कोरोना इफेक्ट : अन्नदाता को ना भूलें

Last Updated 26 Mar 2020 01:53:37 AM IST

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि नोबल कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का असर भारत की अर्थव्यवस्था, रोजगार और आम जनजीवन पर पड़ना ही है।


कोरोना इफेक्ट : अन्नदाता को ना भूलें

लंबे समय तक बाजार बंदी की मार से बड़े उद्योगपति से ले कर दिहाड़ी मजदूर तक आने वाले दिनों की आशंका से भयभीत हैं। इन सारी चिंताओं के बीच किसान के प्रति बेपरवाही बहुत दुखद है। वैसे भी हमारे यहां किसानी घाटे का सौदा है जिससे लगातार खेती छोड़ने वालों की संख्या बढ़ रही है, फिर इस बार रबी की पकी फसल पर अचानक बरसात और ओलावृष्टि ने कहर बरपा दिया। अनुमान है कि इससे लगभग पैंतीस फीसद फसल को नुकसान हुआ। और इसके बाद कोरोना के चलते किसान की रही बची उम्मीदें भी धराशायी हो गई हैं। 

यह अजब संयोग है कि कोरोना जैसी महामारी हो या मौसम का बदलता मिजाज, दोनों के मूल में जलवायु पविर्तन ही है, लेकिन कोरोना के लिए सभी जगह चिंता है, किसान को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। इस साल रबी की फसल की बुवाई का रकबा कोई 571.84 लाख हैक्टेयर था, जिसमें सबसे ज्यादा 297.02 लाख हेक्टेयर में गेहूं, 140.12 में दलहन, 13.90 लाख हेक्टेयर जमीन में धान की फसल बोई गई थी। चूंकि पिछली बार बरसात सामान्य हुई थी सो फसल को पर्याप्त सिंचाई भी मिली। किसान खुश था कि इस बार मार्च-अप्रैल में वह खेतों से सोना काट कर अपने सपनों को पूरा कर लेगा। गेहूं के दाने सुनहरे हो  गए थे, चने भी गदराने लगे थे, सरसों और मटर लगभग पक गई थी और मार्च के शुरू में ही जम कर बरसात और ओले गिर गए। बेमोसम बरसात की भयावहता भारतीय मौसम विभाग द्वारा 16 मार्च को जारी आंकड़ों में देखी जा सकती है।

एक मार्च से लेकर 16 मार्च तक देश के 683 जिलों में से 381 में भारी  बरसात दर्ज की गई। यूपी के 75 जिलों में से 74 में भारी बारिश हुई है तो झारखंड के 24, बिहार के 38, हरियाणा के 21, पश्चिम बंगाल के 16, मध्य प्रदेश के 21, राजस्थान के 24, गुजरात के 16, छत्तीसगढ़ के 25, पंजाब के 20 और तेलंगाना के 14 जिलों में भारी बारिश हुई है। सनद रहे यही फसल में बीज बनने का समय का  दौर था। मगर तेज बरसात और ओलों के कारण पहले से ही तंदरूस्त फसल के बोझ से झूल रहे पौधे जमीन पर बिछ गए। इससे एक तो दाना बिखर जाता है, फिर ओले की मार से अन्न मिट्टी में चला जाता है। फसल भीगने से उसमें लगने वाले कीड़े या अंतिम समय में दाना के पूर्ण आकार लेने की क्षति सो अलग।

कृषि मंत्रालय ने इस साल गेहूं की रिकार्ड पैदावार 10.62 करोड़ टन होने की अनुमान जताया था, लेकिन अब ये उत्पादन गिर सकता है। गेहूं के साथ दूसरी जो फसल को भारी नुकसान पहुंचा है वो सरसों है। राजस्थान, हरियाणा से लेकर यूपी तक सरसों को काफी नुकसान पहुंचा है। कृषि मंत्रालय अपने रबी फसल के पूर्वानुमान में पहले ही 1.56 फीसद उत्पादन कम होने की आशंका जाहिर की थी। अकेले उत्तर प्रदेश में 255 करोड़ की फसल का नुकसान हुआ है।

मौसम की मार ही किसान के दर्द के लिए काफी थी लेकिन कोरोना के संकट से उसकी अगली फसल के भी लाले पड़ते दिख रहे हैं।  जिसने कटाई शुरू कर दी थी या, जिसका माल खलिहान में था, दोनों को बरसात ने चोट मारी है। यदि फसल कट जाए तो थ्रेशर व अन्य मशीनों का आवागमन बंद है। शहरों से मशीनों के लिए डीजल लाना भी ठप पड़ गया है। वैसे तो फसल बीमा एक बेमानी है। फिर भी मौजूदा संकट में पूरा प्रशासन कोरोना में लगा है और बारिश-ओले से हुए नुकसान के आकलन, उसकी जानकारी कलेक्टर तक भेजने और कलेक्टर द्वारा मुआवजा निर्धारण की पूरी प्रक्रिया आने वाले एक महीने में शुरू होती दिख नहीं रही है। 

फसल बीमा योजना के तो दस महीने पुराने दावों का अभी तक भुगतान हुआ नहीं है। यही नहीं कई राज्यों में बैंक किसानों से 31 मार्च से पहले पुराना उधार चुकाने के नोटिस जारी कर रहे हैं। जबकि आने वाले कई दिनों तक किसान की फसल मंडी तक जाती दिख नहीं रही है। छोटे किसान को कोरोना की मार दूसरे तरीके से भी पड़ रही है। कोरोना के कारण, खाद्यान में आई महंगाई से ग्रामीण अंचल भी अछूते नहीं हैं। एक बात और असमय बरसात कोरोना  ने  सब्जी, फूल जैसी ‘नगदी फसल’ की भी कमर तोड़ दी है। ठीक इसी तरह गांव से शहर को चलने वाली बसें, ट्रेन व स्थानीय परिवहन की पूरी तरह बंदी से फल-सब्जी का किसान अपने उत्पाद सड़क पर लावारिस फेंक रहा है। किसान भारत का स्वाभिमान है और देश के सामाजिक व आर्थिक ताने-बाने का महत्त्वपूर्ण जोड़ भी। उसे सम्मान चाहिए और यह दरजा चाहिए कि देश के चहुंमुखी विकास में वह महत्त्वपूर्ण अंग है।  कोरोना की चिंता के साथ किसान की परवाह भी देश के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है।

पंकज चतुर्वेदी


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