सरोकार : ब्रिटिश सेनाओं में औरतों के साथ यौन उत्पीड़न आम

Last Updated 01 Aug 2021 12:16:48 AM IST

यूके की सेनाओं में करीब-करीब दो तिहाई औरतों को यौन उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।


सरोकार : ब्रिटिश सेनाओं में औरतों के साथ यौन उत्पीड़न आम

हाल में ब्रिटिश संसद की एक रिपोर्ट में सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं के साथ होने वाले बर्ताव की जांच की गई है। रिपोर्ट कहती है कि करीब चार हजार से ज्यादा पूर्व और वर्तमान महिला सैन्य अधिकारियों में से 62 फीसद ने कहा कि उन्हें किसी न किसी तरह के ‘अवांछनीय व्यवहार’ का सामना करना पड़ा है।
कुछ घटनाएं तो दिल दहलाने वाली हैं, जैसे गैंगरेप, तरक्की या वेतन बढ़ाने के बदले सेक्स की मांग, कैंप या जहाज में ‘औरतों पर झपटने’ पर ट्रॉफी देना या प्रतियोगिता करना, वगैरह। एक महिला ने तो यह भी कहा कि मेस या सैनिकों के रहने की जगहों को तो ‘खतरनाक जगह’ के तौर पर देखा जाता है, और अगर किसी युद्धग्रस्त जोन में औरतों को तैनात किया जाता है, तो यह उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है। उन्हें अक्सर उत्पीड़न करने वाले के साथ रहना पड़ता है क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं होता।
वैसे रक्षा मंत्रालय की यह अपनी तरह की रिपोर्ट है क्योंकि अब तक सैन्यकर्मिंयों को लेकर ऐसे अध्ययन नहीं किए जाते थे। इस रिपोर्ट के लिए हर 10 में से एक महिला ने अपनी टेस्टिमनी दी। 11 फीसद महिलाओं ने कहा कि उन्होंने पिछले 12 महीनों में यौन उत्पीड़न झेला है। यह भी पता चला कि शिकायत निवारण प्रणाली पर औरतों को कम भरोसा है। चूंकि हर 10 में से छह ने कहा कि उन्होंने यौन उत्पीड़न और भेदभाव की शिकायत नहीं की। ऐसी घटनाओं की शिकायत करने वाली हर तीन में से एक महिला ने कहा कि उसका अनुभव बहुत खराब रहा। अब संसद इस बारे में विचार कर रही है कि इस समस्या को कैसे दूर किया जाए। क्या शिकायत निवारण के लिए किसी नई अथॉरिटी को तैनात किया जाए। इस पर भी सोचा जा रहा है कि रेप और यौन उत्पीड़न के मामलों को सैन्य अदालतों से हटाकर दीवानी अदालतों में ट्रांसफर कर दिया जाए। आंकड़े बताते हैं कि दीवानी अदालतों में दोष सिद्धि की दर सैन्य अदालतों से ज्यादा है, खासकर रेप के मामलों में।

वैसे भेदभाव के मामले भी काफी हैं, जो सीधे सीधे यौन उत्पीड़न तो नहीं कहे जा सकते लेकिन लिंग भेद के जीते जागते उदाहरण हैं। जैसे मूवमेंट में मुश्किलें पैदा करने वाली आम्र्ड प्लेट्स, बड़े आकार के हैलमेट, जिनसे देखने में दिक्कत होती है, शौचालयों के न होने की वजह से पानी पीने से परहेज करना। और यह भारतीय सेना में महिलाओं की स्थिति जैसा ही है। आपने गुंजन सक्सेना पर बनी फिल्म देखी हो तो याद आ जाएगा कि औरतों को पुरु षों के प्रभुत्व वाली सेनाओं में किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इसी साल सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा था कि सेना में महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन के लिए फिटनेस का जो पैमाना तैयार किया है, वह मनमाना और तर्कहीन है। पुरु षों को पांच साल की नौकरी के बाद स्थायी कमीशन के लिए जिस पैमाने से गुजरना पड़ता है, उसी पैमाने से 15 साल नौकरी कर चुकी महिला अधिकारियों को गुजरना पड़ रहा है। कई साल पहले राज्य सभा में रक्षा राज्य मंत्री ने बताया था कि 2015 से 2017 के बीच थल सेना में यौन उत्पीड़न और भेदभाव के छह मामले दर्ज किए गए। ऐसे मामले नौसेना में तीन और वायुसेना में दो थे। और सच तो यह है कि यह दुनिया भर का हाल है।

माशा


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