है उसने विकसित राष्ट्र के स्वप्न को भी साकार किया है। भारत अब विकसित राष्ट्र की यात्रा तय करने की ओर अग्रसर है। ऐसे में मैकेन्जे ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि भारत में लैंगिक समानता के प्रयास तेज करने से वैश्विक विकास में 12 ट्रिलियन डालर की वृद्धि होने की संभावनाएं हैं। साथ ही महिलाओं की श्रम शक्ति में दस फीसद की भागीदारी बढ़ाने से 2025 तक भारत की जीडीपी में 700 अरब डालर की बढ़ोतरी हो सकती है। इस तथ्य के पुख्ता प्रमाण हैं कि एक समृद्ध समाज और राष्ट्र बनाने के लिए महिलाओं को समानता के आधार पर विकसित करना अपरिहार्य है। वर्तमान की वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक रिपोर्ट भी इसी ओर संकेत करती हुई भारत के इस दिशा में निरंतर प्रयास करने की सराहना करती है और भविष्य में इन प्रयासों को करते रहने की प्रेरणा देती है।

डॉ. विशेष गुप्ता


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