हर्ष फायरिंग : कानून और समाज रोके
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल में केंद्र और दिल्ली सरकार से पूछा है कि हर्ष फायरिंग में घायल होने वाले और जान गंवाने वालों के परिवारों को क्यों न दूल्हे के परिवार से मुआवजा न दिलाया जाए.
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यह सवाल श्याम सुंदर कौशल नामक एक व्यक्ति की याचिका की सुनवाई के दौरान उठा था. पिछले साल 16 अप्रैल,2016 को उनकी 17 वर्षीय बेटी की मौत गली से गुजर रही एक बारात को देखने के दौरान की गई फायरिंग में हो गई थी. इसके बाद श्याम सुंदर ने समाज में खुशी के मौके पर की जाने वाली गोलीबारी (हर्ष फायरिंग) पर रोक लगाने की मांग करते हुए अदालत से दिशा-निर्देश जारी करने की गुहार लगाई थी. साथ ही, उन्होंने केंद्र, दिल्ली सरकार व दिल्ली पुलिस से 50 लाख और इतनी ही राशि दूल्हे के परिवार से दिलाने की मांग की थी.
दिल्ली, यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार आदि उत्तर भारतीय राज्यों में हर्ष फायरिंग ला-इलाज मर्ज बन गई. अक्सर ही ऐसी खबरें आती हैं कि शादी के दिनों में बारात निकालते वक्त मेहमानों द्वारा बंदूक-रिवाल्वर से गोली चलाने के कारण चपेट में आए लोग या तो घायल हो जाते हैं या फिर उनकी मौत हो जाती है. वैसे तो ऐसे मामलों में कुछ कानून पहले से हैं, जैसे लापरवाही से किसी दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने वाले मामलों में धारा 336 के तहत मुकदमा दायर हो सकता है, लेकिन शादी जैसे शुभ कार्यों और रिश्तेदारी आदि की दुहाई देकर ऐसे मामलों को दबा दिया जाता है. समस्या का एक पहलू यह है कि देश में छोटे हथियारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. संभवत: ऐसे हथियार लाइसेंसी से ज्यादा गैरलाइसेंसी होते हैं. उनकी धर-पकड़ इसलिए नहीं हो पाती है, क्योंकि मामले ही दर्ज नहीं कराए जाते. छोटे हथियारों से की गई फायरिंग कितनी जानलेवा साबित हो रही है, इससे संबंधित एक आंकड़ा तो हाल ही में प्रकाश में आया है.
वर्ष 2014 में छोटे हथियारों से की गई फायरिंग के कारण हुई दुर्घटनाओं में प्रति दिन दो लोगों की मौत हुई. पिछले एक दशक (2005-2014 के बीच) में हषर्-फायरिंग जैसी घटनाओं में कुल मिलाकर 15 हजार से अधिक जानें गई हैं, जिनमें दो-तिहाई मौतें अकेले उत्तर प्रदेश में हुई. इस अवधि में 10 हजार 319 लोगों की मृत्यु विभिन्न कारणों से की गई फायरिंग में यूपी में हुई, जबकि मध्य प्रदेश में 1212, छत्तीसगढ़ में 1065 मौतों का आंकड़ा ऐसे ही कारणों की वजह से सामने आया है. हरियाणा, झारखंड, असम, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, बिहार, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक में भी यह प्रवृत्ति दिखाई दे रही है, जिस कारण ऐसी ही दुर्घटनाएं हो रही हैं.
उल्लेखनीय है कि कई बार हादसों में घायल होने या मरनेवालों में वे भी शामिल होते हैं, जिनका संबंधित शादी समारोह से कोई लेना-देना नहीं होता है. बारात निकलते वक्त सड़क किनारे से गुजरने वाले राहगीर या उस रास्ते में आने वाले घरों की छत अथवा छज्जे से झांकते लोग हर्ष फायरिंग के दौरान चलाई गई गोली की चपेट में आ जाते हैं. सवाल है कि आखिर इस समस्या का समाधान क्या है?
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट यह निर्देश दे चुका है कि शादियों के दौरान अथवा किसी अन्य आयोजन के दौरान हर्ष फायरिंग जैसी कोई घटना न होने पाए. लेकिन हर्ष फायरिंग के कारण होने वाले अनगिनत हादसे साबित करते हैं कि इस बारे में अदालतों के निर्देशों की कोई परवाह नहीं की जा रही है. गंभीर बात यह है कि खुद प्रशासन भी ऐसी बातों को स्वत: संज्ञान लेने से बचता है. उसे लगता है कि इससे लोग स्थानीय प्रशासन के खिलाफ हो जाएंगे, जबकि ऐसे मामलों में कार्रवाई की जाए तो उसे आम जनता से सराहना ही मिल सकती है. इसमें एक पक्ष जनता की जागरूकता का भी है.
अगर लोगों को इस बारे में सचेत नहीं किया गया कि हर्ष फायरिंग एक गैरकानूनी कृत्य है, तो इससे कभी छुटकारा नहीं मिलेगा. इसकी एक पहल राजनेताओं को भी करनी होगी.
हालांकि, विचित्र बात यह है कि कई बार खुद राजनेता भी ऐसी चीजों में शामिल हो जाते हैं, जिससे जनता में यही संदेश जाता है कि हर्ष फायरिंग में कोई हर्ज नहीं है. इस तरह दिखावा करने या दबंगई का प्रदर्शन करने से कई लोगों के अहं की तुष्टि भले ही हो जाती है, पर है तो यह एक गैरकानूनी कृत्य ही. अच्छा हो यदि प्रशासन ऐसे मामलों में सख्ती बरते और जनता को इस बारे में सचेत करे कि यह काम कितना घातक है, तो संभव है कि इससे संबंधित दुर्घटनाओं को रोका जा सकेगा.
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