उच्चतर शिक्षा : शिक्षक-नियुक्ति की अर्हताएं
सिद्धांत में ही सही देश शिक्षा एवं शिक्षक के विकास के लिए संवेदनशील है।
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मानव संसाधन मंत्रालय की नवनियुक्त अध्यापकों की तीन माह के उन्मुखी पाठ्यक्रम की योजना तथा शीर्ष नेतृत्व जैसे कुलपति आदि के प्रशिक्षण पर विचार और फिर लीप (लीडरशिप फॉर ऐकेडमिशियंस प्रोग्राम) एवं अर्पित (एन्यूअल रिफ्रेशर प्रोग्राम इन टीचिंग) के माध्यम से अध्ययन-अध्यापन को प्रभावशाली बनाने का संकल्प। क्रेया विश्वविद्यालय के उद्घाटन सत्र में उपराष्ट्रपति की विश्व रैंकिंग में भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों की दयनीय स्थिति पर चिंता और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की विश्वविद्यालय शिक्षकों के लिए सभी पूर्व नियोजित कार्यक्रमों को संबंधित विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू करने का ऐलान। उपचार के लिए मर्ज की जगह पर दवा लगाया जाना ही कारगर होगा।
केंद्र एवं राज्य विश्वविद्यालयों में अधिक मात्रा में अध्यापकों के पदों का खाली होना उच्च शिक्षा की आखिरी कमी हो या न हो, प्रभावकता के स्तर को हासिल करने का हौसला लिए शिक्षण संस्थानों की पहली समस्या जरूर है। कार्यक्रम को योजनाबद्ध तरीके से लागू करना एक बात है, और कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना वाली गलती दुहराना दूसरी बात। केंद्रीय गृह मंत्री गया में अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के सम्मेलन में भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए शिक्षकों से योगदान मांगते हैं, लेकिन देश में प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक शिक्षकों की कमी मौलिक समस्या बनी हुई है। उच्च शिक्षण में नियुक्त शिक्षकों के लिए पहले से चल रहे ओरिएंटेशन कार्यक्रम की जगह अब इंडक्शन पाठ्यक्रम बनाया जा रहा है। इंडक्शन कोर्स शिक्षण की तकनीक, शिक्षक के कार्य एवं जिम्मेवारियों, मापन एवं मूल्यांकन के मूल तत्व, विश्वविद्यालय की संरचना एवं कार्यप्रणाली के साथ-साथ नवनियुक्तों को शैक्षिक नेतृत्व की भी शिक्षा देगा।
शिक्षा एवं शिक्षण के मूल तत्व को आत्मसात करने के अवसर नये शिक्षक के लिए जरूरी हैं, किन्तु विचारना होगा कि तीन महीने का पाठ्यक्रम कहीं उबाऊ न हो जाए। नेतृत्व की क्षमता के विकास के लिए सरकार उच्च पदों के लिए भी चार से सात दिनों के नेतृत्व प्रशिक्षण की व्यवस्था करना चाह रही है। ऐसे कार्यक्रम कुलपति, प्रतिकुलपति, निदेशक, कुलसचिव, संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष आदि जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर आसीन होने वाले व्यक्तियों की नेतृत्व क्षमता बढ़ाने की कोशिश हैं।
उचित होता यदि सरकार प्रशिक्षण के पूर्व माकूल शैक्षिक एवं शैक्षणिक परिस्थिति तथा परिवेश प्रदान करती। शिक्षण एवं शिक्षा को आधार देने के लिए दूसरी पंक्ति की नेतृत्व क्षमता को भी सींचने की योजना है। हाल में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ‘लीप’ तथा ‘अर्पित’ नामक दो कार्यक्रम लागू करने की योजना बनाई है, और अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग इसको क्रियारूप देने की दिशा में अग्रसर है। ‘लीप’ तीन सप्ताह का नेतृत्व क्षमता विकास का सशक्त कार्यक्रम है। भारतीय प्रबंधन संस्थान, भारतीय तकनीकी संस्थान एवं चंद नामी विश्वविद्यालयों में दो सप्ताह का घरेलू प्रशिक्षण देने के लिए पंद्रह संस्थाओं का चुनाव किया गया है। एक सप्ताह के नेतृत्व प्रशिक्षण के लिए विदेशों के हॉर्वर्ड एवं ऑक्सफोर्ड जैसे कई नामचीन विश्वविद्यालयों को चुना गया है। यह प्रयोग अभिनव और अनूठा है।
