खाद्य सुरक्षा दिवस : सबको भोजन मुहैया कराने की चुनौती

Last Updated 07 Jun 2022 12:28:06 AM IST

भोजन की कमी व दूषित भोजन खाने से प्रतिवर्ष हजारों लोगों की जान चली जाती है।


खाद्य सुरक्षा दिवस : सबको भोजन मुहैया कराने की चुनौती

इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और खाद्य और कृषि संगठन को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों का नेतृत्व करने और पौष्टिक खाने के प्रति लोगों को जागरुक करने की जिम्मेदारी दी है। मालूम हो, बहुत से लोग अनहेल्दी खाने की वजह से तमाम बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में उन्हें खाद्य पदार्थ के प्रति जागरूक करना बेहद जरूरी है। इसी जागरूकता को बढ़ाने के लिए पिछले चार साल से 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं मानी जाती हैं। जिसके बिना मनुष्य का जीवन बहुत मुश्किल है। इसमें रोटी सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि रोटी के बिना तो मनुष्य जिन्दा भी नहीं रह सकता है। खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित किया जाना है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिल सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में हर दस में से एक व्यक्ति दूषित भोजन का सेवन करने से बीमार पड़ जाता है। विश्व भर आबादी के अनुसार अगर देखा जाए तो यह आंकड़ा साठ करोड़ पार कर जाता है। दुनियाभर में विकसित और विकासशील देशों में हर वर्ष भोजन और जलजनित बीमारी से लगभग तीस लाख लोगों की मौत हो जाती है, जो कि सेहत के लिए एक बड़ा खतरा है। इस बार हम चौथा विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मना रहे हैं। जिसकी थीम ‘सुरक्षित भोजन, बेहतर स्वास्थ्य’ है, जो मानव स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की भूमिका पर प्रकाश डालती है।

यह ठीक है कि भारत सहित दुनिया के भर के अधिकांश देशों में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कमी आई है। फिर भी आज भी विश्व में कई ऐसे देश है, जहां लोग ऐसे हैं भुखमरी से जूझ रहे हैं। विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक नौ अरब होने का अनुमान लगाया जा रहा है और इसमें करीब 80 फीसद लोग विकासशील देशों में रहेंगे। ऐसे में सबसे अहम सवाल यह है कि एक ओर हमारे और आपके घर में रोज सुबह रात का बचा हुआ खाना बासी समझकर फेंक दिया जाता है तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें एक वक्त का खाना तक नसीब नहीं होता और वह भूख की वजह से दम तोड़ देते हैं। एक अनुमान के मुताबित भारत में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई बर्बाद चला जाता है। बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे करोड़ो लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बढ़ती सम्पन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करने की क्षमता के साथ ही खाना फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। विश्व खाद्य संगठन के अनुसार देश में हर साल पचास हजार करोड़ रुपये का भोजन बर्बाद चला जाता है। एक आंकलन के मुताबिक बर्बाद होने वाले भोजन की धनराशि से पांच करोड़ बच्चों की जिदगी संवारी जा सकती है।
इस संदर्भ में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य अपव्यय को रोके बिना खाद्य सुरक्षा संभव नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक हमारी लापरवाही के कारण पैदा किए जाने वाले अनाज का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद कर दिया जाता है। देश में एक तरफ करोड़ों लोग खाने को मोहताज हैं। वहीं लाखों टन खाना प्रतिदिन बर्बाद किया जा रहा है। हमारे देश में हर साल उतना गेहूं बर्बाद होता है, जितना आस्ट्रेलिया की कुल पैदावार है। नष्ट हुए गेहूं की कीमत लगभग 50 हजार करोड़ रु पये होती है और इससे 30 करोड़ लोगों को सालभर भरपेट खाना दिया जा सकता है। हमारे देश में 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है क्योंकि उसे रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त भंडारण की सुविधा नहीं है। औसतन हर भारतीय एक साल में छह से 11 किलो अन्न बर्बाद करता है। साल में जितना सरकारी खरीदी का धान व गेहूं खुले में पड़े होने के कारण नष्ट हो जाता है। उतनी राशि से गांवों में पांच हजार वेयर हाउस बनाए जा सकते हैं।
खैर, कह सकते हैं कि भूख से मौत कहीं भी हो, किसी की भी हो, यह वैश्विक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के नाम पर काला धब्बा है। यह मिटना ही चाहिए। भोजन की बर्बादी रोकने के लिए हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। वर्तमान समय में समाज के सभी लोगों को मिलकर भोजन की बर्बादी रोकने के लिये सामाजिक चेतना लानी होगा। तभी भोजन की बर्बादी रोकने का अभियान सफल हो पाएगा।

रवि शंकर


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