मीडिया : अहाभारत महाभारत

Last Updated 09 Jan 2022 01:15:30 AM IST

एक ने कहा : ‘जोश’ कैसा है? दूसरे ने कहा : ये ‘कर्मा’ है। तीसरा बोला: ‘जैसा करोगे वैसा भरोगे।’ इसे कहते हैं : दूसरे की फजीहत का मजा लेना।


मीडिया : अहाभारत महाभारत

पंजाब में पीएम के काफिले का रोका जाना, बीस मिनट तक उनका लगभग ‘निष्कवच’ बने रहना, फिर रुसवा होकर लौट जाना और इसे देख चिढ़ाना कि आपका जोश कैसा है, या ये आपका ‘कर्मा’ है..कुछ कांग्रेस नेताओं की नई निष्करुणता को जताता है।
यह भारत के ‘पीएम’ की फजीहत थी जिसकी खिल्ली नेता खुलेआम उड़ा रहे थे। यह सोशल मीडिया की ‘लंपटता’ का ‘मेन मीडिया’ में आना था। पीएम चुन लिए जाने के बाद कोई नेता एक दल का नेता नहीं रह जाता। सबका हो जाता है। उसकी सुरक्षा जरूरी होती है। वो सुरक्षित नहीं तो कौन सुरक्षित हो सकता है। इसीलिए पीएम जहां जाता है, वहां पूरे प्रोटोकोल का पालन होता है। स्थानीय प्रशासन पूरा सहयोग करता है लेकिन मीडिया की दी जाती सूचनाओं से साफ है कि स्थानीय प्रशासन ने कर्त्तव्य में कोताही बरती। न पीएम का नया ‘रूट’ सुरक्षित किया, न उनके ‘रूट’ को गोपनीय रखा। ऐन रास्ते में प्रदर्शनकारियों ने रास्ता रोका। वे चिल्लाने लगे..जाने न देना..। पाक बॉर्डर से बीस किमी. की दूरी पर पीएम के साथ कुछ भी हो सकता था। तिस पर भी कुछ सेडिस्ट मसखरे कांग्रेसी नेता पीएम के जोश के बारे में पूछते रहे और ‘कर्मा’ (कर्मफलवाद) की दुहाई देते रहे और ऐसा कहने वाले सिर्फ कांग्रेसी रहे, जिन्होंने दो-दो पीएम सुरक्षा में असावधानी के कारण ही खोए।
उस वक्त क्या किसी ने कहा था कि यह ‘कर्मा’ है, जो सामने आया है? क्या कटाक्ष किया था कि अब भुगतो बेटा। किसी ने किया तो वो भी उतना ही ‘पातकी’ था जितना कि पीएम की दुर्गत पर कोई हंसने वाला है। मीडिया हमारा ‘दुष्ट शिक्षक’ है। हमें तमीज दिखाता है तो हम तमीज सीखते हैं। बदतमीजी दिखाता है तो उसे और भी जल्दी सीखते हैं। मीडिया ‘सेडिज्म’ (परपीड़क) को आदर्श की तरह दिखाता है, तो हम सब भी ‘सेडिस्ट’ बन जा सकते हैं। यों भी इन दिनों अपने समाज का मिजाज अधिकाधिक चिढ़चिढ़ा, कटखना, बदलेखोर और हिंसक हो चला है, राजनीति का मुख्य स्वर भी ‘विचारधारा’ और ‘स्पर्धा’ का न रहकर ‘हेट’ का बन चला है। लेकिन ध्यान रहे कि ‘हेट’ का अपना गणित होता है। ‘हेट’ से ‘हेट’ बढ़ती है। ‘हेट’ के बढ़ने से ‘क्रोध’ बढ़ता है। ‘क्रोध’ के बढ़ने से ‘बैर’ बढ़ता है। ‘दुश्मनी’ बढ़ती है और इसीलिए हर आदमी दूसरे के ‘पराभव’ पर हंसता है। ‘हेटकर्ता’ से प्रेम की बात करो तो वह उस पर भी शक करता है कि इसके बस का कुछ नहीं, इसलिए रिरिया रहा है।

मीडिया में लगातार प्रसारित होती कुछ प्रेस कॉन्फ्रेंसों और बहसों को याद करें तो हमें वह ‘शठ’ व ‘दुर्विनीत’ उपहास बार-बार महसूस होता है। कई नेताओं के कथन और उनके मानी में फर्क नजर आता है। ऐसे लोग ऊपर से शिष्ट लेकिन अंदर से अशिष्ट  नजर आते हैं। ऊपर से सीरियस लेकिन अंदर से ‘नॉन-सीरियस’। इस प्रसंग में कांग्रेस के कई नेता व प्रवक्ता पहले कहते हैं कि पीएम सबके हैं। उनकी सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। अगले ही पल सुरक्षा से हुए ‘खिलवाड़’ को पीएम का ‘कर्मा’ बताने लगते हैं। ‘कर्मा’ है तो ‘कर्मा’ है। जो होना था वही हुआ। इसलिए  पंजाब पुलिस व प्रशासन से कोई चूक नहीं हुई। जो हुई वो पीएम से हुई। उनकी ‘एसपीजी’ से हुई। इसके लिए गृह मंत्री अमित शाह जिम्मेदार हैं। उनको इस्तीफा देना चाहिए जबकि चैनलों ने प्रथम दृष्ट्या स्थानीय प्रशासन की कोताही को बार-बार रेखांकित किया है। ऐसे ही, कई नेताओं ने ‘रैली फ्लॉप’ होने के कारण पीएम का सड़क से जाने और अचानक लौटने को ‘ड्रामा’ बताया। कई ने पीएम का रास्ता बंद करने वालों को ‘भाजपा के आदमी’ बताया जबकि चैनलों ने फुटेज दिखाकर और बाद में खालिस्तानी आंदोलन के नेता पन्नू ने अपने बयान से साफ किया कि यह सब किसका किया धरा था।
पहले ‘घृणा भाव’ फिर ‘घृण्य’ के प्रति ‘उपहास भाव’ एक बार महाभारत करवा चुके हैं। क्या अब दूसरे महाभारत की तैयारी है? बहुत से लोग मानते हैं कि हेट का यह आदान-प्रदान एकतरफा नहीं है। भाजपा के कुछ नेता भी किसी हद तक इस घृणा भाव को फैलाने के लिए जिम्मेदार रहे हैं। कांग्रेस को हर बात के लिए जिम्मेदार ठहराना, कांग्रेस मुक्त भारत का नारा, कांग्रेस के नेताओं पर ‘पर्सनल कटाक्ष’ आदि ने भी हेट बढ़ाई है जबकि जरूरत एक ‘हार्दिक संवाद’ की है। इसीलिए मीडिया चिंतित है, और आम जनता भी कि आखिर, यह ‘महाभारत’ तक चलेगा?

सुधीश पचौरी


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