बतंगड़ बेतुक : हो जा विश्व युद्ध अब तो हो जा

Last Updated 24 Apr 2022 12:33:12 AM IST

झल्लन आता हुआ दिखाई दिया तो हमने थोड़ा सा मुस्कुराते हुए उसकी गंभीरता का हालचाल पूछने का मन बना लिया।


बतंगड़ बेतुक : हो जा विश्व युद्ध अब तो हो जा

झल्लन बोला, ‘जुहार ददाजू, काहे मुस्कुरा रहे हैं, हम क्या आपको बिजूका नजर आ रहे हैं?’ हमने कहा, ‘हम जितना तुझे समझ पाये हैं उससे तू बिजूका है या नहीं यह अभी तक तय नहीं कर पाये हैं। पर बता, तेरे ऊपर गंभीरता का जो भूत चढ़ा था वह अभी तक चढ़ रहा है या थोड़ा बहुत उतर रहा है।’ वह बोला, ‘गंभीर तो हम हैं पर फिलवक्त हमारी गंभीरता की दिशा थोड़ी मुड़ रही है और सीधे रूस और यूक्रेन से जुड़ रही है।’

हमने कहा, ‘रूस और यूक्रेन में जो हो रहा है सो हो रहा है पर उन्हें लेकर तेरे दिमाग में दर्द क्यों हो रहा है?’ वह बोला, ‘सुनिए ददाजू, दर्द-वर्द कुछ नहीं हो रहा है, बस हम इंतजार करते-करते पगला गये हैं और सच्ची कहें तो दिमाग से दुबला गये हैं। अब ये तो हद है कि होते-होते भी कुछ न हो, आपके दिमाग का दही हो जाये पर इंतजार का तनाव जरा भी कम न हो।’ हमने कहा, ‘आखिर तू किस बात का इंतजार कर रहा है जो खत्म ही नहीं हो रहा है?’ वह बोला, ‘कैसी बात करते हो ददाजू, इंतजार की कशमकश में हम अकेले थोड़े रह रहे हैं, पूरी दुनिया दो महीने से जिसका इंतजार कर रही है उसका हम भी कर रहे हैं।’ हमने कहा, ‘गाल मत बजा, जो कहना चाहता है सीधे बता?’

वह बोला, ‘ददाजू, हम तीसरे वियुद्ध का इंतजार कर रहे हैं जिसके आगमन के नगाड़े देश के सारे मीडियाबाज बजा रहे हैं, उछलबच्चे एंकर वियुद्ध आया-वियुद्ध आया चीख-चिल्ला रहे हैं। उधर विश्वयुद्ध है जो आ के ही नहीं दे रहा है, लोगों की भावनाओं का संज्ञान नहीं ले रहा है। लोग होने न होने के बीच झूल रहे हैं और इंतजार के झूले पर झूलते-झूलते उनके पेट फूल रहे हैं। इसलिए हम सोचे हैं कि रूस या यूक्रेन चले जायें, दोनों से मिलकर टटपुंजिया युद्ध की जगह वियुद्ध शुरू करवायें।’ हमने कहा, ‘ये तो हद है झल्लन कि तू वियुद्ध करवाना चाहता है जबकि हर समझदार इंसान युद्ध को टलवाना चाहता है।’ झल्लन बोला, ‘कैसी बात करते हो ददाजू, हमारे चाहने से मोहल्ले की लड़ाई नहीं रुकती तो रूस-यूक्रेन की लड़ाई कैसे रुक जाएगी और हमारे चाहने से वियुद्ध की आशंका कैसे टल जाएगी? होगा वही जो बड़े चाहेंगे हम तो झांकने-तांकने वाले हैं सो बस झांकेंगे-ताकेंगे। और ददाजू, अगर हमारे चाहने से कुछ होता तो हम पुटिन और जलस्की को यहां उठा लाते, दोनों के कान पकड़कर उठक-बैठक लगवाते और तब तक लगवाते रहते जब तक कि वे शांति से समझ नहीं जाते। साथ में हम नाटो और अमेरिका को भी पूंछ से पकड़ लेते और उन्हें किसी पशुशाला के खूंटे से जकड़ देते और उनकी अकड़ को जमीन से रगड़ देते। पर हम जानते हैं कि हमारे किये कुछ नहीं होगा, वही होगा जो मंजूरे पुटिन और बाइडन होगा।’  
हमने कहा, ‘अगर तेरे चाहने से कुछ नहीं होगा तो चुप तो रह सकता है, दो देशों के महायुद्ध को वियुद्ध में बदलने की कामना कैसे कर सकता है?’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, यहां गुंडे-मवालियों, नेताओं-अधिकारियों, भ्रष्ट धनपतियों, उनके दलालों और धर्म-मजहब के ठेकेदारों ने हमारी जिंदगी दोजख कर रखी है और यह दोजख अब हमसे सहा नहीं जाता है इसीलिए हमारा ध्यान फिर-फिर के वियुद्ध पर आ जाता है। सो हम चाहते हैं कि एक बढ़िया-सा वियुद्ध हो जाये और दोस्ती-दुश्मनी का सारा कायं-कलेश मिट जाये। हम नाटो से उम्मीद लगा रहे थे कि वह कुछ करेगा पर वह तो बार-बार नट रहा है और अमेरिका धमकी पर धमकी दे रहा है पर वियुद्ध से पीछे हट रहा है। बस, यही बात हमें नहीं भा रही है, हमारे युद्धाकांक्षी मन को बिल्कुल नहीं सुहा रही है।’ हमने कहा, ‘‘तू इतना मनुष्य विरोधी कब से हो गया झल्लन जो चाहता है कि सारी दुनिया युद्ध में घिसट आये, लोग बेमौत मारे जायें और समूची इंसानी सभ्यता मिट जाये। तेरी सोच निहायत ही घटिया और निकम्मी है, इसमें कोई आशा-उम्मीद नहीं झलकती पता नहीं तेरे अंदर ये कैसे जन्मी है। तुझे तो यह सोचना चाहिए कि तबाही कैसे रुकेगी और तबाही के सौदागरों की जमात कैसे झुकेगी, कैसे उनकी विनाशकारी गति थमेगी।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप हमें समझदार प्रतीत होते हो फिर ऐसी नासमझी की बात कैसे करते हो, पता नहीं आज के इस माहौल में किस उम्मीद पर जीते हो।’
हमने कहा, ‘न सही कोई उम्मीद पर उम्मीद टूटनी तो नहीं चाहिए, आशाओं की मटकी फूटनी तो नहीं चाहिए। कसम खा कि आगे ऐसी विध्वंसक बातें नहीं करेगा और अगर कामना करेगा तो युद्ध के रुकने की कामना करेगा।’
हमारी बात सुनकर झल्लन हमारे निकट खिसक आया और हमारे कानों में फुसफुसाया, ‘सुनिए ददाजू, हमारी अपनी इच्छा है कि हम मौजूदा दौर में रोते-कलपते नहीं मरें, मरें तो या तो वियुद्ध में मरें या फिर अपनी आंखों से वियुद्ध देखकर मरें। बस, हमारी यह चाह पूरी हो जाये तो हमारे चिक्खड़ मीडिया के साथ-साथ हमारी जिंदगी भी सार्थक हो जाये।’

विभांशु दिव्याल


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