सरोकार : कुंठित मन को कठोरता से कुचलना होगा
एक बार फिर औरतें साइबर अपराधियों के निशाने पर हैं। ताजा घटी घटना में करीब 80 मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों को वर्चुअल स्क्रीन के जरिए नीलामी हेतु सार्वजनिक कर दिया गया।
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और ये सब तब हो रहा था जब देश नये संकल्पों और नये विकल्पों के साथ सभी विरोधी ताकतों के विरु द्ध एक समावेशी समाज की परिकल्पना लिए नये वर्ष में प्रवेश कर रहा था।
21 साल का नीरज बिश्नोई, नौजवान मयंक रावत, कम उम्र श्वेता सिंह और युवा विशाल कुमार झा ये वो गुमराह नाम हैं, जिन्हें आज देश बुली बाय आरोपी के नाम से जानता है। इन गुमराह युवाओं की विकृत और सतही मानसिकता से महिलाएं शर्मसार हुई हैं। हालांकि पहली बार नहीं है जब महिलाओं की अस्मिता पर चोट की गई हो। पहले भी सुल्ली डील एप के जरिए कुछ असामाजिक तत्वों ने महिलाओं के स्वाभिमान पर ठेस पहुंचाने की कोशिश की थी। मौजूदा मामले में पीड़ित महिलाओं के प्रोफाइल से उनके फोटो और दूसरे पर्सनल डिटेल निकाल कर उनकी सहमति के बिना एप पर डाले और साझा किया जा रहे थे। हैरानी की बात है कि मामले के सभी मुख्य आरोपी बेहतर शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले आजादख्याल युवा हैं। कहते हैं कि परंपरा और आधुनिकता अथवा पुराने-नये के द्वंद्व से जहां नवीन भाव बोध का सृजन होता है वहीं कुछ विकृतियां भी जन्म लेती हैं। ये विकृतियां मूलत: और सापेक्षिक रूप से मानव और वर्ग विरोधी होती हैं। शायद यहां भी कुछ ऐसा ही हो।
मौजूदा प्रकरण में उनमें महिलाओं को लेकर अमानवीयता तथा वीभत्सतता की बेझिझक अभिव्यक्ति और इस वर्ग के प्रति असहिष्णुता व असहमति स्पष्ट दिखती है। जाहिर है कि पाश्चात्य प्रभाव, सेक्स भावना और इनसे उपजे नैतिकता के प्रति नई विध्वंसक कुप्रवृतियों ने नई पीढ़ी की चेतना को न केवल मलिन किया है अपितु उनके वैयक्तिक और बौद्धिक चेतना को भी क्षरित किया है। सुल्ली हो या बुल्ली ये सभी महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले अपमानजनक शब्द हैं। महिला विरोधी मानसिकता को दर्शाते हैं। महिलाएं किसी भी वर्ग, समुदाय या धर्म की सीमा से नितांत परे अपनी निज अस्मिता बोध के साथ खड़ी हैं। उनकी सतीत्व और स्त्रीत्व का सम्मान किया ही जाना चाहिए। कोई शक नहीं कि समय रहते ऐसी घृणित घटनाओं पर लगाम न लगाई गई तो भविष्य में सभी वगरे की महिलाओं के इसके निशाने पर होने की पूरी संभावना है।
मौजूदा घटना में प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से शामिल लोग किसी खास वर्ग के प्रति नफरत और घृणा से कैसे ग्रस्त हुए, कम उम्र युवाओं के भीतर नफरत का इतना बड़ा सैलाब कहां से आया और स्वस्थ वैचारिकी और सहिष्णुता से इतर उनकी धारणा इतनी जहरीली कैसे हुई। इन सबका समय रहते पता लगाया जाना जरूरी है। युवा देश की रीढ़ और किसी भी विकसित समाज की ताकत होते है। उनके भीतर ऐसे विकारों का जन्मना चिंतनीय है। इसके मनोवैज्ञानिक पक्षों की तलाश बहुत जरूरी है। हालांकि सुखद है कि मीडिया और सिविल सोसायटी के त्वरित दखल के बाद बुल्ली बाई एप यूजर को गिटहब द्वारा ब्लॉक कर दिया गया है। कुछ गिरफ्तारियां भी हुई है। लेकिन ऐसी घटनाएं भविष्य में न होने पाएं और महिलाओं की भावना आहत न हो, इसकी चाक-चौबंदी बढ़ानी होगी। महिला विरोधी कुत्सित भावनाएं किसी भी हाल में जड़ न जमा पाएं, इसके समवेत प्रयास करने होंगे। आखिर, छींटे स्त्रियों के दामन पर ही पड़े हैं।
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