मीडिया : कैसे जाने ईमानदार है?

Last Updated 06 Jul 2020 02:04:06 AM IST

पत्रकारिता के पाठक्रम में पहले दिन से पढ़ाया जाता है कि पत्रकारिता के तीन उद्देश्य होते हैं: सूचना देना, शिक्षा देना व मनोरंजन करना।


मीडिया : कैसे जाने ईमानदार है?

हर पत्रकार चाहे वो प्रिंट मीडिया का हो या टीवी मीडिया का ये बात अच्छी तरह जानता है। पर आम पाठकों और दर्शकों को इसकी सही जानकारी नहीं होती। इस लेख को पढ़ने के बाद, आप आज से ही एक विशेषज्ञ की तरह ये परीक्षण कर पाएंगे जो टीवी चौनल आप देखते हैं या जो अखबार आप पढ़ते हैं वह पत्रकारिता के उद्देश्य पूरे कर रहा है या पत्रकारिता के आवरण में कुछ और कर रहा है।
पहले समझ लें कि सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का सही अर्थ क्या है। मीडिया का काम आपको सूचना देना है। सूचना वो हो जो आपसे छिपाई जा रही हो। उसे खोज कर निकालना और आप तक पहुंचाना होता है। साफ जाहिर है कि सरकार की घोषणाएं, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधान मंत्रियों के वक्तव्य और उन पर बहस इस श्रेणी में नहीं आते। उन्हें जनता तक पहुंचाने का काम सरकार का दूरदर्शन, उसकी समाचार एजेंसियां और प्रेस सूचना विभाग रात दिन करता है। इसे सूचना की जगह प्रोपोगैंडा कहा जाता है। जनता के लिए महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मीडिया आपको बताए कि जो दावे और घोषणाएं की जा रही हैं, उनमें कितनी ईमानदारी है? क्या उनको पूरा करने की क्षमता और साधन सरकार के पास हैं? इससे पहले मौजूदा या पिछली सरकारों ने इसी तरह की घोषणाएं कितनी ही बार कीं और क्या उन्हें पूरा किया गया? मीडिया आपको यह भी बता सकता है कि इन योजनाओं का घोषित लक्ष्य क्या है और पर्दे के पीछे छिपा हुआ लक्ष्य क्या है। कहीं जनसेवा के नाम पर किसी बड़े औद्योगिक घराने को बड़ा मुनाफा कमाने के लिए तो यह नहीं किया जा रहा।

अब आप खुद ही तय कर लीजिए, कि कितने टीवी चौनल और अखबार आपके हित में ऐसी सूचनाएं निडरता से देते हैं या सरकार के चाटुकार बनकर उनकी घोषणाओं और बयानबाजी पर बल्लियाँ उछलते हैं और नकली बहसें करवा कर सत्तारूढ़ दलों की चाटुकारिता करते हैं। मतलब ये कि ऐसे सब चैनल और अखबार आपको खबरों के नाम पर सूचना नहीं दे रहे। यानी ये पत्रकारिता नहीं कर रहे। ये दूसरी बात है कि इस तरह की भांडगिरी करने वालों को सरकारें बड़े विज्ञापन, नागरिक अलंकरण, राज्यसभा की सदस्यता या अन्य ओहदे देकर उपत करती है। शिक्षा का तात्पर्य है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंबा होने के नाते आपके समवैधानिक अधिकारों की जानकारी आपको लगातार देता रहे और उनपर होने वाले किसी भी आघात पर आपको जागृत करता रहे। जहां तक बात पर्यावरण, भूगोल, इतिहास, वित्त जैसे विषयों की है, तो ये सब शिक्षा तो आपको विभिन्न स्तरों पर शिक्षा संस्थानों में मिलती ही है। यहाँ मीडिया का काम यह है कि क्षेत्रों में जो कुछ घट रहा है और उसका प्रभाव आपके जीवन में कैसा पड़ रहा है, उन विषयों को अपने विशेष समवाददाताओं या उस क्षेत्र के विशेषज्ञों के माध्यम से आप तक सूचना पहुंचाए।
यह कहा जा सकता है कि इस मामले में मीडिया काफी हद तक सजग है और आपको सही सूचना दे रहा है। मगर जो मुख्य शिक्षा लोकतांत्रिक अधिकारों या दमन के विरुद्ध दी जानी चाहिए उस काम में हमारे देश का बहुसंख्यक मीडिया विफल रहा है। जहां तक मनोरंजन की बात है, तो मीडिया में मनोरंजन देने का काम करने के लिए फिल्म, नाटक, साहित्य, संगीत व कला जैसे क्षेत्रों की अपनी संरचनाएं हैं, जो आम जनता का मनोरंजन करती हैं। जिस संदर्भ में यहां बात की जा रही है, उसमें वैसे मनोरंजन का दायरा बहुत सीमित होता है। हालांकि आजकल असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए मीडिया कई तरह के हल्के-फुल्के मनोरंजन, समाचारों के साथ दिखाने लगा है। पर उसमें गुणवत्ता का अभाव होता है। प्राय: यह मनोरंजन काफी फूहड़ होता है, जिससे उस मीडिया हाउस की गरिमा कम होती है। इस संदर्भ में ऐसा माना जाता है कि खेलकूद, साहित्य, संस्ति और फिल्मों आदि के बारे में समाचार देकर मनोरंजन का दायित्व पूरा किया जा सकता है।
1987 की बात है, मैं एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक में समवाददाता था और स्वास्थ्य मंत्रालय पर भी खबर देना मेरा दायित्व था। एक दिन मुझे दिल्ली के पांच सितारा ताज होटल में देश की प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन को कवर करने जाना था, जिसका उद्घाटन तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मोती लाल वोरा कर रहे थे। सारा दिन सम्मेलन में बैठने के बाद मैंने पांच कॉलम की जो खबर लिखी, उसकी पहली लाइन ये थी कि ‘देश के गरीबों के स्वास्थ्य पर चिंता जताने के लिए आज एक राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली के पांच सितारा होटल में सम्पन्न हुआ’ उसके बाद करीब 12 पैराग्राफ में, 12 प्रांतों से आए ग्रामीण स्वास्थ्य सेवकों की समस्याओं को लिखा। अंतिम पैराग्राफ में मैंने एक लाइन लिखी, ‘सम्मेलन का उद्टन करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मोतीलाल वोरा ने कहा, सन 2000 तक हम देश में सबको स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर देंगे।’
जाहिर है कि सामान्य रिपोर्टिग से यह प्रारूप बिल्कुल अलग था। आप अपने अखबार उठा कर देख लीजिए; इस तरह की खबर में तीन चौथाई जगह मंत्रियों के भाषण को दी जाती है। जब मुझसे सम्पादक ने पूछा कि मैंने मंत्री के भाषण को ज्यादा जगह क्यों नहीं दी? तो मेरा उत्तर था कि मंत्री महोदय तो ये दावा देश के विभिन्न प्रांतों में आए दिन करते ही रहते हैं और वो छपता भी रहता है, उसमें नई बात क्या है? नई बात मेरे लिए यह थी कि मुझे एक ही जगह बैठ कर देश भर के प्राथमिक स्वास्थ्य सेवकों से उनकी दिक्कतें जानने का मौका मिला, जिसे मैं बिना इन राज्यों में जाए कभी जान ही नहीं पाता। इस पर सम्पादक महोदय भी हंस दिए और उन्होंने रिपोर्ट की तारिफ भी की।

विनीत नारायण


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