मीडिया : सनी लियोनी का कमाल

Last Updated 20 Aug 2017 04:03:55 AM IST

सनी लियोनी कोच्चि में एक शो रूम का उद्घाटन करने आई तो लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी. वे क्या देखने आए थे?


मीडिया : सनी लियोनी का कमाल

क्या सनी कोई सुपर स्टार थीं, जिसकी फिल्में जम के चलती हों या कोई नेता थीं जिसकी पार्टी के सदस्य उसे फॉलो करते हों? वह कुछ नहीं थीं. बस एक पूर्व पोर्न स्टार थीं, अपनी बेबाक सेक्सुअलिटी के लिए सुपर हिट थीं.
लेकिन सनी ने अपनी उपस्थिति से केरल की विचारधारात्मक युद्धरत धरती को कुछ देर के लिए एक सूत्र में पिरो दिया. लोग सनी सनी सनी सनी के नारे लगाते रहे. जिस केरल के कुछ इलाकों में संघ और सीपीएम के बीच रक्तरंजित युद्ध जैसा  चल रहा है, वहां सारे मतभदों को भूल कर युवाओं का सनी को देखने आना, सीटी बजाना और हल्ला करना बताता है कि सनी विचारधाराओं की कट्टरता को तोड़ सकती हैं. भले ही कुछ देर के लिए ही सही. कारण क्या रहा? कारण रहा सनी की बनाई सेक्सी इमेज और सेक्सुअली बोल्ड औरत वाली छवि. इस बार न कोई नैतिक दारोगा चीखा, न किसी की भावना को ठेस पहुंची. ‘भगवान के अपने देश में, ‘गाड्स ऑन कंट्री’ में, यह क्या अपसंस्कृति हो रही है. यह पोर्न कल्चर वाली औरत युवाओं को क्या बिगाड़ने आई है? अपनी छवियों से भारतीय संस्कृति का अपमान करती है आदि-इत्यादि ऐसे पिछड़े सवाल किसी ने पूछे. सेक्स-प्रतीक के प्रति यह सहनशीलता नये मध्यवर्गीय समाज के कुछ-कुछ बदलते मिजाज का प्रमाण है. यद्यपि इसका मतलब नहीं कि समाज पूरी तरह सहनशील हो गया है. विचारधारात्मक रूप से वह अब भी बुरी तरह विभक्त है. एक ओर वाम विचारधारा, मार्क्‍सवादी विचारधारा है, तो दूसरी ओर हिंदुत्ववादी, सघ्ांवादी, भारतीय संस्कृतिवादी विचारधारा. केरल के कुछ इलाकों में यह विभाजन इतना तीखा है कि दोनों ओर के डेढ़ सौ से ज्यादा कार्यकर्ता मारे गए हैं. उनको बुरी तरह काटा गया, जलाया गया, या आग लगाई गई. ये विचारधारात्मक हिंसक संघर्ष थमने में नहीं आ रहा.

ऐसे में एक सनी लियोनी के आने मात्र से सब युवा एक भाव के हो गए उनके विचार-भेद कुछ देर के लिए ही सही, मिट गए या नरम हो गए. उनके आने से यह फर्क पड़ा. सेक्स पोर्न प्रतीक राजनीतिक कट्टरता पर भारी पड़ी. एक दशक पहले का वक्त होता तो मार्क्‍सवादी सनी को पतित बुर्जुआ संस्कृति का प्रतीक कह कर उनकी निंदा करते और संघ वाले उन्हें भारतीय संस्कृति की जगह अपसंस्कृति फैलाने वाली कहते. साफ है कि युवा जगत का भावबोध बदल गया है. इसे तरह-तरह के मीडिया ने बदला है.  टीवी, फिल्म, इंटरनेट, सोशल मीडिया, मोबाइल, स्मार्ट फोन क्रांति आदि सबने मिल कर बदला है. इस मीडिया का अपना मुहावरा स्वयं सेक्सिस्ट है.
सेक्स को लेकर अपना मीडिया शायद सबसे सहज है. सीरियलों में नायक-नायिकाओं के लिबास देखें.  बेडरूम सीन देखें. सेक्स पर नायक-नायिका के बीच काफी हद तक खुली-खुली सी बातचीत देखें, कंडोम के तरह-तरह के विज्ञापन देखें, रेप की खबरों के कवरेज देखें. लड़कियों की पिछाई करने वालों, तंग करने वालों के कवरेज आदि ने ऐसा वातावरण बनाया है, जिसमें  सेक्स संबंधी बातें बहुत गोपनीय नहीं रह गई हैं. स्मार्ट फोन और कंप्यूटर पर असंख्य पोर्न वेबसाइटें उपलब्ध हैं. इसलिए पोर्न भी अब आपत्तिजनक नहीं रह गया है.
कहने की जरूरत नहीं कि तरह के तरह मीडिया ने  समाज को बदला है, उसे एक ‘सेक्स-उदार’ वातावरण बनाया है, जिसमें सेक्स के प्रति सहनशीलता है, और ‘जबर्दस्ती करने’ के प्रति असहिष्णुता है. यह नया उदारवाद है, जो सेक्स संचालित है. सनी इसी की नायिका हैं. शायद इसीलिए  आकषर्ण और नई भावात्मक एकता का केंद्र बनीं. पंद्रह-बीस साल पहले तक को हमारे मीडिया में कंडोम के विज्ञापन तक पर हाय तौबा हुआ करती थी. कहंीं कोई राम सेना, तो कहीं कोई बजरंगी जरा से खुले लिबास पर किसी भी लड़की की  पिटाई कर देता था. मीडिया उसे कंडम करता था, पढ़ा-लिखा समाज उसकी निंदा करता था, और इस तरह निजी जीवन की आजादी के मूल्य की स्थापना करता था. इसी बीच, जब सनी लियोनी पहली बार अपने पोर्न के लिए खबर बनीं तो सेक्स-विरोधी कुछ अनुदार तत्वों ने बड़ी हाय-तौबा मचाई थी, लेकिन अब किसी ने हाय-तौबा नहीं मचाई. अनुदार समाज सबसे पहले सेक्स को प्रतिबंधित करते हैं. इसके बरक्स उदारतावादी समाज सेक्स को जीवन का एक सहज कर्म मानते हैं. सनी लियोनी सेक्स की इसी सहजता और उदारता का प्रतीक हैं.

सुधीश पचौरी


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