वैश्विकी : व्हाइट हाउस में नरेन्द्र मोदी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इस महीने व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मेजबानी करेंगे। मोदी के सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन किया जाएगा।
![]() व्हाइट हाउस में नरेन्द्र मोदी |
ऐसा आयोजन आम तौर पर अमेरिका अपने सहयोगी देशों के नेताओं के सम्मान में ही करता है। मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा उस समय हो रही है, जब यूक्रेन का जवाबी हमला शुरू हो गया है। प्रांरंभिक रिपोटरे के अनुसार यह हमला सफल साबित नहीं हो रहा है। मोदी जिस समय व्हाइट हाउस में होंगे उस समय यूक्रेन युद्ध चरम पर होगा। उस समय बाइडन की मोदी से अपेक्षा होगी कि वह रूस और राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन की खुलकर आलोचना करें। यूक्रेन युद्ध के संबंध में अब तक तटस्थ भूमिका निभाने वाला भारत अपनी नीति में कोई बदलाव करेगा, इसके आसार कम हैं। संभव है कि अमेरिकी संसद में अपने संबोधन के दौरान मोदी ऐसी शब्दावली का प्रयोग करें जिसे रूस के साथ असहमति के रूप में प्रचारित किया जाए।
वास्तव में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने के लिए कौन सी नीति और प्राथमिकता तय की जाए इसे लेकर अमेरिकी प्रशासन विभ्रम का शिकार है। अमेरिका के लिए चीन एक दूरगामी और वास्तविक चुनौती है। पिछले कई वर्षो के दौरान अमेरिका चीन को कैसे काबू किया जाए इसकी रणनीति तैयार कर रहा है। यूक्रेन युद्ध के कारण उसका पूरा गुणा-गणित गड़बड़ा गया। फिलहाल, रूस एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने है। यदि यूक्रेन में अमेरिका और पश्चिमी देशों के रणनीतिक हित पूरे नहीं होते हैं, तो चीन के खिलाफ कोई मुहिम शुरुआत में ही कमजोर पड़ जाएगी। अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि यूक्रेन के मोच्रे पर उसकी हार हो।
अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की हाल की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अपने रक्षा सहयोग को और व्यापक बनाने का निश्चय किया। उम्मीद की जा रही है कि इसी महीने 21 जून से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिकी यात्रा से दोनों देशों के संबंध और अधिक ऊंचाइयों पर जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले भारतीय नेता हैं जिनको अमेरिका की संसद को दो बार संबोधन करने का अवसर मिला है। अमेरिका भारत को वह प्रौद्योगिकी और संसाधन मुहैया कराने पर सहमत नजर आया जो केवल सबसे करीबी सहयोगी देशों को ही दी जाती है। अमेरिका की इस नीति के दो उद्देश्य हैं-पहला, भारत को रूस के साथ उसके निकट रक्षा संबंधों से अलग करना और दूसरा, चीन के खिलाफ भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना। भारत अमेरिका के इन लक्ष्यों के प्रति आंशिक रूप से ही सहमत हो सकता है। जहां तक रूस के साथ रक्षा संबंधों में कटौती करने का सवाल है, यह काम आसान नहीं है। एक रक्षा प्रणाली से दूसरी रक्षा प्रणाली में जाना एक लंबी प्रक्रिया है। इसमें दशकों लग सकते हैं। यह जरूर है कि यूक्रेन युद्ध के कारण रूस से हथियारों की आपूर्ति में बाधा पैदा हुई है तथा इससे निपटने के लिए भारत वैकल्पिक स्रेतों का इस्तेमाल कर सकता है।
जहां तक चीन के खिलाफ अमेरिका के मोच्रेबंदी में शामिल होने का सवाल है, भारत फूंक-फूंक कर कदम उठाएगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कुछ दिन पहले कहा था कि भारत के पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो में शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं है। अमेरिका में भी इस बात का अहसास हो चला है कि भारत को एशिया का यूक्रेन नहीं बनाया जा सकता। एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को पूरा करने के लिए अमेरिका ने ‘नये क्वाड’ का निर्माण किया है। इसमें भारत को अलग रखते हुए ताइवान के पड़ोसी देश फिलीपींस को शामिल किया गया है तथा नया क्वाड, ऑक्स (अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया) की तरह एक सैन्य गठबंधन है जो ताइवान पर चीन के किसी भी संभावित हमले का मुकाबला करेगा। लगता है कि पुराना क्वाड धीरे-धीरे रणनीतिक दृष्टि से अप्रासंगिक हो जाएगा।
मोदी की व्हाइट हाउस में मौजूदगी को लेकर सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के एक तबके में बेचैनी है। इस तबके का मानना है कि भारतीय लोकतंत्र को तानाशाही की ओर ले जाने वाले हिन्दू राष्ट्रवादी नेता को इतना सम्मान क्यों दिया जा रहा है। व्हाइट हाउस में भी कुछ अधिकारियों की यही राय है, लेकिन उनका कहना है कि यह मजबूरी का सौदा है।
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