बतंगड़ बेतुक : तमाशबीन हैं, तमाशबीन ही रहेंगे

Last Updated 09 Jan 2022 01:07:12 AM IST

इस बार हमने झल्लन से पूछा, ‘लखीमपुर खीरी में किसानों द्वारा की गयी हत्याओं पर तू क्या कहना चाह रहा था, क्या बहस उठाना चाह रहा था?’


बतंगड़ बेतुक : तमाशबीन हैं, तमाशबीन ही रहेंगे

झल्लन बोला, ‘तो सुनिए ददाजू, आपने किसानों की हत्याओं को और किसानों द्वारा की गयी हत्याओं को घालमेल में घोल दिया, एक तरफ हत्या की क्रिया थी और दूसरी तरफ हत्या की प्रतिक्रिया, मगर आपने दोनों को एक तराजू पर तौल दिया। किसानों के सामने उनके साथियों पर गाड़ी चढ़ा दी गयी, उन्हें कुचलकर मार दिया, इसलिए स्वाभाविक गुस्से में खौलकर किसानों ने गैर-किसानों को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। किसानों की जगह कोई और भी होता तो वो भी यही करता, मारने वालों को मारता उन पर रहम नहीं करता।’
हमने कहा, ‘तेरी यह व्याख्या झल्लन हमें बहुत डरावनी लग रही है इसीलिए हमें बहुत खल रही है। गुस्से में भड़ककर कोई भी किसी पर अपना गुस्सा उतार डाले और पीट-पीटकर उसे मार डाले, अगर इसे जायज ठहरा दिया जाएगा तो कानून का न्याय जहन्नुम चला जाएगा। अगर तेरे हिसाब से किसानों ने जो किया वो क्षम्य है तो इस हिसाब से किसानों के साथ जो हुआ वह क्यों अक्षम्य है? जिस तरह से किसान गुस्से से पगला गये थे उसी तरह किसानों पर पहिया चढ़ाने वाले भी किसानों की बेजा हरकतों से बौखला गये थे और वे भी गुस्से से पगला गये थे। तेरे तर्क से अगर किसानों द्वारा की गयीं हत्याएं स्वाभाविक थीं तो किसानों की हत्याएं अस्वाभाविक क्यों थीं?’

झल्लन बोला, ‘ददाजू, हमें अब भी लग रहा है कि आप चीजों को सही नहीं पढ़ रहे हो और द्वेष के कारण समानता का यह सिद्धांत गढ़ रहे हो।’ हमने कहा, ‘न हम कुछ नया पढ़ रहे हैं, न कोई नया सिद्धांत गढ़ रहे हैं, न गलत दिशा में बढ़ रहे हैं। हत्या के बदले उससे भी ज्यादा क्रूर और भयानक हत्या का सिद्धांत सही मान लिया जाएगा तो इंसानियत का जनाजा उठ जाएगा। यह सभ्य समाज की निशानी नहीं है कि वह एक हत्या पर तो रार मचाए, छाती कूट मातम मनाए और दूसरी हत्या पर नपुंसक चुप्पी मार जाये।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, मान लें आप सही कह रहे हैं, आपके तर्क सही दिशा में बह रहे हैं, तब भी हम और आप क्या कर सकते हैं, चुप्पी मारे हुए हैं क्योंकि सिर्फ चुप्पी ही मार सकते हैं।’
हमारा मन निरंतर अमानवीय, असभ्य और बर्बर होते जाते भारतीय परिदृश्य को लेकर बुरी तरह बेचैन हो रहा था, रो रहा था पर झल्लन भी सच बोल रहा था, जैसे हमारे रिसते घाव के टांके खोल रहा था। हमने कहा, ‘झल्लन, हमारे जैसे लाखों करोड़ों लोग हैं जो अन्याय और बर्बरता का नंग-नृत्य खुली आंखों से देखे जा रहे हैं पर चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, जो बड़े-बड़े ताकतवर अभिनायक, निर्णायक, शक्तिपति सत्ताधीश जो बहुत कुछ कर सकते हैं पर कुछ नहीं कर रहे हैं तो फिर हम और आप क्यों फालतू के खयालों में मर-खप रहे हैं। जिन्हें जो करना होगा वो करते रहेंगे, हम और आप तो सिर्फ तमाशबीन हैं, तमाशबीन ही बने रहेंगे।’
हमने कहा, ‘झल्लन, सारे संकट की जड़ तो यह है कि ये शक्तिवान, संगठनवादी, गिरोहबंद, सत्ताकामी और सत्ताधीश ही देश को जहन्नुम की तरफ ले जा रहे हैं और तू सच कहता है कि हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, किसानों को जीतना था, उनकी जीत हो गयी, सरकार को हारना था उसकी मिट्टी पलीद हो गयी। अगर सरकार और सरकारपति को अपनी बात सही लग रही थी तो फिर उन्हें गलत मांग के आगे समर्पण नहीं करना चाहिए था, चुनावों की चिंता छोड़कर अपनी बात पर अड़ना चाहिए था और जब तक गलत मांग वाले झुक नहीं जाते तब तक तनना चाहिए था। हमें तो लगता है सरकार को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी और आगे भी बार-बार अपनी गर्दन झुकानी पड़ेगी।’
हमने कहा, ‘तू सही कह रहा है झल्लन, समर्पण ने सरकार और उसके नायक की साख बुरी तरह गिरा दी है, उनकी घड़ी की सुई पीछे फिरा दी है। भाई, अगर तुम मानते थे कि तुमने सही कदम उठाया है, आम किसानों के हित की बात को आगे बढ़ाया है तो तुम्हें चुनावों में हार-जीत की चिंता छोड़ देनी चाहिए थी और इस चिंता को छोड़कर अपनी साख में अपनी दृढ़ता जोड़ देनी चाहिए थी। सत्ता किसी की बपौती नहीं है, ज्यादा-से-ज्यादा यह होता कि तुम चुनाव हार जाते और अगर तुम्हें अपने ऊपर और जनता के ऊपर भरोसा होता तो अगला चुनाव जीतकर फिर सत्ता में आ जाते। बिना जनता की मोहर लगवाए आपने अपना कदम वापस ले लिया और भीड़ बल के हाथों में सरकार को तोड़ने का एक नया हथियार दे दिया। भविष्य में इसके परिणाम बहुत बुरे आएंगे और जिन्होंने बेजा हठ के सामने समर्पण किया है वे देश को डरावनी अराजकता की ओर ले जाएंगे।’
झल्लन बोला, ‘सुनिए ददाजू, देा जहां जाएगा चला जाएगा, जो होना होगा हो जाएगा। हम फालतू की चिंता में क्यों मरें, चलिए अपना दिमाग ठंडा करें। आप यहीं बैठिए, हम कहीं से अद्धा जुगाड़ लाते हैं और दोनों यहीं बैठकर लगाते हैं।’

विभांशु दिव्याल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment