उत्तराखंड : गैरसैंण को बिसरा क्यों दिया

Last Updated 04 Mar 2023 01:54:55 PM IST

विकास में पिछड़ने के कारण बने देश के 27वें राज्य उत्तराखंड को 22 साल बीत जाने के बाद भी एक अदद राजधानी नहीं मिल पाई।


उत्तराखंड : गैरसैंण को बिसरा क्यों दिया

देहरादून को कामचलाऊ राजधानी बनाने के बाद तो मानो जैसे सब कुछ यहीं सिमटता चला गया। 1994 के राज्य आंदोलन को गौर से देखें तो पर्वतीय क्षेत्र के लोगों ने सिर्फ राज्य गठन ही नहीं गैरसैंण को इस पर्वतीय भू-भाग की राजधानी बनाने की मांग भी की थी। राज्य गठन के 20वें वर्ष में गैरसैंण-भराड़ीसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐतिहासिक फैसला हुआ, लेकिन इस फैसले को तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी गैरसैंण को लेकर हर तरफ से जो उदासीनता दिख रही है, उसने समूचे हिमालयी क्षेत्र को चिंता में डाल दिया है।

उत्तराखंड राज्य के 22 साल के इतिहास को खंगाला जाए तो भराड़ीसैंण-गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला सबसे बड़ा फैसला कहा जा सकता है। ब्यूरोक्रेट और राजनीतिज्ञों की बड़ी जमात के न चाहने के बाद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भराड़ीसैंण के विधानसभा भवन में बजट सत्र के दौरान यह ‘दुस्साहस’ किया था। 4 मार्च 2020 को हुई इस घोषणा ने विपक्ष की जमीन भी हिला दी थी।

यद्यपि राज्य के ज्यादातर हिस्सों से गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग बरकरार रही, लेकिन ग्रीष्मकालीन राजधानी बन जाने से प्रदेशभर में यह संदेश भी गया कि ग्रीष्मकालीन राजधानी का रास्ता देर-सबेर गैरसैंण को ही राज्य की स्थायी राजधानी बनाने के काम आएगा। सत्र के भीतर मुख्यमंत्री की इस घोषणा पर अमल भी तत्काल शुरू हो गया था और फटाफट इसका गजट नोटिफिकेशन भी तत्कालीन सरकार ने करा दिया था। अप्रत्याशित रूप से हुई इस घोषणा से जहां आम जन में खुशी और उल्लास का वातावरण साफ दिखा, वहीं राजनीतिक हलकों में खलबली सी थी। इस पर गौर करना जरूरी है कि आखिर गैरसैंण को ही राजधानी बनाने की बात कहां से उठी और गैरसैंण क्यों पहाड़ की अस्मिता का सवाल बनता चला गया। राज्य गठन से पहले ही गैरसैंण पर रायशुमारी शुरू हो गई थी।

राजधानी चयन को लेकर अविभाजित उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने रमाशंकर कौशिक समिति का गठन किया था। इस समिति ने प्रस्तावित पर्वतीय राज्य की राजधानी के लिए रायशुमारी की तो 68 फीसद से अधिक लोगों ने गैरसैंण को पसंद किया था। 1994 में शुरू हुए राज्य निर्माण आंदोलन से लेकर 2000 में राज्य के गठन तक राजधानी के रूप में गैरसैंण ही एक मात्र विकल्प था, मगर जब राज्य अस्तित्व में आया तो अंतरिम सरकार ने देहरादून से सरकार का काम काज शुरू करके स्थायी राजधानी का मसला चुनी हुई सरकार पर छोड़ने की बात को साथ ही न्यायमूर्ति वीरेद्र दीक्षित की अध्यक्षता में राजधानी चयन आयोग का गठन भी कर दिया।

आयोग ने गैरसैंण स्थायी राजधानी की स्वीकार्यता को ठंडे बस्ते में डाल दिया। 2012 में कांग्रेस के सत्ता में वापसी के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा गोपेर तथा गैरसैंण के दौरे पर गए तो जनदबाव में उन्होंने 2 अक्टूबर 2012 को गैरसैंण में कैबिनेट बैठक के आयोजन की घोषणा की। हालांकि टिहरी लोक सभा उपचुनाव के चलते कैबिनेट बैठक 2 अक्टूबर के बजाय 3 नवम्बर 2012 को हो पाई।

इसी कैबिनेट में गैरसैंण में विधानसभा भवन के निर्माण का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया, जिससे गैरसैंण राजधानी के प्रति लोगों की उम्मीदों को पंख लग गए। लगभग दो माह बाद 14 जनवरी 2013 को इस भवन का शिलान्यास भी हो गया, जो अब विशालकाय विधानसभा भवन के रूप में भराड़ीसैंण की पहाड़ी पर विराजमान है।  उसके बदा यहां विधानसभा सत्र करने की परंपरा शुरू हुई तो माना जा रहा था कि अब गैरसैंण पर स्थायी अथवा ग्रीष्मकालीन राजधानी बन ही जाएगी। बावजूद इसके कोई भी मुख्यमंत्री इसका साहस नहीं जुटा सका। 2017 में भाजपा ने भी अपने चुनाव घोषणा पत्र में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का वायदा किया था और सरकार बनाने के तीन साल बाद यह सपना साकार हो गया।

बड़ी चिंता का विषय यह है कि अब न तो राज्य आंदोलन को लीड करने वाले क्षेत्रीय दल उक्रांद में गैरसैंण की टीस दिखती है और न ही विपक्ष गैरसैंण को लेकर कोई बात करता है, रही बात सरकार की तो ग्रीष्मकालीन राजधानी में पिछले तीन साल में एक दिन भी सरकार जैसी कोई चीज नहीं दिखी। जनता भी सवाल उठा रही है कि आखिर यह कैसी राजधानी है जहां सरकार जैसा कुछ भी नहीं दिखा। पिछले एक पखवाड़े से ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर कुछ उम्मीदों की किरण अपरोक्ष रूप से दिख रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पौड़ी मंडल मुख्यालय को लेकर बहुत संजीदा दिख रहे हैं। लग रहा है कि धामी ने पौड़ी के खाली पड़े मंडलीय दफ्तरों को फिर से गुलजार करने की ठानी है, ऐसे में उम्मीद है कि धामी को यहां पसरा सन्नाटा जरूर कचोटेगा और वह इसे दूर करने को कदम उठाएंगे। 

अर्जुन बिष्ट


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