मुद्दा : कीटनाशकों पर कंट्रोल करें

Last Updated 24 Aug 2023 01:35:06 PM IST

खेती किसानी में रसायन के इस्तेमाल से सांस लेने में दिक्कत, कैंसर, थकान जैसी बीमारी हो जाती है। यह निष्कर्ष हाल में प्रबंधन अध्ययन अकादमी, लखनऊ और हैदराबाद द्वारा हिमाचल प्रदेश में 22 विकास खंडों के किसानों पर किए सर्वेक्षण में सामने आया।


मुद्दा : कीटनाशकों पर कंट्रोल करें

विभिन्न राज्यों के बीते एक महीने के आंचलिक समाचारों पर नजर डालें तो कम से कम 50 ऐसे मामले सामने आए जब खेतों में छिड़की जाने वाली दवा किसान की सांस के जरिए उसके शरीर में पहुंची और उसे जान से हाथ धोना पड़ा।

बदलते मौसम में खेती बहुत चुनौती वाला काम है। कम समय में अधिक फसल के लेने की मंशा के कारण किसान बीज बाजार से खरीद रहा है और छुपे नाम से बेचे जा रहे  मोडिफाइड  बीजों में अलग किस्म के कीटों के भय को देखते हुए समय से पहले और बेशुमार कीड़ा-मार दवा लगा रहा है। साठ के दशक में देश में 6.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कीटनाशकों का छिड़काव होता था वहीं अब 1.5 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में हो रहा है। परिणाम है कि भारत में पैदा होने वाले अनाज, सब्जी, फल और दूसरे कृषि उत्पादों में कीटनाशक की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई गई है। एक बात और, इस्तेमाल की जा रही दवाइयों का 10-15 फीसद ही असरकारक होता है, बाकी जहर मिट्टी, भूगर्भ जल, नदी-नालों का हिस्सा बन जाता है।

कीटनाशकों और उसके प्रभाव का आकलन करने वाली संस्था ‘केयर रेटिंग्स’ के मुताबिक भारतीय खाद्य पदाथरे में कीटनाशकों का अवशेष 20 फीसदी तक है जबकि वैश्विक स्तर पर यह महज दो फीसद तक होता है। जैसे-जैसे खेती पर जलवायु परिवर्तन और लागत बढ़ने का खतरा बढ़ रहा है, किसान ने फसल के उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर जानलेवा असर की परवाह किए बगैर कीटनाशक और रसायन की खपत बढ़ा दी है। सरकारी आंकड़ा है कि बीते पांच वर्षो के दौरान देश में रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ा है। 2015-16 के दौरान देश में करीब 57 हजार मीट्रिक टन ऐसे कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया था वहीं अब इसके बढ़ कर 65 हजार मीट्रिक टन तक पहुंचने का अनुमान है। इस मामले में महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश शीर्ष पर हैं।


औसत भारतीय के दैनिक भोजन में लगभग 0.27 मिग्रा. डीडीटी पाई जाती है। दिल्ली के नागरिकों के शरीर में यह मात्रा सबसे अधिक है। यहां गेहूं में 1.6 से 17.4 भाग प्रति दस लाख, चावल में 0.8 से 16.4 भाग प्रति 10 लाख, मूंगफली में 3 से 19.1 भाग प्रति दस लाख मात्रा डीडीटी मौजूद है। महाराष्ट्र में बोतलबंद दूध के 70 नमूनों में डीडीटी और एल्ड्रिन की मात्रा 4.8 से 6.3 भाग प्रति दस लाख पाई गई जबकि मान्य मात्रा महज 0.66 है। मुंबई में टंकी वाले दूध में तो एल्ड्रिन का हिस्सा 96 तक था। पंजाब में कपास की फसल पर सफेद मक्खियों के लाइलाज हमले का मुख्य कारण रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल पाया गया है। अब टमाटर को ही लें। इन दिनों अच्छी प्रजाति के ‘रूपाली’ और ‘रश्मि’ किस्म के टमाटरों का सर्वाधिक चलन है। इन प्रजातियों को सर्वाधिक नुकसान हेल्योशिस आर्मिंजरा नामक कीड़े से होता है। टमाटर में सुराख करने वाले इस कीड़े के कारण आधी फसल बेकार हो जाती है। इन कीड़ों का मारने के लिए बाजार में रोगर हाल्ट, सुपर किलर, रेपलीन और चैलेंजर नामक दवाएं मिलती हैं।

इन दवाओं पर दर्ज है कि इनका इस्तेमाल एक फसल पर चार-पांच बार से अधिक न किया जाए। लेकिन यह वैज्ञानिक चेतावनी बहुत महीन अक्षरों में और अंग्रजी में दर्ज होती है, जिसे पढ़ना और समझना किसान के बस से बाहर की बात है। लिहाजा, लालच में किसान इस दवा की छिड़काव 25-30 बार कर देता है। इन दवाओं से उपचारित लाल-लाल सुंदर टमाटरों को खाने से मस्तिष्क, पाचन अंगों, किडनी, छाती और स्नायु तंत्रों पर बुरा असर पड़ता है। इन दिनों बाजार में मिल रही चमचमाती भिंडी और बैंगन देखने में तो बेहद आकर्षक हैं, लेकिन खाने में उतने ही कातिल! बैंगन को चमकदार बनाने के लिए उसे फोलिडज नामक रसायन में डुबोया जाता है। बैंगन में घोल को चूसने की अधिक क्षमता होती है, जिससे फोलिडज की बड़ी मात्रा बैंगन जज्ब कर लेते हैं। भिंडी को छेदक कीड़ों से बचाने के लिए एक जहरीली दवा का छिड़काव किया जाता हैं। गेहूं को कीड़ों से बचाने के लिए मेलाथियान पाउडर मिलाया जाता है। इस पाउडर के जहर को गेहूं को धो कर भी दूर नहीं किया जा सकता। यह रसायन मानव शरीर के लिए जहर की तरह है।

सिद्ध हो चुका है कि हमारी पारंपरिक खेती, अपने बीज और देसी नुस्खे फसल को सुरक्षित रखने और जहरीली होने से बचाने में सक्षम हं। निश्चित ही कीटनाशकों का बड़ा बाजार है, और उसके विपरीत जाना चुनौती है, लेकिन इंसानी सेहत, अन्न की पौष्टिकता, जमीन की उर्वरता और पानी के अमरत्व को बनाए रखने के लिए रासायनिक  कीटनाशकों पर नियंत्रण अनिवार्य हो गया है।

पंकज चतुर्वेदी


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