पीएम पर टिप्पणी : विचारहीनता का प्रमाण
कांग्रेस पार्टी का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा और संघ को लेकर आक्रामक होना नई बात नहीं है।
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मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तबसे कांग्रेस का स्वर यही है और संघ के विरुद्ध उसका तेवर पहले से ही है। लंबे समय तक राज करने वाली पार्टी लगातार क्षीण हो रही हो तो उसे जरा ठहर कर अपने विचार और व्यवहार पर शांति से पुनर्विचार करने की आवश्यकता महसूस होनी चाहिए। रायपुर के महाधिवेशन से भी अगर इसी प्रकार का स्वर निकले तो इसे क्या कहा जाएगा? जिस तरह से राहुल गांधी सहित कांग्रेस के नेता वक्तव्य दे रहे हैं उनका निष्कर्ष यही है कि वा अपने व्यवहार पर पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं महसूस करते।
पवन खेड़ा कभी दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सहयोगी रहे होंगे पर इस समय वे कांग्रेस की राष्ट्रीय टीम का हिस्सा हैं। उन्हें सोनिया गांधी परिवार का करीबी भी माना जाता है। अगर वे प्रधानमंत्री का नाम लेते समय अपमानजनक लहजे में पिता का नाम लेते हैं और व्यंग्य मुस्कान बिखेरते हैं तो यह सामान्य स्थिति नहीं है। हालांकि असम पुलिस द्वारा उन्हें हवाई अड्डे से गिरफ्तार किए जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से निचले न्यायालय ने त्वरित जमानत भी दे दी। किंतु इससे प्रधानमंत्री मोदी को लेकर कांग्रेस के अस्वीकार्य वक्तव्य और इनकी राजनीतिक परिस्थितियों का मुद्दा समाप्त नहीं हो जाता। आप देख लीजिए, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किस तरह ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ के नारे लगा रहे थे। प्रधानमंत्री ने नेताओं के इस बयान पर मेघालय की चुनाव सभा में प्रतिक्रिया दी और कहा कि विपक्ष के लोग मेरी कब्र खोदना चाहते हैं, जबकि जनता मुझे समर्थन दे रही है।
मोदी विरोधी यह टिप्पणी कर सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने जानबूझकर इसे चुनावी मुद्दा बनाने की रणनीति अपनाई। प्रश्न है कि यह अवसर दिया किसने? आप प्रधानमंत्री की कब्र खोदने का नारा लगाएं और वो इसे मुद्दा न बनाएं यह संभव है? इसी तरह पवन खेड़ा के विरुद्ध मुकदमा एवं पुलिस कार्रवाई पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया वही पुरानी है कि लोकतंत्र खत्म कर दिया, मोदी हिटलर का रूप है, फासिस्टवादी है आदि-आदि। हालांकि यह मानने का कोई कारण नहीं है प्रधानमंत्री मोदी के पिताजी का नाम घृणित व अपमानजनक लहजे में लेने पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश और असम में मुकदमा करने तथा पुलिस कार्रवाई का निर्देश दिया होगा। ऐसे मामलों में मुकदमा और पुलिस द्वारा गिरफ्तारी आदि की ओर अग्रसर होना ही नहीं चाहिए। राजनीति में विचार का मुकाबला विचार से। किंतु प्रधानमंत्री के समर्थकों के अंदर इससे गुस्सा पैदा हुआ होगा और प्राथमिकियां दर्ज कर दीं गई। इसमें अस्वाभाविक जैसा कुछ नहीं है। निश्चित रूप से असम सरकार में भी किसी को गुस्सा आया होगा और सबक सिखाने के लिए पुलिस ने कार्रवाई की। वैसे भी पवन खेड़ा ने पहले दामोदर दास जी की जगह गौतम दास नाम लिया और बाद में फिर कुटिल मुस्कान छेड़ते हुए पूछा कि क्या है दामोदरदास..और सॉरी बोला। पूरा देश समझ रहा था कि वह गौतम अडाणी शब्द का प्रयोग करने की जगह गौतम दास बोले। राजनीति में इससे शर्मनाक पतन का उदाहरण और क्या हो सकता है?
