मुद्दा : कमजोर मानसून ने बढ़ाई चिंता

Last Updated 29 Aug 2023 12:56:49 PM IST

देश के कई राज्यों में तेज मानसूनी बारिश देखने को मिल रही है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में तेज बारिश के कारण इन दिनों लोगों की मुश्किलें काफी बढ़ गई है।


मुद्दा : कमजोर मानसून ने बढ़ाई चिंता

उत्तर भारत के दो पहाड़ी राज्य लगातार भारी से आम लोगों की जिंदगी तबाह हो गई हैं, लेकिन एक तरफ जहां उत्तर भारत में मानसून ने बेहाल किया है, वहीं दूसरी तरफ भारत में कई जिले सूखे की कगार पर हैं।

अक्सर सूखे की मार झेलने वाले राजस्थान में भी इस साल सामान्य से अधिक बारिश हुई है। इससे राजस्थान में खरीफ की बुवाई बढ़ी है। राज्य में मूंगफली, सोयाबीन और सूरजमुखी के अलावा कपास की खेती को अच्छी बारिश का लाभ मिलेगा। यूपी, बिहार और झारखंड में सामान्य से कम बारिश हुई है। इन क्षेत्रों में हीटवेव का प्रभाव रहा और अब कम बारिश की मार झेल रहे हैं। इसका असर खरीफ की बुवाई पर पड़ रहा है। बारिश कम होने के कारण किसान धान की बुवाई नहीं कर पा रहे हैं। इन राज्यों का बड़ा हिस्सा खेती के लिए वर्षा पर निर्भर है। जिन राज्यों में सबसे कम बारिश हुई है उनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और केरल भी शामिल हैं।

कृषि के लिहाज से महत्त्वपूर्ण भारत के इन राज्यों में बारिश की कमी खाद्यान्न उत्पादन और महंगाई पर नियंत्रण के लिहाज से शुभ संकेत नहीं है। अगस्त के शुरुआती दो हफ्तों में मॉनसून की बारिश सामान्य से 36 परसेंट कम है। यूं कहे देश के 717 जिलों में से कम से कम 263 जिलों में सामान्य से काफी कम बारिश हुई। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि मानसून का ब्रेक चल रहा है, जिसमें देश के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो बारिश बंद है। अगस्त के पहले 15 दिनों में कमजोर मानसून का असर पूरे देश में देखने को मिल रहा है, जबकि जुलाई में सामान्य से 13 फीसद अधिक बारिश हुई। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इसी रफ्तार से बारिश कम होती रही तो कुछ जगहों पर सूखे की स्थिति बन सकती है। एक तरफ देश के कई राज्यों में जहां भारी बारिश के कारण साग-सब्जियों के दाम बढ़ने से महंगाई चरम पर है।

वहीं दूसरी तरफ अगस्त महीने में सामान्य से कम बारिश होने से महंगाई और बढ़ने की आशंका बढ़ती जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून अभी हिमालय की तलहटी और उससे आसपास के इलाकों में एक्टिव है, जबकि देश के अन्य हिस्सों में इसका सक्रिय होना बेहद जरूरी है क्योंकि इन क्षेत्रों में खरीफ फसल की बुवाई का काम 90 फीसद तक पूरा हो चुका है। बुवाई के बाद फसल में सिंचाई की जरूरत होती है। अगर फसल को समय पर पानी नहीं मिले उसके सूखने का खतरा रहेगा। मौजूदा खरीफ सीजन में सरकार ने 158.06 मिलियन टन खाद्यान्न के उत्पादन का लक्ष्य तय किया है जिसमें 111 मिलियन टन चावल, 9.09 मिलियन टन दाल, 13.97 मिलियन टन श्रीअन्न और 24 मिलियन टन मक्का शामिल है। ऐसे में इस लक्ष्य को पाने के लिए फसल को पर्याप्त सिंचाई की जरूरत होगी। अगर पानी की कमी होती है तो सरकार का लक्ष्य पिछड़ सकता है। अभी तक इन फसल पर कोई बुरा असर नहीं देखा जा रहा है क्योंकि सिंचाई का काम अभी पिछड़ा नहीं है, लेकिन आगे खतरा पैदा हो सकता है।

खरीफ फसल, विशेषकर चावल, दलहन, सोयाबीन और तिलहन का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। क्योंकि इसकी खेती के लिए सबसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है। ऐसे में कमजोर मानसून महंगाई की चिंता बढ़ा रहा है। भारत में इस बार मानसून के कमजोर रहने का सबसे बड़ा कारण अल-नीनो कंडीशन का बनना मान रहे हैं। अल-नीनो में पश्चिमी प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य से कम हो जाता है, जिसका असर भारत के मानसून पर पड़ता है। हालांकि, मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि 18 अगस्त से पूर्वी और दक्षिणी भारत के राज्यों में बारिश से की मात्रा फिर से बढ़ सकती है। हालांकि, यह बारिश ज्यादा नहीं होगी। पिछले 70 साल का इतिहास देखें तो 15 साल ऐसी स्थिति रही जब अल-नीनो की कंडीशन रहीं। इन 15 साल में से 9 साल (सीजन) ऐसे रहे थे जब मानसून की बारिश सामान्य से कम हुई है।

भारत के लगभग 65 प्रतिशत रकबे में वर्षा आधारित खेती होती है। उसमें भी खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा वर्षा आधारित खेती होती है। भारत के तमाम राज्यों में पूरे साल में जितनी बारिश होती है उसकी लगभग 90 फीसद बारिश इन्हीं चार महीने में रिकॉर्ड की जाती है। वहीं अगर मानसून जून, जुलाई, अगस्त या सितम्बर में कमजोर होता है, तो भारत में खाद्यान्न उत्पादन पर संकट आ जाता है और यह भारत की पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। एक अनुमान के मुताबिक मानसून पर 2 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है तथा कम-से-कम 50 प्रतिशत कृषि को पानी वर्षा द्वारा ही प्राप्त होता है। ऐसे में कमजोर मानसून या अति वर्षा‘ दोनों में फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। चूंकि देश के 14 करोड़ से अधिक परिवार खेती पर निर्भर हैं, अत: कम बारिश की स्थिति में खेती-किसानी से जुड़े अधिकांश छोटे किसानों का जीवन सबसे अधिक प्रभावित होता है। कमजोर मानसून पूरी वैल्यू चेन को बिगाड़ सकता है। इससे पूरी आर्थिक एक्टिविटी गड़बड़ा जाती है।

रविशंकर


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