रूस-यूक्रेन युद्ध : भारतीय कूटनीति प्रभावी

Last Updated 19 Jan 2023 01:40:51 PM IST

फरवरी 24, 2022 की सुबह दुनिया के सारे न्यूज चैनल्स में जब एक ही खबर चल रही थी कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया तब विश्लेषक आशंका जताने लगे कि कहीं हम तीसरे महायुद्ध की तरफ तो नहीं बढ़ रहे।


रूस-यूक्रेन युद्ध : भारतीय कूटनीति प्रभावी

कोई देश युद्ध में जाने का फैसला तभी करता है जब उसके सामने दो ही कारण बचते हैं। पहला, जितना हो सके उतना युद्ध को टाला जाए जैसा कि फ्रांस और ब्रिटेन ने 1930 के दशक में जर्मनी के साथ किया था; और दूसरा, युद्ध को भविष्य के भरोसे नहीं रखकर यथाशीघ्र दुश्मन को खत्म किया जाए।

रूस ने यूक्रेन के साथ दूसरा कारण चुना और कौटिल्य भी आज होते तो रूस को यही सलाह देते कि इस युद्ध को टाला नहीं जा सकता था। चाणक्य का मंडला सिद्धांत जोर देता है  कि जो आपका पड़ोसी देश होता है, वो आपका सबसे पहला दुश्मन होता है। रूस के साथ भी यही हुआ। उसके पड़ोसी यूक्रेन का चरित्र मित्र देश जैसा नहीं है।

कौटिल्य के समय में नाटो जैसी संस्था नहीं थी जिसमें एक देश प्रभावी होता हो और बाकी सारे देश पिछलग्गू। 21वीं सदी में रूस ऐसा देश है, अपने आप में विश्व का सबसे बड़ा देश है, इसकी बड़ी सेना है और सबसे जरूरी चीज कि इसके पास हथियार बनाने की सारी सुविधाएं मौजूद हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन, वो चाणक्य के सप्तांग सिद्धांत के 7 अंग का पहला केंद्र हैं मतलब कि राजा, किसी भी राज्य का मुख्य केंद्र बिंदु होता है और पूरा राज्य उसके इर्द गिर्द घूमता है।

चाणक्य के सप्तांग सिद्धांत का दूसरा मुख्य बिंदु  ‘अमात्य’ है, जो  आज रूस के प्रधानमंत्री को मान सकते हैं, ‘दुर्ग’ जिसे आप आज सैन्य अड्डे को मान सकते हैं, ‘जनपद’ जिसे आप देश का भौगोलिक क्षेत्र कहते हैं, जहां व्यापार होता है। ‘कोष’ जिसे आप आज वित्तीय संसाधनों को मान सकते हैं, जो रूस के पास अधिक नहीं हैं (अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी देशों ने सबसे पहले रूस पर आर्थिक पाबंदी की घोषणा की ताकि रूस का अर्थ तंत्र तहस नहस हो जाए)। चाणक्य ‘बल’ और ‘मित्र’ पर सबसे अधिक जोर देते हैं।

उनके अनुसार हर देश के पास मजबूत सेना होनी चाहिए जो रूस के पास मौजूद है लेकिन यूक्रेन के पास नहीं है। अंत में वो अपने सप्तांग सिद्धांत में ‘मित्र’ पर बल देते हैं। उनका मानना होता है कि हर देश के पास मित्र देश होने चाहिए जो मुसीबत के समय साथ दे। इस मामले में यूक्रेन, रूस से धनी है क्योंकि जब से युद्ध शुरू हुआ है तब से पश्चिमी देश यूक्रेन को हर संभव मदद कर रहे हैं, जिसमें मुख्य है सैन्य मदद। पिछले 10 महीनों में अमेरिका ने यूक्रेन को 100 बिलियन डॉलर से अधिक की मदद की है जबकि रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। रूस का एक साल का सैन्य बजट 70 बिलियन डॉलर है, और यूक्रेन का पूरा अर्थतंत्र 200 बिलियन डॉलर का है। पिछले दस महीनों में यूक्रेन को पश्चिमी देशों से 150 बिलियन डॉलर की सहायता राशि प्राप्त हुई है, जिसके बल पर ही वो आज रूस के सामने टिका हुआ है।

