वैश्विकी : चीनी चक्रव्यूह और अजहर

Last Updated 05 Nov 2017 12:35:22 AM IST

चीन ने पठानकोट आतंकवादी हमले के मास्टर माइंड मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव को चौथी बार खारिज करके इस आशंका को और ज्यादा सघन कर दिया है कि वैश्विक आतंकवाद का जड़ से सफाया करना नामुमकिन है.




वैश्विकी : चीनी चक्रव्यूह और अजहर

यह मान लेने में अब कोई हर्ज नहीं है कि नई विश्व व्यवस्था में चीन अमेरिका की जगह लेने के लिए जरूरत से ज्यादा उतावला है और वैश्विक राजनीति में अपने को अग्रणी भूमिका में देखना चाहता है.अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इस यथार्थवादी सिद्धांत पर लगभग मतैक्य है कि राष्ट्रीय हित ही वह प्रमुख तत्व है, जो दो स्वतंत्र और संप्रभु देशों के पारस्परिक रिश्तों को निर्धारित करते हैं. राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से दक्षिण एशिया में पाकिस्तान की भू-राजनीतिक स्थिति बीजिंग के ज्यादा अनुकूल है. चीन इस तथ्य को समझता है कि भारत उसका सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी देश है और इस क्षेत्र का नेतृत्व करने की उसकी दावेदारी की राह में नई दिल्ली अवरोधक है. इसलिए चीन पाकिस्तान को अपने गुट में शामिल करके आतंकवाद और सीमा विवाद जैसे मसलों पर भारत को उलझाये रखना चाहता है.
चीन भारत के बढ़ते प्रभाव से और खास तौर पर नई दिल्ली-वाशिंगटन की बढ़ती दोस्ती से संशकित रहता है. इसलिए आतंकवाद के किसी भी चेहरे का विरोध करने का दावा करने वाला चीन मसूद अजहर के मसले पर अलग रुख अपनाता आया है. चीन समझता है कि भारत और पाक के बीच स्थायी शांति का मतलब नई दिल्ली का मजबूत होकर उभरना. और नई दिल्ली के मजबूत होने का सीधा मतलब दक्षिण एशिया की राजनीति में चीन को प्रभावहीन करना है. अमेरिका भी इसी कूटनीति के तहत एशिया में भारत की भूमिका को बढ़ाने के लिए तत्पर है. दरअसल, चीन और अमेरिका दोनों अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के अनुकूल पाकिस्तान और भारत का इस्तेमाल करना चाहते हैं.

भारत अमेरिका के इस इरादे को अच्छी तरह समझता है. पर भारत एक मजबूत देश होने के कारण अमेरिका के दबाव में आए बगैर अपने राष्ट्रीय हितों का संचालन स्वयं करता है. उसने अफगानिस्तान में अपनी फौज भेजने से इनकार करके अमेरिका को यह जता भी दिया था. लेकिन पाकिस्तान अपनी मजहबी नीतियों और खास कर आतंकवाद को प्रश्रय देने के कारण एक असफल देश हो चुका है. इसलिए वह चीन के इशारे पर नाचने के लिए मजबूर है. इस्लामाबाद यह समझते हुए भी कि बड़ी शक्ति हमेशा छोटी शक्ति का इस्तेमाल करती है, अपने भाग्य को चीन के साथ नत्थी कर लिया है. सचाई तो यही है कि चीन पाकिस्तान की मदद नहीं कर रहा है, वह उसे पीट्ठू बना कर अपना हित साध रहा है.
चीन का राजनीतिक लक्ष्य बहुत स्पष्ट है. इसे पाने के लिए वह टेढ़े-मेढ़े रास्तों का सहारा लेता रहता है. इसलिए आतंकवाद के मसले पर कभी सख्त और कभी नरम रुख अख्तियार कर लेता है. भारत के साथ चीन के रिश्ते गहरी दोस्ती में तब्दील नहीं हो सकती तो इसकी अधिकतर वजह वह खुद और उसके अपने विरोधाभास हैं. चूंकि ये मूल हैं, इसलिए ये आगे भी रहने वाले हैं. अत: चीन के विदेश मंत्री वांग यी की आगामी दिल्ली यात्रा से बहुत उत्साहित होने की जरूरत नहीं है.

डॉ. दिलीप चौबे


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