करंट से मौतें : कौन लेगा जवाबदेही?
उत्तर प्रदेश के महाराजगंज के पचरुखी गांव में 29 जुलाई (2019) की दोपहर धान की रोपाई करते हुई सगी बहनों समेत हुई पांच महिलाओं की मौत किसी हारी-बीमारी से नहीं बल्कि खेत में उतरे उस करंट से हुई जो बिजली विभाग के कर्मचारियों-अधिकारियों की लापरवाही थी।
करंट से मौतें : कौन लेगा जवाबदेही? |
खेत के बीचोंबीच 11 हजार वोल्ट की सप्लाई वाला खंभा खड़ा था, जिसके जरिए हाइटेंशन बिजली की सप्लाई होती है। दावा है कि इंसुलेटर लीक होने की वजह से खंभे में करंट उतर गया, जिसने पानी भरे खेत में काम कर रही महिलाओं को अपनी चपेट में ले लिया। इधर 5 अगस्त 2019 को मेरठ के गांव भीष्मानगर में भी एक किसान पिता-पुत्र की मौत खेत में उगी घास के बीच टूटकर गिरे जर्जर हाइटेंशन तार की चपेट में आने से हुई है। इन सारी मौतों के बाद बिजली विभाग के अज्ञात अफसरों पर केस दर्ज कर जांच कमेटी बिठा दी गई, पर क्या इतने भर से लगभग हर दिन तमाम लोगों को मारता करंट थमेगा?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े जो गवाही दे रहे हैं, उनसे साफ है कि बिजली की लाइनों से घरों, खेतों, सड़क किनारे पगडंडियों आदि में उतरता करंट हर साल पहले से ज्यादा लोगों को मार रहा है, लेकिन ज्यादा बिजली विभाग और विद्युत सप्लाई कंपनियां इस ओर से बेपरवाह हैं। वजह है कि सरकारों का न तो इस समस्या पर ध्यान है और न लापरवाही साबित कर दोषी अफसरों- कर्मचारियों को दंडित किया जा रहा है। ज्यादातर हादसों के बाद दर्ज की जाने वाली रिपोर्ट में अज्ञात अफसरों के खिलाफ मामला बनाया जाता है, इसलिए सजा भी अज्ञात रहती है। एनसीआरबी के मुताबिक अकेले यूपी में ही बीते 4 वर्षो में करंट लगने से हुई मौतों का आंकड़ा दोगुना हो गया है। वर्ष 2015-16 में जहां इससे 723 मौतें दर्ज की गई थीं, 2018-19 में इनकी तादाद बढ़कर 1120 हो गई। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि के आंकड़े भी ऐसे ही हैं।
इन राज्यों में सालाना औसतन 1 हजार लोग करंट लगने से जान गंवा रहे हैं, जिस कारण वर्ष 2015 में ही 9986 मौतों का देशव्यापी आंकड़ा करंट से हुई मौतों का दर्ज किया गया था। जरूरी नहीं है कि करंट सिर्फ खेतों में उतर रहा हो या सड़क किनारे लगे खंभों के जरिए मौत का झटका दे रहा हो, यूपी के बलरामपुर जिले में एक स्कूल के 50 बच्चे उस वक्त करंट से झुलस गए, जब स्कूल के ऊपर से होकर जा रही हाइटेंशन लाइन का तार टूटकर बिल्डिंग पर गिर गया। इसी तरह यूपी के ही संभल जिले में तेज हवाओं के कारण हाइटेंशन लाइन का तार टूटा और ट्यूबवेल के पानी में गिर गया, जिसमें नहा रहे चार बच्चे बेमौत मारे गए। कुछ हादसे तो ऐसे हैं कि जहां हाइटेंशन तार के टूटने की नौबत नहीं आई, बल्कि प्रशासन की नाक के नीचे ऐसे निर्माण हुए हैं कि कुछ घरों की छतें बिजली की इन लाइनों के बेहद करीब पहुंच गई हैं। अजमेर में जुलाई, 2019 को हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनी के घर की छत पर खेल रही 10 साल की एक बच्ची इसी तरह हाइटेंशन तार की जद में आकर 70 फीसद झुलस गई। समस्याएं कई हैं। जैसे बिजली सप्लाई की कमजोर लाइनें यानी टूटे-फूटे तार, सीमेंट की जगह लकड़ी के पारंपरिक खंभे, स्कूल की इमारतों और घरों की छतों व खेल के मैदानों के ऊपर से गुजरती हाइटेंशन लाइनें, खंभों के बीच जरूरत से ज्यादा दूरी (औसत 50 फीट से अधिक नहीं होना चाहिए) और कम ऊंचाई वाले बिजली के खंभे (इनका औसत न्यूनतम 18 फीट होना चाहिए)। घरों, स्कूलों और सार्वजनिक इमारतों पर ऐसे हादसे तब आसानी से रोके जा सकते हैं, जब वहां बिजली की लाइनों को भूमिगत कर दिया जाए और जीर्ण-शीर्ण तारों को अविलंब बदल दिया जाए। मगर खर्च के कारण ज्यादातर बिजली कंपनियां इन जरूरतों की सतत अनदेखी करती हैं, जबकि जर्मनी और डेनमार्क में बिजली लाइनों की अंडरग्राउंड केबलिंग के जरिए करंट से होने वाली मौतों पर अंकुश लग गया है।
दावा है कि इसी अनदेखी के चलते बीते सात वर्षो में हमारे यहां 5700 लोगों ने करंट खाकर जान गंवाई है। कई उपभोक्ता मंच मांग करते रहे हैं कि जहां करंट लगने का खतरा हो सकता है, उन सभी जगहों पर बिजली की लाइनों की लगातार जांच होती रहे, लेकिन जाहिर है कि यह मांग अनसुनी रहती है और इसकी गवाही हादसे देते हैं कुछ और नहीं तो सभी जरूरी जगहों पर करंट से बचाव के मामूली उपकरण लगाकर बिजली कंपनियां ऐसी दुर्घटनाओं को थाम सकती हैं, पर यह भी तभी होगा जब करंट से मौत को गंभीरता से लेते हुए दोषी अफसरों-कर्मचारियों पर नामजद रिपोर्ट दर्ज की जाएगी और बिजली के जानलेवा फॉल्ट को राष्ट्रीय अपराध घोषित किया जाएगा।
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