इस युद्ध से दूसरे देश सीख ले सकते हैं  कि आपके मित्र देश आपकी मदद करना चाहें तो आपकी अर्थव्यवस्था का कोई मतलब नहीं रह जाता। लेकिन इस युद्ध का दूसरा पहलू यह भी है कि जो पश्चिमी देश पूरी दुनिया में युद्ध विरोधी नारे लगाते हैं, उनका ही सबसे बड़ा योगदान है इस युद्ध को बढ़ाने में। सबसे रोमांचक तो यह है कि यूक्रेन की चार करोड़ आबादी में से एक करोड़ लोग देश छोड़ कर भाग चुके हैं, लाखों सैनिक मारे जा चुके हैं। इसके बावजूद पश्चिमी देश यूक्रेन पर रूस के साथ शांति संधि का प्रस्ताव भी नहीं दे रहे हैं, पूरी दुनिया के शांतिप्रिय लोग पिछले दस महीनों से युद्ध के घिनौनेपन को देख कर थक चुके हैं।

सुण नीति में कौटिल्य का कहना है कि किसी राज्य का पड़ोसी मजबूत है तो उससे संधि करने में ही भलाई है, लेकिन हम इस नियम को 21वीं सदी के विषय में बोलें तो शायद कुछ देश इस नियम से सहमत नहीं होंगे, जैसे कि यूक्रेन बिल्कुल भी संधि में भरोसा नहीं करता। यूक्रेन, रूस से हजारों किमी. दूर नहीं है, बल्कि रूस से सटा हुआ देश है, जिसका वजूद 30 साल पहले वि मानचित्र पर नहीं था लेकिन आज वो अपने पड़ोसी देश से दोस्ती तो दूर की बात, बल्कि दुश्मनी भी बड़े शान से कर रहा है। रूस जैसा ताकतवर देश कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि जिस क्षेत्र से नेपोलियन और हिटलर ने उसके देश पर हमला बोला था, उस क्षेत्र को वो फिर से अपने विरोधी सैन्य गठबंधन में जाते हुए देखे।

कौटिल्य अपनी सुण नीति के तीसरे नियम ‘आसन’ पर बल देते हैं। इसका अर्थ हुआ कि आपकी सेना का कोई अड्डा जो दुश्मन देश से सटा हुआ हो, रूस के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो उसके तीन पड़ोसी देश लातविया, एस्टोनिया, लिथुआनिया में नाटो के सैन्य बेस हैं। इन तीनों बाल्टिक देशों के नाटो में जुड़ने के बाद यूक्रेन और जॉर्जिया में भी मांग उठने लगी कि कीव और तबलीसी भी नाटो के अंग होंगे, उनके देश में उठ रहीं इन आवाजों से मास्को की नींद उड़ गई थी। रूसी नेताओं ने कौकेशियन राज्य जॉर्जिया पर कार्रवाई करने का विचार किया और 2008 में रूस की सेना जॉर्जिया की सीमा में प्रवेश करती है, जॉर्जिया के दो राज्यों उत्तरी ओसेतिया और अबखाजिया को अपने नियंत्रण में ले लेती है। यह जॉर्जिया को मास्को का कड़ा संदेश था कि नाटो में शामिल होने की सोचे भी नहीं। रूस के कृत्य से पश्चिमी देश एक बार फिर से दुनिया के मानचित्र पर रूस को अपना दुश्मन देश मानना लगे। रूस का भी मिलिट्री बेस बेलारूस में है जो पोलैंड, यूक्रेन और बाल्टिक देश से अपना सीमा साझा करता है।

हालांकि रूस का सबसे महत्त्वपूर्ण मिलिट्री बेस ‘कालिनिनगाड्र’ में है जो 1945 से पहले जर्मनी का हिस्सा हुआ करता था। साप्तंग थ्योरी का अगला अध्याय है ‘याना’ जिसका अर्थ हुआ कि किसी देश का सैन्य अभ्यास हमेशा दुश्मन देश से सटी भूमि पर करना चाहिए ताकि दुश्मन हमेशा इस डर में रहे कि दुश्मन  उस पर हमला न कर दे। जैसे कि चीन को डराने के लिए अमेरिका और भारत हमेशा सैन्य अभ्यास भारत की सीमा में  करते हैं, या नौसैनिक अभ्यास दक्षिणी चीन सागर के समीप जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर कर लेते हैं ताकि चीन पूरे के पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण न कर पाए। यह एक प्रकार का खेल है जिसमें सारे देश प्रतिभागी होते हैं, और हर प्रतिभागी दूसरे प्रतिभागी पर संशय करता है। बहरहाल, कौटिल्य द्वारा कही गई बातें सदियों बाद भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जो प्राचीन भारत की कूटनीतिक महत्ता को रेखांकित करती हैं, जिन पर हमें गर्व होना चाहिए।
(लेख में गुजरात केंद्रीय विवि के परास्नातक छात्र राज कमल के इन्पुट्स भी हैं)

डॉ. सौरभ शर्मा


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