प. बंगाल : महुआ की जबान तृणमूल को भारी न पड़ जाए
जिस देवी के नाम पर शहर का नामकरण हुआ हो उसी के बारे में गलत बयान देकर तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा चारों तरफ से घिरती नजर आ रही हैं।
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विपक्ष विशेष कर भाजपा जहां मां काली पर मोइत्रा द्वारा की गई अशोभनीय टिप्पणी को सांसद की काली जुबान बताकर उन्हें आड़े हाथों ले रही है तो तृणमूल के कई नेता भी महुआ के बयान से किनारा करते हुए पार्टी की बिगड़ी छवि को बनाने में जुटे हैं। इस बीच, पार्टी की मुखिया और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मौन रहना लोगों के गले नहीं उतर रहा, हालांकि ममता ने एक इंटरव्यू में इशारों-इशारों में महुआ का नाम लिए बगैर उन्हें सीख देते हुए डैमेज कंट्रोल की जो कोशिश की उसे ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ ही कहा जाएगा।
जय काली कलकत्ता (कोलकाता) वाली कहने और मां काली पर आस्था रखने वाले शहर तो क्या सूबे के करोड़ों लोगों को सांसद के बेतुके बयान से ठेस पहुंची है और भाजपा इसका पूरा राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। कोलकाता जिसे धर्म की नगरी और संवेदनाओं का शहर कहा जाता है। यहां के लोग किसी भी देवी-देवता या महापुरु षों का अपमान यूं सह नहीं सकते, विशेष कर देवी दुर्गा और मां काली का। ममता व महुआ दोनों को यह ध्यान और याद रखना होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जब 42 में से 18 सीटें जीती तो भाजपाईयों के उत्साह का ठिकाना नहीं रहा था और केसरिया खेमे के लोग जहां-तहां ‘जय श्रीराम’ का नारा बुलंद करने लगे थे। यहां तक अग्निकन्या के नाम से मशहूर ममता के काफिले के समक्ष भी ‘जय श्री राम’ का उच्चारण करते थे, इससे खफा ममता जिस तरह से अपने निजी वाहन से उतर कर प्रतिक्रिया देती थीं, वह लोगों को नागवार गुजरी। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ममता को ‘जय श्रीराम’ उच्चारण से इतनी चिड़ क्यों है? जिसका परिणाम ममता को बीते साल (2021) हुए विधानसभा में भुगतना पड़ा और तीन विधायकों वाली भाजपा के विधानसभा में 77 विधायक हो गए, यह बात अलग है कि नाना प्रकार के कारणों से 5-6 विधायकों ने पाला बदल लिया। ठीक इसी तरह विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण के प्रचार के लिए कोलकाता पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री व भाजपा नेता अमित शाह की रैली के दौरान शहर के कॉलेज स्ट्रीट स्थित विद्यासागर की एक मूर्ति को क्षति पहुंची थी और इसका खामियाजा भाजपा को भुगताना पड़ा था। सूबे में विधानसभा की 77 सीटें जीतने वाली भाजपा महानगर (कोलकाता) में एक सीट भी नहीं जीत पाई।
यह कहने और बताने का तात्पर्य यह कि चाहे तृणमूल हो या भाजपा, देवी-देवताओं और महापुरुषों के अपमान की कीमत दोनों को ही चुकानी पड़ी और भविष्य में भी चुकानी पड़ेगी। बंगाल के निवासी यह भली-भांति जानते हैं कि राजनीति अपनी जगह है और सभ्यता, संवेदना व सम्मान अपनी जगह। बंगालवासियों की इस भावना को अब भाजपा भी अच्छी तरह समझ गई है और इस मुद्दे को भुना कर सूबे में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। भाजपा के प्रदेश से लेकर केंद्र तक के कई नेता महुआ के उक्त बयान की र्भत्सना कर चुके हैं, जिसमें महुआ ने काली को मांस और शराब स्वीकार करने वाली देवी बताया था। उक्त बयान के खिलाफ शहर के विभिन्न थानों के अलावा अन्य राज्यों में भी शिकायत दर्ज हुई। सूबे के राज्यपाल ने जहां महुआ के बयान को धार्मिंक भावनाओं पर चोट करार दिया वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने एक कार्यक्रम में मां काली की कृपा भारत पर सदा बनी रहेगी कहकर तृणमूल को यह बताने को कोशिश की कि भाजपा इसे हल्के में नहीं लेने वाली।
अब जब अगले कुछ महीनों में कार्तिक अमावस्या को सूबे में धूमधाम से काली पूजा मनाई जाएगी और उसके कुछ सप्ताह बाद राज्य में पंचायत चुनाव होने की संभावना है, ऐसे में महुआ द्वारा काली पर न केवल ऐसा बयान देना, बल्कि अपने ही तेवर व तर्क के साथ उस पर अडिग रहना तृणमूल के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि फिलवक्त सूबे में तृणमूल का दबदबा और ममता का जादू बरकरार है, लेकिन यह कब तक बरकरार रहेगा यह कहना मुश्किल है। यह भी सच है कि लोकसभा चुनाव में अभी दो साल और विधानसभा चुनाव में चार साल शेष है, लेकिन अगले कुछ महीनों में पंचायत चुनाव होने वाले हैं और पिछले नतीजों (लोकसभा व विधानसभा) को देखे तो ज्ञात होता है कि शहर की तुलना में जिलों में भाजपा की पकड़ मजबूत रही है, इसी लिए प्रदेश भाजपा इस फिराक में लगी है कि काली पर दिया गया बयान तृणमूल के लिए पंचायत चुनाव में काल साबित हो। भाजपा उक्त बयान के सहारे कितना आगे बढ़ पाती है और राजनीतिक स्तर पर तृणमूल को कितना नुकसान पहुंचा पाती है, यह कहना तो फिलहाल जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि महुआ ने भाजपा को एक अच्छा मौका अवश्य दिया है।
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