खेती-किसानी : कैसे बदलेगी तस्वीर?

Last Updated 03 Sep 2019 05:57:46 AM IST

किसान गरीब क्यों हैं? किसान परिवार क्यों आए दिन आत्महत्याएं कर रहे हैं? हर दिन हमें उनकी जान देने की खबरें पढ़ने-सुनने को क्यों मिलती हैं?


खेती-किसानी : कैसे बदलेगी तस्वीर?

इन सवालों का जवाब दशकों से ढूंढा जा रहा है। बड़ी-बड़ी रिपोर्ट तैयार की गई। कई लागू भी की गई। लेकिन आज तक किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए जो उपाय किए गए, उनसे अब तक समाधान नहीं हुआ बल्कि कृषि विकास दर पिछले साल की 5.1 फीसद के मुकाबले 2 फीसद पर आ गई है।
अहम सवाल है कि क्या हम किसानों की समस्याओं का सही कारण नहीं खोज पाए या खोजना ही नहीं चाहते? हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संकल्प लिया है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुना करेंगे और इस बात को कई बार दोहराया भी है। लेकिन उनके तमाम प्रयासों और कड़ी मेहनत के बाद भी किसानों की आर्थिक स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं हो पा रहा। कहना न होगा कि आज आर्थिक मानकों के आधार पर हम देखते हैं तो पाते हैं कि किसान बेहद असुरक्षित हैं। उनकी स्थिति दयनीय बनी हुई है, और यह स्थिति आजादी के बाद से ही ऐसी ही बनी हुई है। यही वजह है कि भारत में सबको अन्न देने वाला किसान आज कर्ज के तले दबा हुआ है, या आत्महत्या करने को विवश है। देश का किसान आज भी जिन बुरे हालात का सामना कर रहा है, वे किसी से छिपे नहीं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक घाटे का सौदा होने की वजह से हर रोज ढाई हजार किसान खेती-किसानी छोड़ने को विवश हो रहे हैं, और हर दिन पचास के करीब किसान मौत को गले लगा रहे हैं। यह उस देश के लिए बहुत दुर्भाग्य की बात है, जहां की 60 प्रतिशत आबादी खेती-किसानी से गुजारा करती है। यही वजह है कि आज भी हमारे किसान हाशिये पर जीने के लिए मजबूर हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि 58 फीसद से अधिक किसान हर रात भूखे सोते हैं। क्या विडंबना है कि देश के लिए अन्न उपजाने वाले लोग भूखे सो रहे हैं।

वर्ष 2016 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, भारत के 17 राज्यों में (लगभग आधा देश) खेतिहर परिवारों की औसत आमदनी सालाना 20 हजार रु पये से कम है। नीति आयोग ने बताया कि वर्ष 2010 से 2015 के बीच देश भर में किसानों की वास्तविक आय में वार्षिक वृद्धि दर आधा प्रतिशत से कम (वास्तव में 0.44 प्रतिशत) रही। और अगर मुद्रास्फीति से समायोजित करें, तो पिछले चालीस वर्षो में किसानों की आय कमोबेश स्थिर ही रही है। दरअसल, सरकारों का किसानों के प्रति अब तक जो रवैया रहा है, उसे देखते हुए वे यह नहीं समझ पाते हैं कि वे कृषि उपज की खेती करते हैं, या घाटा पैदा करने वाली खेती करते हैं। वे बेहद दुविधा की स्थिति में हैं। दरअसल, ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2000-2017 के बीच में किसानों को 45 लाख करोड़ रु पये का नुकसान हुआ क्योंकि उन्हें उनकी फसलों का समुचित मूल्य नहीं मिला। किसानों को लाभकारी दाम मुहैया कराने के लिए 1965 में कृषि मूल्य आयोग (जिसका नाम आज कृषि लागत एवं मूल्य आयोग है) गठित किया गया था जिसके पहले अध्यक्ष कृषि अर्थशास्त्री डॉ. धर्मनारायण बनाए गए। मगर आज भी किसानों को वाजिब दाम मिलना दुष्कर बना हुआ है।
दरअसल, आजादी के बाद से सारी विकास योजनाएं शहरों को केंद्र में रखकर क्रियान्वित की गई और किसान तथा कृषि प्रधान देश का नारा संसद तक सीमित रहा। लेकिन खेती की हालत सुधारे बिना न तो देश की हालत में सुधार संभव है, और न ही किसानों की स्थिति में। इसमें कोई दो राय नहीं है देश की कुल जनसंख्या का एक बड़ा भाग आज भी कृषि पर आश्रित है। यह ठीक है कि मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल की पहली कैबिनेट मीटिंग में यह फैसला किया है कि किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब सभी किसानों को सालाना 6,000 रुपये मिलेंगे। साथ ही, किसानों के लिए पेंशन योजना का ऐलान भी किया गया है। बीजेपी ने अपने चुनाव संकल्प पत्र में इस योजना में सभी किसानों को शामिल करने का वादा किया था, जिस पर पहली ही कैबिनेट मीटिंग में मुहर लगाई गई। किंतु क्या इससे किसानों की मौजूदा स्थिति में सुधार हो जाएगा?
बहरहाल, कृषि संकट का समाधान, किसानों की पैदावार और उनके आर्थिक हालात को बेहतर बनाना मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौतियों में शुमार हैं। अपने दूसरे कार्यकाल में उसे इन पर बहुत गंभीरता के साथ ध्यान देना होगा। पूरे देश को अन्न मुहैया कराने वाला किसान आज सरकारों की उपेक्षा के चलते निराश है। इसलिए किसानों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार को कई स्तरों पर नये सिरे से सुधार करने की जरूरत है।

रवि शंकर


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