मुद्दा : जमानत कानून में सुधार की जरूरत
गर्मिंयों की छुट्टियों के बाद जहां एक दिन में 44 फैसले सुना कर सुप्रीम कोर्ट ने अपने इतिहास में नया रिकोर्ड बनाया वहीं जमानत के कानून में सुधार को लेकर केंद्र सरकार को एक नया कानून बनाने पर विचार करने को भी कहा।
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जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘भारत को कभी भी एक पुलिस स्टेट नहीं बनना चाहिए, जहां जांच एजेंसियां औपनिवेशिक युग की तरह काम करें।’ सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिकाओं के निपटारे के लिए समय-सीमा की जरूरत को भी दोहराया। कोर्ट ने चिंता जताई कि महिला कैदियों के साथ लगभग एक हजार बच्चों को भी जेलों में रहना पड़ रहा है। बड़े होकर ये बच्चे अपराधी बनेंगे इस बात के अंदेशे से इन्कार नहीं किया जा सकता।
कानून में स्पष्ट लिखा है कि जब तक आरोपी पर लगाए गए आरोप सिद्ध न हो जाएं तब तक उसे दोषी करार नहीं किया जा सकता। यदि किसी के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज होती है, तो उस व्यक्ति पर लगे आरोपों के आधार पर कानूनी धाराओं को एफआईआर में जोड़ा जाता है। अपराध और आपराधिक धाराओं पर निर्भर करता है कि वो अपराध जमानती है या गैर-जमानती। यदि अपराध जमानती होता है तो आम तौर पर आरोपी को पुलिस थाने में ही जमानत मिल जाती है।
यदि अपराध संगीन होता है तो जमानत का मिलना या न मिलना केवल अदालत पर निर्भर करता है। जहां तक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का सवाल है तो वो जमानत को परिभाषित नहीं करती। हालांकि मामलों को जमानती अपराध और गैर-जमानती अपराध संहिता की धारा 2 (क) में परिभाषित किया गया है। एक जमानती अपराध को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसे संहिता की पहली अनुसूची में जमानती के रूप में दिखाया गया है, या जिसे किसी अन्य कानून द्वारा जमानती बनाया गया है, और गैर-जमानती अपराध का मतलब कोई अन्य अपराध है।
एक व्यक्ति जिसे ‘जमानती’ अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया है, वह पुलिस थाने में जमानत सुरक्षित कर सकता है, जबकि जो लोग पुलिस जमानत हासिल करने में विफल रहते हैं, और जो गैर-जमानती अपराधों के लिए गिरफ्तार होते हैं, उन्हें अदालत में जमानत मिलनी चाहिए। जमानत मिलने का मतलब यह नहीं होता कि आप आरोप मुक्त हो गए हैं। जमानत आम तौर पर कई शतरे के साथ दी जाती है। प्रमुख शर्त यह होती है कि आरोपी शहर छोड़ कर नहीं जाएगा। इसके साथ ही जमानत की एक राशि भी तय की जाती है। इसलिए ताकि आरोपी जांच में सहयोग करे, जिसके आधार पर ही उस पर लगे आरोपों की पुष्टि या उसे आरोप मुक्त किया जा सके।
गौरतलब है कि देश की जेलों में ऐसे कई अपराधी कैद हैं, जो विचाराधीन हैं। इन अपराधियों को कोर्ट में पड़े लम्बित करोड़ों केसों के चलते सुनवाई न हो पाने के कारण जमानत मिलने में देर हो जाती है। इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के मामलों के निपटारे की समय-सीमा तय करने पर भी जोर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी उच्च न्यायालयों को उन विचाराधीन कैदियों रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए उचित कार्रवाई करने के निर्देश दिए, जो कैदी जमानत की शतरे का पालन करने में असमर्थ हैं। कोर्ट ने ऐसे मामलों से निपटने के लिए हाई कोर्ट की विशेष अदालत पर भी जोर दिया और इनमें रिक्त स्थानों को जल्द से जल्द भरने को भी कहा। जस्टिस कौल और जस्टिस सुंद्रेश की बेंच ने सभी उच्च न्यायालयों और राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों से चार महीने में इस संबंध में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को भी कहा।
पहली बार नहीं हुआ है कि जब सुप्रीम कोर्ट जमानत के मामलों को लेकर इतना गंभीर हुआ है। ऐसे तमाम मामले हैं, जिनमें कोर्ट ने जमानत के मौजूदा कानून और आरोपी की जमानत के हक को लेकर तीखी टिप्पणी की है, और पुलिस प्रशासन को भी चेतावनी दी है। आम तौर पर देखा गया है कि कोर्ट और पुलिस की तनातनी, पुलिस द्वारा गैर-कानूनी तरीके से की गई गिरफ्तारी के चलते होती है। जानकारों का मानना है कि पुलिस कभी-कभी राजनैतिक कारणों या किसी अन्य दबाव के चलते गिरफ्तारी करने में जल्दी करती है। यह भी देखने में आया है कि जब इसके विपरीत पुलिस द्वारा गिरफ्तारी न करने पर कोर्ट ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। देखना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत के कानून में सुधार और उसे समयबद्ध तरीके से लागू करने में केंद्र सरकार क्या रु ख अपनाती है? जो भी हो सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों को राहत मिलेगी। लम्बित पड़े रूटीन गिरफ्तारियों की जमानत के मामलों की सुनवाई को लेकर कोर्ट के कीमती समय की बचत भी होगी बशर्ते उच्च न्यायालय और सरकार सर्वोच्च न्यायालय के इन निर्देशों का कड़ाई से और बिना देरी के पालन करें।
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