परत-दर-परत : सॉफ्ट हिंदुत्व कहां दिख रहा आपको?

Last Updated 24 Dec 2017 02:58:56 AM IST

इधर कई राजनैतिक टिप्पणीकारों ने कहा है कि सॉफ्ट हिन्दुत्व से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के हिंदुत्व से नहीं लड़ा जा सकता.


परत-दर-परत : सॉफ्ट हिंदुत्व कहां दिख रहा आपको?

ताजा संदर्भ गुजरात विधान सभा का चुनाव है, जिसमें  कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बार-बार अपने को हिन्दू दिखाने की कोशिश की. जब उनकी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने उन्हें जनेऊधारी ब्राह्मण घोषित किया तो उन्होंने इसका विरोध नहीं किया. मानो सचमुच जनेऊधारी हों. इतने सब के बाद भी कांग्रेस को गुजरात में बहुमत नहीं मिला.  
दूसरी ओर, कहा जा रहा है कि गुजरात में कांग्रेस हार कर भी जीती है, और भाजपा जीत कर भी हारी. लेकिन यह पूरा सच नहीं है, क्योंकि सीटें पहले के मुकाबले काफी कम हो जाने के बावजूद भाजपा का वोट प्रतिशत पहले से बढ़ा है, और पहली बार गुजरात में ऐसी सरकार बनने जा रही है, जिसे 49.1 प्रतिशत मिले हैं. लेकिन भारत की राजनीति में सीटों की संख्या का महत्त्व वोट प्रतिशत से ज्यादा होता है. इसलिए यह मानने में हर्ज नहीं है कि भाजपा की लोकप्रियता कम हुई है. दूसरी ओर, बहुमत न मिलने के बावजूद चूंकि कांग्रेस की सीटों में भारी इजाफा हुआ है, इसलिए कांग्रेस भी प्रसन्न है.
लेकिन कांग्रेस की इस ‘हार में जीत’ का श्रेय किसे है? क्या राहुल के हिन्दू संस्करण को, जिसने गुजरात की जनता को मोह लिया? मैं नहीं मानता. राहुल मंदिरों की परिक्रमा नहीं करते, तब भी चुनाव परिणाम लगभग ऐसा ही आता. मूल बात थी नरेन्द्र मोदी की नीतियों और गुजरात सरकार के कामकाज से निराशा. सभी जानते हैं कि भारत में अधिकांश वोट नकारात्मक होता है यानी वह किसी के पक्ष में नहीं, किसी के विरु द्ध होता है. इसलिए कांग्रेस को जो अतिरिक्त वोट मिले, ये वही वोट थे, जो परिस्थिति अनुकूल होने पर भाजपा को जाते. इन्हें चलायमान या अप्रतिबद्ध वोट भी कहा जाता है, जो परिस्थितियों के अनुसार पार्टी बदलते रहते हैं. वास्तव में, सॉफ्ट हिन्दुत्व और असली हिन्दुत्व के बीच तुलना करने का कोई वस्तुगत आधार ही नहीं बनता है. राहुल जिस चीज का प्रदर्शन कर रहे थे, वह आज के चर्चित अर्थ में हिन्दुत्व है ही नहीं. राहुल कई बार भाजपा को फासिस्ट कह चुके हैं, और फासीवाद से लड़ने के लिए उन्होंने वामपंथियों से सहयोग भी मांगा है. लेकिन गुजरात में उनका जोर फासीवाद पर नहीं रहा. वे श्रोताओं को बताते रहे कि गुजरात में विकास के नाम पर क्या हुआ. यह सॉफ्ट हिन्दुत्व नहीं है, बल्कि यह तो हिन्दुत्व की आलोचना भी नहीं है.

हिन्दू होने में कोई बुराई नहीं है. हालांकि मैं आज तक किसी भी धर्म का औचित्य नहीं समझ पाया. मानता हूं कि धर्म और ईर के अभाव में ही हमें बेहतर जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन कोई धार्मिंक है, और अपने विश्वासों के कारण किसी का नुकसान नहीं करता तो मैं उसका असम्मान नहीं करूंगा. महात्मा गांधी हिन्दू थे, या अपने को हिन्दू मानते थे, इससे मुझे कोई परेशानी नहीं है. लेकिन वे किस अर्थ में हिन्दू थे? मंदिरों में नहीं जाते थे, पूजा-पाठ नहीं करते थे, न दान-दक्षिणा देते थे, न किसी पर्व पर उपवास करते थे, न जनेऊ के प्रति उनमें आकषर्ण था. फिर भी अच्छे हिन्दू थे, क्योंकि हिन्दू धर्म के सभी महान ग्रंथों का पारायण करते थे. जब बाकी हिन्दू अस्पृश्यता में विश्वास करते थे, इसी के अनुरूप आचरण करते थे, तब गांधी जी ने अस्पृश्यता के विरुद्ध शक्तिशाली अभियान चलाया. वह अच्छे हिंदू थे, इसलिए मुसलमानों से घृणा नहीं करते थे. वस्तुत: उनकी हत्या ही इसीलिए हुई कि हिन्दूवादियों का मानना था कि वे हिन्दुओं का पक्ष नहीं ले रहे थे.
इसके विपरीत, हिन्दूवाद या जिसे अंग्रेजी में हिन्दुत्व कहा जाता है, वह कोई धार्मिंक प्रत्यय नहीं, बल्कि राजनैतिक चीज है. हिन्दूवाद के प्रणोताओं में एक सावरकर तो नास्तिक भी थे यानी धर्म और ईर में विश्वास नहीं करते थे. उन्होंने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना पर सिर्फ इसलिए जोर दिया कि हिन्दुस्तान पर सिर्फ  हिन्दुओं का राज होना चाहिए. संघ और भाजपा के अधिकांश पदाधिकारी भी धार्मिंक हिन्दू नहीं, राजनैतिक हिन्दू हैं. राम रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी ने कहा भी था कि राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन धार्मिंक नहीं, राजनैतिक आंदोलन है.
विडम्बना यह है कि राहुल भी धार्मिंक हिन्दू नहीं हैं पर अपनी राजनैतिक रणनीति के कारण हिन्दू दिखने की कोशिश करते हैं. जाहिर है, इससे कुछ भी साबित नहीं होता. उनके हिन्दू बनने का कोई असर नहीं होता. स्पष्ट रहता ही है कि वे आरएसएस मार्का हिन्दू नहीं हैं यानी उनका हिन्दू होना किसी प्रकार के फासीवाद की ओर नहीं ले जाता. बेशक, कांग्रेस ने मुसलमानों की भलाई के लिए कुछ नहीं किया है, पर मुसलमानों का विरोध भी नहीं किया. उनकी राष्ट्रीयता पर शक भी नहीं किया. बेशक, यह हिन्दुत्व है, लेकिन उसी तरह का हिन्दुत्व जो देश के करोड़ों लोगों में पाया जाता है. इसके विपरीत, दूसरी तरह का हिन्दुत्व आक्रामक है, संविधान विरोधी है, लोकतंत्र के मूल्यों का सम्मान नहीं करता. धर्म के नाम पर रूढ़ियों और अंधविश्वासों को बढ़ावा देने वाला है. इस हिन्दुत्व से बचाव के लिए अपने को धार्मिंक हिन्दू के रूप में पेश करना नाकाफी है.

राजकिशोर


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