मीडिया : मीडिया युद्ध

Last Updated 24 Jan 2021 01:15:45 AM IST

यों तो मीडिया की दुनिया में एक ‘युद्ध’ दबे-छिपे चलता रहता है, लेकिन जब मीडिया की ब्रांडिंग और उससे जुड़े मुनाफे की बात आती है, तो कभी-कभी वह छलक कर ऊपर भी आ जाता है, और एक मीडिया हाउस दूसरे से खुले आम भिड़ा नजर आता है।


मीडिया : मीडिया युद्ध

आज यही हो रहा है। जो मीडिया हमें हमारी खबर दिया करता था, आजकल खुद अपनी खबर दे रहा है। एंकर दुनिया को खबर दिया करते हैं, आजकल खुद अपनी खबर दे रहे हैं। जो हर विषय पर चरचा कराते हैं, वे खुद चरचा का विषय बने जा रहे हैं।
पिछले सप्ताह हमने एक नामी अंग्रेजी एंकर के ‘झूठ-सच’ पर टिप्पणी की थी। इस बार एक और विश्वस्त अंग्रेजी एंकर के ‘झूठ-सच’ पर टिप्पणी कर रहे हैं। यह एंकर अपने को खुलेआम ‘राष्ट्रवादी एंकर’ कहता है, अक्सर ‘राष्ट्र जानना चाहता है’ का नारा लगाकर खुद को राष्ट्र की तरह पेश करने में आनंद लेता है। अपने ‘डिबेट शोज’ में खुद को तानाशाह की तरह पेश करता है, और जरा भी असहमत को ‘देशद्रोही’ कह सकता है। उसकी दूसरी विशेषता अपने रकीबों के चुटीले ‘नाम धरने’ की है। ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’, ‘लुटियंस दिल्ली वाले’, ‘खान मारकेट गैंग’ जैसे नाम उसी के दिए हुए हैं, जो कुछ विपक्षवादियों पर अभी तक चिपके हैं। अपने ‘डिबेट शोज’ में ‘बॉक्सिंग रिंग’ के रिंग मास्टर की तरह पेश होता है, और कई बार पहला मुक्का वही मारता है।

निष्पक्षता और तटस्थता उसके शब्दकोश में नहीं है। हर बहस में खुद एक पार्टी होता है, उसमें भी नेशनलिस्ट, जो कि अपने आप उसे भाजपा से जोड़ देता है। बहुत से दर्शकों के लिए वह आदत की तरह है। बहुतों के लिए रात के नौ बजे उसका शो देखना अनिवार्य है। वह अपने आप में एक स्टाइल है। उसने अपनी आक्रामक एंकरी से एंकरिंग के मानी बदल दिए हैं। बहुत से नेता उससे बात करते कतराते हैं। चाहे जिसको ताल ठोक देता है। किसी को भी ‘मूर्ख’, ‘अनपढ़’ और ‘टुकड़े-टुकड़े’ कह सकता है। लोग उसे ‘सत्ता का दलाल’ और ‘फासिस्ट’ कहते हैं। वह किसी की परवाह नहीं करता। उसकी ‘बदतमीजी’ एक ‘नया नॉरमल’ है। ‘असहमत’ को नीचा दिखाना, अपमानित करना इन दिनों ‘चलता’ है। सोशल मीडिया के दो टूक, अश्रद्ध व मात्सर्य से भरपूर वातावरण ने  टीवी एंकरों और बहुत से वक्ता-प्रवक्ताओं को भी  ऐसी अशालीन भाषा का एक्सपर्ट बना दिया है। ऐसी बहसें कुश्ती की तरह होती हैं। किसी शालीन शास्त्रार्थ की तरह नहीं। यही भाती हैं क्योंकि ये एक्शन से भरपूर होती हैं। यहां जीत-हार साफ नजर आती है और पक्ष-विपक्ष साफ होता है। दुश्मन-दोस्त पहले क्षण से साफ होते हैं। उसने नुक्कड़ की फाइट को टीवी पर ला दिया है। इसी कारण वह और उसका चैनल पापुलर हैं। आज बहुत से हिंदी एंकर उसकी नकल करते हैं!
इस एंकर पर इन दिनों दो आरोप लगे हैं। एक, उसने अपने चैनल की टीआरपी बढ़वाने के लिए ‘टीआरपी आंकने वाले’ अधिकारी को पटाया और उस अधिकारी ने भी अपने फायदे के लिए टीआरपी को एंकर के चैनल के पक्ष में झुका दिया। उसने विज्ञापनों से महंगा रेट लिया। उसका लाभ बढ़ा। इस मित्रता का प्रमाण एंकर व अधिकारी के बीच पांच सौ पेज से अधिक के ‘व्हाट्सऐप चैटस’ बने। जाहिर है कि टीआरपी में हेराफेरी करना संगीन आरोप है, और अगर सिद्ध हुआ तो आरोपितों को तीन बरस की जेल तक हो सकती है। दूसरा आरोप ‘देशद्रोह’ करने जैसा है। इस एंकर पर आरोप लगाए गए हैं कि उसने व्हाट्सऐप चैटों में अपने टीआरपी मित्र को ‘देश की सुरक्षा से जुड़ी बहुत सी खुफिया सूचनाएं’ भी लीक की हैं जैसे कि बालाकोट के तीन दिन पहले मित्र को चैट में बताना कि ‘कुछ बड़ा होने वाला है’..जिसका संबंध पाकिस्तान से है।’ आरोपकर्ता कहते हैं कि क्या पता ऐसी खबरें पाकिस्तान को भी पहले मालूम हो गई हों। यह आरोप भी है कि जिस दिन पुलवामा हुआ उस दिन देश तो शहीदों की गिनती कर रहा था, जबकि यह एंकर अपनी टीआरपी..। उसके प्रतिस्पर्धी एंकर का आरोप है कि यह न केवल ‘गैर-जिम्मेदार पत्रकारिता’ है, बल्कि ‘अनैतिक पत्रकारिता’ भी है। उसे सिर्फ टीआरपी की परवाह है। वह खबरों का ‘सेल्समैन’ है।
हमारी नजर में टीआरपी में हेराफरी करने करवाने की हरकत तो निश्चय ही ‘अपराध’ की श्रेणी की मानी जा सकती है, जिसे अदालत ही तय कर सकती है, लेकिन बालाकोट की सूचना लीक करना आदि ऐसा ‘अपराध’ नहीं लगता क्योंकि उन दिनों तो ऐसी बदले की जनभावना हवा में थी। उपरोक्त से स्पष्ट है कि समकालीन मीडिया युद्ध मूलत: टीआरपी का युद्ध है। एक का  व्हाट्सऐप पर आ गया, दूसरों का जब आएगा तब पता लगेगा।

सुधीश पचौरी


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