काश! हम उसी रूप में विदेशी भागीदारी कर पाते जिस रूप में विश्व के उच्च रैंकिंग वाले विश्वविद्यालय करते हैं। ‘लीप’ का मकसद देश में दूसरी पंक्ति की अकादमिक नेतृत्व क्षमता विकसित करना है ताकि प्रशिक्षु तैयार होकर भविष्य की नई जिम्मेवारी के लिए आवश्यक नेतृत्व कौशल, समस्या समाधान, तनाव संतुलन, दल-निर्माण, संप्रेषण कौशल, वित्तीय प्रबंधन, चिन्ता प्रबंधन के साथ-साथ सामान्य प्रशासन की बारीकियां समझ सकें। देश इस कार्यक्रम के माध्यम से आवश्यक अकादमिक एवं प्रशासनिक मानव शक्ति का उपयुक्त निर्माण कर सका तो देश की प्रगति में अवश्य ही यह धूमकेतु की तरह दृष्टिगोचर होगा। ‘अर्पित’ चालीस घंटे का कार्यक्रम है। इसकी पाठ्यवस्तु 20 घंटा वीडियो तथा 20 घंटा नॉन-वीडियो है। यह कार्यक्रम खुले पाठ्यक्रम के लचीलेपन की प्रकृति पर आधरित है, और पढ़ाई के दौरान मूल्यांकन के माध्यम से फीडबैक की व्यवस्था करता है। पाठ्यक्रम के समापन के बाद परीक्षण की व्यवस्था ऑनलाइन एवं लिखित, दोनों रूपों में है। प्रशिक्षण सामग्री स्वयं पोर्टल की मदद से उपलब्ध कराई जाएगी और पूर्व में सूचीबद्ध किसी एक संबंधित राष्ट्रीय संसाधन केंद्र से संबंधित अध्यापक को जोड़ा जाएगा।
सरकारी सोच की दिशा सही है, और संकल्प भी दृढ़ किन्तु हमें पहले शिक्षक, फिर उनके प्रशिक्षण के सिद्धांत पर विचार करने की जरूरत है। साढ़े पांच हजार से अधिक शिक्षकों के पद खाली हैं सिर्फ केंद्रीय विश्वविद्यालयों में। राज्य विश्वविद्यालयों में अधिकांश की स्थिति चिंताजनक है। नये गठित केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लगभग 54 पद रिक्त हैं, आईआईटी एवं आईआईएम भी अपवाद नहीं हैं। अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण के कारण भी नियुक्ति में बाधा आ रही है। नियमित शिक्षकों की जगह दैनिक आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है, कोर्ट में प्राध्यापक काफी समय खर्च करते हैं, उच्च पदों पर लेन-देन की शिकायतें आती हैं, सकल नामांकन अनुपात संतोषजनक नहीं है, क्षेत्रीय विषमता अधिक है, पिछड़े जिलों का यथोचित शैक्षिक विकास नहीं हो रहा है, गरिमामयी प्राचीन संस्थाएं खाली एवं खोखली हो रही हैं-हमें इस तरफ ज्यादा प्रभावी ढंग से मुखातिब होने की जरूरत है।
उच्च शिक्षा में उपराष्ट्रपति की निजी एवं सरकारी भागीदारी के समन्वय पर बल देने की राय उचित हो या न हो, हमें अभी अभिनव प्रयोग की अपेक्षा आधार मजबूत करने पर काम करने की जरूरत है। उच्च संस्थान की रैंकिंग में चाहे क्यूएस र्वल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के मानक हों या टाइम्स हायर एजुकेशन र्वल्ड यूनिवर्सिटी के या भारतीय उच्च संस्थानों के मानक, सबों में शिक्षक एवं शिक्षक के कार्य व उनका विभिन्न क्षेत्रों में योगदान महत्त्वपूर्ण है। तात्पर्य यह कि सशक्त शिक्षक बल के अभाव में अच्छी रैंकिंग संभव नहीं है। हम सशक्त शिक्षक की नियुक्ति, उनकी उपस्थिति व उनकी भागीदारी सुनिश्चित कर सके तो निश्चय ही हम ऐसे आयोजित प्रशिक्षण का लाभ उठा सकेंगे। मजबूत आधार विकास की पहली शर्त है-चाहे शिक्षा व्यवस्था के लिए हो या देश-समाज के लिए।
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