परशुराम : राजनीति के निहतार्थ
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध बाह्मणों को एकजुट करने के प्रयास किए जा रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती, तीनों इस काम में जुटे हैं।
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इसके लिए जिन परशुराम को ब्राह्मण प्रतीक बनाया गया है, और ब्राह्मण गौरव बना कर पेश किया जा रहा है, वह और भी हास्यास्पद है। परशुराम ब्राह्मणों के प्रतीक कभी नहीं रहे। मिथ में उनकी छवि ऐसे हिंसक साधु की है, जिसने अपने फरसे से 21 बार क्षत्रिय नरेशों की हत्या की थी। इतनी निर्ममता से कि गर्भस्थ शिशुओं को नहीं छोड़ा।
लेकिन इन्हीं परशुराम की खिल्ली उड़वा देते हैं तुलसीदास। राजा जनक के दरबार में रामचंद्र जी ने शिव का धनुष पिनाक तोड़ दिया है। वादे के अनुसार सीता उनके गले में वरमाल डाल देती हैं। तभी प्रकट होते हैं परशुराम। चीखते-चिल्लाते और तख्त तोड़ते परशुराम। कानपुर और इसके आसपास के सौ कोस के दायरे में यह परशुराम लीला बड़ी मशहूर है। इसे कराते भी कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही हैं। परशुराम को मन की गति से कहीं भी पहुंच जाने का वरदान प्राप्त था, इसलिए पालक झपकते ही वे मिथिला आ जाते हैं। वहां उपस्थित सभी राजाओं की घिग्घी बंध जाती है। परशुराम बहुत क्रोधी ऋषि थे और उनके बारे में विख्यात था कि पूरी पृथ्वी को उन्होंने 21 बार क्षत्रियविहीन किया था। हो सकता है, इसका आशय रहा हो कि उन्होंने 21 बार अत्याचारी शासकों का नाश किया था। लेकिन अब वे इस खूनखराबे से दूर मंदराचल पर्वत पर तपस्या करते हैं। इसलिए राजा लोग निश्चिंत थे। किंतु अचानक उनके आ जाने से सब लोग घबरा गए। राजा जनक उनके पास जाकर उनकी आवभगत करते हैं किंतु जैसे ही परशुराम की नजर टूटे हुए शिव धनुष ‘पिनाक’ पर पड़ती है, तो वे क्रोधित हो उठते हैं। राजा जनक को कहते हैं कि जनक तुम अपनी चिकनी-चुपड़ी बातें बंद करो, यह बताओ कि भगवान शिव का यह धनुष किसने तोड़ा? मैं उस व्यक्ति का तत्काल वध कर दूंगा।
राजा जनक तो इतना सुनते ही सन्नाटे में आ जाते हैं। सोचने लगते हैं कि उनकी बेटी ब्याहते ही विधवा हो जाएगी? क्योंकि परशुराम की क्रोधाग्नि से कोई बच नहीं सकता था, और युद्ध में उनसे कोई जीत नहीं सकता था। वे उनके क्रोध को शांत करने के लिए खूब अनुनय-विनय करते हैं। पर परशुराम बिफरते ही जाते हैं। तब राम स्वयं उनके समीप आकर प्रणाम करने के बाद कहते हैं कि हे महावीर महर्षि! इस शिव धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास है। राम के यह कहते ही कि शिव धनुष आपके किसी सेवक ने ही तोड़ा होगा क्रोधी परशुराम कहते हैं-सेवक तो वह है जो स्वामी का कहा माने, किंतु जो शत्रु जैसा व्यवहार करे वह तो सहस्त्रबाहु की तरह हुआ। वह इस सभा से अलग होकर अपनी पहचान स्पष्ट करे अन्यथा यहां उपस्थित सभी राजा मारे जाएंगे। सुन कर लक्ष्मण मुस्करा कर परशुराम को अपमानित करने के अन्दाज में बोलते हैं। बस यहीं से शुरू होता है परशुराम और लक्ष्मण का तीखा संवाद। लक्ष्मण कहते हैं कि अरे मुनिवर बचपन में तो हमने न जाने कितने धनुष तोड़े हैं पर किसी ने कुछ नहीं कहा। तब फिर इस पुराने और जर्जर धनुष में ऐसी क्या ममता कि भृगुकुल के इतने महाप्रतापी ऋषि स्वयं दंड देने चले आए। इतना सुनते ही परशुराम आपा खो देते हैं। परशुराम के अभिनय को और पुख्ता करने में उसी अभिनेता को खूब वाहवाही मिलती, जो जितना अधिक क्रोध का प्रदशर्न करता। अपने अभिनय में सच्चाई लाने के लिए, वे निजी जीवन में भी क्रोधी बन जाया करते। कुछ तो भांग का सेवन करने लग जाते। शिवदत्त लाल अग्निहोत्री खूब भांग खाते थे। ऐसे में उनकी लाल-लाल आंखें और क्रोध में फरसा लहराना उन्हें बिल्कुल परशुराम बना देता। वे अपना फरसा सदैव अपने साथ रखा करते। निजी जीवन में वे प्राथमिक शिक्षक थे।
लेकिन राजनीति की लीला में परशुराम का अवतरण खुद उन्हें भी नहीं भा रहा होगा क्योंकि राम और परशुराम में कोई भेद नहीं। दोनों ही विष्णु के अवतार और शिव के प्रति श्रद्धा भाव रखने वाले थे। रामायण के संवाद में भी परशुराम अंतत: राम का नमन कर चले जाते हैं। इसलिए उनकी आड़ में विषवमन करने वाले लोग सावधान रहें क्योंकि आम ब्राह्मण विद्वता, धैर्य और क्षमा धारण करने वालों का अधिक श्रद्धा के साथ अनुगमन करता है ना कि सिर्फ जाति की राजनीति करने वालों का।
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