भाजपा के देशभर के कार्यकर्ताओं के अंदर आक्रोश पैदा हुआ और वे कांग्रेसियों पर हमला करने लगे तो क्या होगा? इस दृष्टि से देखें तो पुलिस में की गई शिकायत निराधार नहीं लगेगा। इसके पहले प्रधानमंत्री के विरुद्ध कांग्रेस और अन्य विरोधियों की ओर से इतनी गंदी, अपमानजनक और घृणित टिप्पणियां हो चुकी हैं कि विश्लेषण में एक अच्छी-खासी पुस्तक तैयार हो जाएगी। हैरत की बात है कि लगातार इस आचरण से राजनीतिक क्षति उठाते हुए भी कांग्रेस के नेता सुधार करने के लिए तैयार नहीं है। पिछले गुजरात चुनाव में ही हमने देखा कि रावण, भस्मासुर, मोदी को औकात दिखा देंगे जैसे बयानों ने मतदाताओं में नाराजगी पैदा की और भाजपा रिकॉर्ड मत एवं सीट पाने में सफल रही तथा कांग्रेस ने न्यूनतम मत एवं सीटों का रिकॉर्ड बनाया। पिछले लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी द्वारा राफेल मुद्दे पर ‘चौकीदार चोर है’ के नारे ने भी ऐसी ही कांग्रेस विरोधी और मोदी के समर्थन में वायुमंडल को घनीभूत किया। आप 2002 से लेकर 2024 तक के अलग-अलग चुनावों में कांग्रेस नेताओं द्वारा व्यक्त शब्दावलियों के प्रभावों का विश्लेषण करें तो निष्कर्ष यही आएगा कि उन्होंने तय कर लिया है कि हम नहीं सुधरेंगे। राहुल ने बार-बार दावा किया कि भाजपा तो नफरत बढ़ती है और हम मोहब्बत बांट रहे हैं।
क्या इसे मोहब्बत की भाषा कहेंगे? मोदी पर की गई अपमानजनक टिप्पणियों से कांग्रेस को कितनी चुनावी क्षति पूर्व में हुई और आगे होगी यह विषय तो महत्त्वपूर्ण है ही किंतु यह इससे आगे का विषय भी है। किसी के पास जब विचार नहीं होते तो वह व्यक्तिगत हमले करता है। राहुल गांधी या कांग्रेस के नेता भले कहें कि वे भाजपा और संघ से वैचारिक लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी भाषा में वैचारिकता की जगह व्यक्तिगत हमले और उसके लिए भी निम्न स्तर की शब्दावली ही लगातार सामने आई हैं। यह कांग्रेस के भविष्य की दृष्टि से ज्यादा चिंताजनक है। कांग्रेस के नेता यदि पिछले दो दशकों में नरेन्द्र मोदी के प्रति अपने आचरण में बदलाव लाने में सफल नहीं हुए तो न चाहते हुए भी कहना पड़ेगा की पार्टी घोर विचारहीनता या वैचारिक स्तर पर दिशा भ्रम का शिकार हो चुकी है।
2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में स्वयं राहुल गांधी ने कहा था कि हम प्रधानमंत्री के विरुद्ध निजी टिप्पणी नहीं करेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री का पद सम्माननीय है। उन्हीं राहुल गांधी ने 2018 से चौकीदार चोर है का नारा लगवाना शुरू कर दिया। साफ है कि कांग्रेस के अंदर संदेश यही था कि राहुल गांधी का वक्तव्य तात्कालिक रणनीति के तहत था मोदी के प्रति हमें अपना रवैया पूर्व की भांति ही बनाए रखनी है। तभी मणिशंकर अय्यर ने उसी चुनाव के बीच कह दिया कि यह नीच किस्म का आदमी है। पवन खेड़ा में उसी व्यवहार में एक निंदनीय अध्याय भर जोड़ा है। जब मोदी का संबंध किसी लड़की के साथ जोड़ने और साहेब कह कर इसका संदेश देने जैसे निम्न स्तरीय आचरण से गुरेज नहीं हुआ और कभी इसे गलती के रूप में माना नहीं गया तो आगे यह बंद हो जाएगा इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए यह मान कर चलिए कि कांग्रेस के नेता आगे फिर ऐसी टिप्पणियां करेंगे।
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