मुद्दा : ‘टाइम जोन’ पर सियासी पैतरा

Last Updated 27 Jul 2017 06:40:52 AM IST

बीजू जनता दल (बीजेडी) के सांसद भर्तृहरि महताब ने लोक सभा में मुद्दा उठाया कि देश के पूर्वी और पश्चिमी छोर के समय में लगभग दो घंटे का अंतर है.


मुद्दा : ‘टाइम जोन’ पर सियासी पैतरा

ऐसे में अलग ‘टाइम जोन’ होने की स्थिति में मानव श्रम के साथ अरबों यूनिट बिजली भी बचाई जा सकती है. जब देश के बाकी हिस्सों में साल के सबसे लंबे दिन का सूरज उगता है, तब यहां के उत्तर-पूर्वी हिस्से का काफी दिन गुजर चुका होता है. देश के इस हिस्से में सूरज काफी जल्दी उग आता है, लेकिन इनकी दिनचर्या देश के बाकी हिस्से की तरह ही चलती है यानी दफ्तर 10 बजे ही खुलते हैं, स्कूल 8 बजे ही खुलते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति तरोताजा होकर ऑफिस पहुंचता है, वहीं उत्तर-पूर्वी राज्य वालों का दिन दफ्तर पहुंचने तक काफी कुछ गुजर चुका होता है.

संसदीय मामलों के मंत्री अनंत कुमार का कहना था कि यह मुद्दा बेहद अहम और संवेदनशील है और सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है. असल में यह ‘टाइम जोन’ है क्या ?18 वीं सदी से पहले दुनिया भर में सूर्य घड़ी से समय देखा और मिलाया जाता था, लेकिन  सर सैंडफोर्ड फ्लेमिंग ने 1884 में टाइम जोन का सिद्धांत विकसित किया, जिससे दुनिया भर के समय को सही दिशा मिली. टाइम जोन या मानक समय इसे आप क्षेत्रीय समय के नाम से भी जानते हैं. यह 1884 में 13 अक्टूबर के ही दिन ‘ग्रीनिवच मीन टाइम’ तय किया गया था और दुनिया भर की घड़ियों का समय इसी टाइम जोन से तय किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इस टाइम जोन को निर्धारित करने की क्या जरूरत है?

असल में जब सूर्य उदय होता है तो एक समय में पृथ्वी के किस एक ही हिस्से में रह सकता है. इस प्रकार पृथ्वी किसी हिस्से में सूर्य की तिरछी किरणों पड़ती हैं तो कहीं सीधी किरणों. इसीलिए जब किसी स्थान में दोपहर का समय होता है किसी स्थान में शाम का और किसी में रात का समय भी हो सकता है. अगर पूरी दुनिया की घड़ियां एक साथ मिला दी जाएं तो बहुत बड़ी गड़बड़ी हो जाएगी. जैसे किसी के यहां 5 बजे सुबह होगी तो किसी के यहां 5 बजे दोपहर तो किसी के यहां 5 शाम. इस समस्या को हल करने के लिए समय देशांश रेखाओं के आधार पर क्षेत्रीय समय को बनाया गया. पूरी दुनिया के नक्शे को देशांश रेखाओं के आधार पर प्रत्येक 15 अंश के अंतर पर 24 बराबर बराबर के काल्पनिक हिस्सों में बांट दिया गया है और इसकी शुरु आत (0 अंश) से होती है. यह 0 अंश वाली रेखा इंग्लैंड के ग्रीनविच में स्थित वेधशाला से शुरू होती है, समय की गणना यहीं आरंभ होती है.

इसे अंतरराष्ट्रीय मानक समय (ग्रीनविच मीन टाइम) के नाम से जाना जाता है. ग्रीनविच रेखा से दाहिनी ओर वाले देशों का समय आगे होता है और ग्रीनविच रेखा से बाई ओर वाले देशों का समय पीछे होता है. इसी प्रकार हर देश का अपना मानक समय है. भारत में यह रेखा इलाहाबाद के निकट नैनी से गुजरती है. यहीं से देश का राष्ट्रीय मानक समय माना जाता है. पूर्वोत्तर भारत के कई संगठन समय-समय पर इलाके के लिए अलग टाइम जोन की मांग उठाते रहे हैं. अब पहली बार केंद्र सरकार ने इस मसले पर गंभीरता से विचार शुरू किया है. देश के पूर्वी और पश्चिमी छोर के बीच समय में दो घंटे का अंतर रहता है. केंद्रीय विज्ञान व तकनीक मंत्रालय ने इसका पता लगाने के लिए एक अध्ययन किया था कि दो अलग-अलग टाइम जोन होने की स्थिति में कितनी ऊर्जा बचाई जा सकती है.

ब्रिटिश शासनकाल के दौरान देश में तीन अलग-अलग टाइम जोन थे. बांबे टाइम जोन, कलकत्ता टाइम जोन और बागान टाइम जोन. पूरे देश के चाय बागान मजदूर इसी बागान टाइम जोन के हिसाब से काम करते थे. असम के चाय बागानों में यह टाइम जोन अब भी लागू है. पूर्वोत्तर में लंबे अरसे से अलग टाइम जोन की मांग करने वाले संगठनों की दलील है कि अगर इलाके में घड़ी की सुइयों को महज आधे घंटे पहले कर दिया जाए तो 2.7 अरब यूनिट बिजली बचाई जा सकती है. केंद्रीय विज्ञान व तकनीक मंत्रालय ने कोई एक दशक पहले इस मुद्दे के अध्ययन के लिए एक समिति का गठन किया था. तब देश में दो अलग-अलग टाइम जोन के विकल्प पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया गया था. इनको ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) से क्रमश: पांच व छह घंटे आगे होना था. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह एक नए अलगाववाद आंदोलन की शुरुआत है. लेकिन भारत ने अब तक बहुत विकास किया है और हम अब वैसे समाज में नहीं रह रहे हैं.

शैलेंद्र चौहान
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment